हिजाब प्रकरण : अलग दिखने
की जिद क्यों ?
-डॉ. सौरभ मालवीय
भारत एक लोकतांत्रिक देश
है. यहां सभी धर्मों और संप्रदायों के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. सभी को
अपने-अपने धर्म के अनुसार धार्मिक कार्य करने एवं जीवन यापन करने का अधिकार
प्राप्त है. परन्तु कुछ अलगाववादी शक्तियों के कारण देश में किसी न किसी बात को
लेकर प्राय: विवाद होते रहते हैं. इन विवादों के कारण जहां शान्ति का वातावरण
अशांत हो जाता है, वहीं लोगों में
मनमुटाव भी बढ़ जाता है. ताजा उदाहरण है हिजाब प्रकरण. कर्नाटक के उडुपी से प्रारंभ
हुआ हिजाब प्रकरण थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.
मंगलवार को कर्नाटक उच्च
न्यायालय द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने को चुनौती देने
वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिए जाने के पश्चात यह मामला अब सर्वोच्च न्यायालय
पहुंच गया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय का कहना है कि छात्रों को स्कूलों में हिजाब
नहीं, यूनिफॉर्म पहननी होगी.
न्यायालय का कहना है कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है.
हिजाब मामले में राज्य के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवादगी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय
की पूर्ण पीठ के सामने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य
अंग नहीं है और इसके उपयोग पर रोक लगाना संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं है। उन्होंने कहा कि हिजाब
धर्म के पालन के अधिकार के अंतर्गत दिखावे का भाग है. पूर्ण पीठ में न्यायालय के
मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी, न्यायाधीश जेएम
काजी एवं न्यायाधीश कृष्णा एम दीक्षित सम्मिलित हैं. एडवोकेट जनरल ने कहा कि सरकार
का आदेश संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन भी
नहीं करता. यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी
देता है. उन्होंने यह भी कहा कि यूनिफॉर्म के बारे में सरकार का आदेश पूरी तरह
शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरूप है और इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है. उन्होंने
कहा कि उडुपी के सरकारी प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज में यूनिफॉर्म का नियम वर्ष 2018 से लागू है, परन्तु समस्या तब प्रारंभ हुई जब विगत दिसंबर में कुछ
छात्राओं ने प्राचार्य से हिजाब पहनकर कक्षा में जाने की अनुमति मांगी. इस पर उनके
अभिभावकों को कॉलेज में बुलाया गया और यूनिफॉर्म लागू होने की बात कही गई, परन्तु छात्राएं नहीं मानीं और उन्होंने विरोध
आरंभ कर दिया. जब मामला सरकार के संज्ञान में आया, तो उसने मामले को तूल न देने की अपील करते हुए एक उच्च
स्तरीय समिति बनाने की बात कही. किन्तु छात्राओं पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ. जब
मामला बढ़ गया, तो सरकार ने 5 फरवरी को आदेश देकर ऐसे किसी भी वस्त्र को
पहनने से मना कर दिया, जिससे शांति,
सौहार्द्र एवं कानून व्यवस्था प्रभावित हो रही
हो.
विशेष बात यह भी है कि
उच्च न्यायालय ने पर्दा प्रथा पर भीमराव आंबेडकर की टिप्पणी का भी का उल्लेख करते
हुए कहा- "पर्दा, हिजाब जैसी चीजें
किसी भी समुदाय में हों तो उस पर बहस हो सकती है। इससे महिलाओं की आजादी प्रभावित
होती है। यह संविधान की उस भावना के विरुद्ध है, जो सभी को समान अवसर प्रदान करने, सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने और पॉजिटिव सेक्युलरिज्म की
बात करती है।“
भारत में व्याप्त अनेक
कुप्रथाओं ने महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखा है. पर्दा प्रथा भी
उनमें से एक है. इस प्रथा के कारण महिलाओं को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ा. उन्हें
घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया. पुनर्जागरण के युग में समाज सुधारकों ने इन
कुप्रथाओं के विरोध में जनजागरण आन्दोलन चलाया. इसके सकारात्मक परिणाम देखने को
मिले. समय के साथ-साथ समाज में परिवर्तन आया. हिन्दू व अन्य समुदायों के साथ-साथ
मुसलमान भी अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने लगे, परन्तु उनका अनुपात अन्य समुदायों की तुलना में बहुत ही कम
है, जो चिंता का विषय है. देश
में सबको समान रूप से अधिकार दिए गए हैं. शिक्षण संस्थानों में भी सबके साथ समानता
का व्यवहार किया जाता है. प्रश्न यह है कि कुछ लोग स्वयं को दूसरों से पृथक क्यों
रखना चाहते हैं?
वास्तव में हिजाब प्रकरण
मुस्लिम समाज की लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने का एक षड्यंत्र है. चूंकि शिक्षा
ही मनुष्य को अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती है,
इसलिए रूढ़िवादी मानसिकता के लोग महिलाओं को
शिक्षा से वंचित रखने के लिए ऐसे षड्यंत्र रचते रहते हैं, ताकि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज न उठा सकें. मुस्लिम
समाज में महिलाओं की जो स्थिति है, वह किसी से छिपी
नहीं है. जब मुस्लिम बहन-बेटियों के हक में भाजपा सरकार ‘तीन तलाक’ पर रोक लगाने
का कानून लाई थी, तो शिक्षित और
जागरूक मुस्लिम महिलाओं ने इसका खुले दिल से स्वागत किया था. उस समय भी रूढ़िवादी
लोगों ने जमकर इसका विरोध किया था, परन्तु उनकी एक न
चली. इस कानून ने मुस्लिम महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने का कार्य किया. अब कोई
भी व्यक्ति ‘तीन तलाक’ कहकर अपनी पत्नी को घर से नहीं निकाल सकता. ऐसा करने पर उसे
दंड दिए जाने का प्रावधान है.
उल्लेखनीय है कि यूरोप के
अनेक देशों ने हिजाब अर्थात बुर्का पहनने पर आंशिक या पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया
हुआ है, जिसमें ऑस्ट्रिया,
बेल्जियम, बुल्गारिया, डेनमार्क,
फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड एवं
स्विट्जरलैंड आदि सम्मिलित हैं। इटली और श्रीलंका में भी बुर्का पहनने पर प्रतिबंध
है. इन सभी देशों में आदेश का उल्लंघन करने पर भारी आर्थिक दंड दिए जाने का
प्रावधान है.
कुछ लोग हिजाब के मामले
में कुरआन की दुहाई देते हुए कहते हैं कि इसमें कई स्थान पर हिजाब का उल्लेख किया
गया है, परन्तु वे इस बात पर
चुप्पी साध लेते हैं कि ड्रेस कोड के संदर्भ में ऐसा कुछ नहीं कहा गया. इस्लाम के
पांच मूलभूत सिद्धांतों में भी हिजाब सम्मिलित नहीं है. वास्तव में धर्म का संबंध
आस्था एवं विश्वास से होता है, जबकि वस्त्रों का
संबंध क्षेत्र विशेष एवं आवश्यकताओं से होता है. उदाहरण के लिए किसी भी ठंडे स्थान
पर रहने वाले लोग जो भारी भरकम गर्म वस्त्र पहनते हैं, वे किसी गर्म क्षेत्र में रहने वाले लोग नहीं पहन सकते.
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि भारत में कहीं भी हिजाब अथवा बुर्का पहनने पर
कोई प्रतिबंध नहीं है, परन्तु जिन
संस्थानों में ड्रेस कोड लागू है, वहां हिजाब पहनने
की जिद क्यों की जा रही है ?
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