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Saturday, September 13, 2025

मातृभाषा पर गर्व करें

 

डॉ. सौरभ मालवीय 
मातृभाषा का अर्थ है मातृ की भाषा अर्थात वह भाषा जो बालक अपनी माता से सीखता है। बाल्यकाल से ही मातृभाषा में बोलने और सुनने के कारण व्यक्ति अपनी भाषा में निपुण हो जाता है। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की पहचान होती है। मातृभाषा का जीवन में अत्यंत महत्व होता है। कोई भी व्यक्ति अपनी मातृभाषा में अपने विचारों को सरलता से व्यक्त करने में सक्षम होता है, क्योंकि व्यक्ति सदैव अपनी मातृभाषा में ही विचार करता है। इसलिए उसे अपनी मातृभाषा में कोई भी विषय समझने में भी सुगमता होती है, जबकि किसी अन्य भाषा में उसे कठिनाई का सामना करना पड़ता है। मातृभाषा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की आधारशिला है।
 
मातृभाषा व्यक्ति को उसकी संस्कृति से जोड़ने में सक्षम होती है। मातृभाषा द्वारा व्यक्ति को अपनी मूल संस्कृति एवं संस्कारों का ज्ञान होता है। मातृभाषा द्वारा व्यक्ति अपने समाज से भी जुड़ा रहता है। उदाहरण के लिए यदि किसी की मातृभाषा भोजपुरी है, तो वह व्यक्ति उन लोगों से मिलकर अपनत्व का अनुभव करेगा, जो भोजपुरी बोलते हैं। लोग अपने दैनिक जीवन में अपनी मातृभाषा ही बोलते हैं। मातृभाषा के लिए कहा गया है कि
कोस-कोस पर पानी बदले, तीन कोस पर वाणी अर्थात पीने वाला पानी का स्वाद एक कोस की दूरी पर बदल जाता है। साथ ही मातृभाषा तीन कोस की दूरी पर बदलती है। लोग बचपन में स्थानीय भाषा में कहानियां-कथाएं सुनते हैं, जो उन्हें जीवन में सदैव याद रहती हैं। स्थानीय बोलचाल व्यक्ति को स्थान विशेष से जोड़कर रखती है। मातृभाषा का चिंतन हमें हमारे मूल्यों से जोड़ता है। मातृभाषा व्यक्ति के मानसिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है। मातृभाषा में ही विचारों का प्रवाह हो सकता है, जो किसी अन्य भाषा में संभव नहीं है।  
 
भारत ही नहीं, अपितु विश्वभर के विद्वान भी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान किए जाने को महत्व देते हैं। शिक्षा शास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मातृभाषा में सोचने से, विचार करने से, चिंतन मनन करने से बालकों में बुद्धि तीक्ष्ण होकर कार्य करती है। संवाद की सुगम भाषा मातृभाषा है। मातृभाषा व्यक्ति के आत्मिक लगाव, विश्वास मूल्य और संबंध मूल्य को मजबूत करती है। सर सीवी रमन के अनुसार- “हमें विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में देनी चाहिए, अन्यथा विज्ञान एक छद्म कुलीनता और अहंकार भरी गतिविधि बनकर रह जाएगा। और ऐसे में विज्ञान के क्षेत्र में आम लोग कार्य नहीं कर पाएंगे।“ भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनुसार- “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल।“
अर्थात मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज की उन्नति संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी कठिन है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित गिरधर शर्मा के अनुसार- “विचारों का परिपक्व होना भी तभी संभव होता है, जब शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो।“ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मातृभाषा के महत्त्व से भली-भांति परिचित थे। वे कहते थे कि  "मनुष्य के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही जरूरी है, जितना की बच्चे के शारीरिक विकास के लिए माता का दूध। बालक पहला पाठ अपनी माता से ही पढ़ता हैं, इसलिए उसके मानसिक विकास के लिए उसके ऊपर मातृभाषा के अतिरिक्त कोई दूसरी भाषा लादना मैं मातृभूमि के विरुद्ध पाप समझता हूं।"  नेल्सन मंडेला के अनुसार- “यदि आप किसी से ऐसी भाषा में बात करते हैं जो उसे समझ में आती है तो वह उसके मस्तिष्क तक पहुंचती है, परन्तु यदि आप उससे उसकी मातृभाषा में बात करते हैं तो बात उसके हृदय तक पहुंचती है।“ ब्रिघम यंग के अनुसार “हमें अपने बच्चों को पहले उनकी मातृभाषा में समुचित शिक्षा देनी चाहिए, उसके पश्चात ही उन्हें उच्च शिक्षा की किसी भी शाखा में जाना चाहिए।“
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट से भी यह सिद्ध होता है कि अपनी मातृभाषा में चिकित्सा एवं विज्ञान आदि विषयों में पढ़ाई करवाने वाले देशों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत अच्छी स्थिति में है। देश के पड़ोसी देश चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस एवं जापान आदि देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। ये सभी देश लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी हैं एवं उन्नति के शिखर को छू रहे हैं। इन सभी देशों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करके ही सफलता प्राप्त की है। यदि स्वतंत्रता के पश्चात हमारे देश में भी क्षेत्रीय भाषाओं में चिकित्सा, विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान की जाती तो आज भारत भी उन्नति के शिखर पर होता। परन्तु अब भी समय है।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश की क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं को अत्यंत महत्त्व दिया जा रहा है। देश में हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारंभ होना भी इसी दिशा में उठाया हुआ एक कदम है। आशा है कि इससे देश में बड़ा सकारात्मक परिवर्तन आएगा। लाखों छात्र अपनी भाषा में अध्ययन कर सकेंगे तथा उनके लिए कई नए अवसरों के द्वार भी खुलेंगे।  
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि मां और मातृभाषा मिलकर जीवन को मजबूती प्रदान करते हैं तथा कोई भी इंसान अपनी मां एवं मातृभाषा को न छोड़ सकता है और न ही इनके बिना उन्नति कर सकता है। मैं तो मातृभाषा के लिए यही कहूंगा कि जैसे हमारे जीवन को हमारी मां गढ़ती है, वैसे ही मातृभाषा भी हमारे जीवन को गढ़ती है। मां और मातृभाषा दोनों मिलकर जीवन के आधार को मजबूत बनाते हैं, चिरंजीव बनाते हैं। जैसे हम अपनी मां को नहीं छोड़ सकते, वैसे ही अपनी मातृभाषा को भी नहीं छोड़ सकते। मुझे बरसों पहले अमेरिका में एक बार एक तेलुगू परिवार में जाना हुआ और मुझे एक बहुत खुशी का दृश्य वहां देखने को मिला। उन्होंने मुझे बताया कि हम लोगों ने परिवार में नियम बनाया है कि कितना ही काम क्यों न हो, लेकिन अगर हम शहर के बाहर नहीं हैं तो परिवार के सभी सदस्य भोजन की मेज पर बैठकर तेलुगू भाषा बोलेंगे। जो बच्चे वहां पैदा हुए थे, उनके लिए भी ये नियम था। अपनी मातृभाषा के प्रति ये प्रेम देखकर इस परिवार से मैं बहुत प्रभावित हुआ था। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी कुछ लोग ऐसे द्वन्द्व में हैं जिसके कारण उन्हें अपनी भाषा, अपने पहनावे, अपने खान-पान को लेकर संकोच होता है, जबकि विश्व में कहीं और ऐसा नहीं है। मातृभाषा को गर्व के साथ बोला जाना चाहिए और हमारा देश तो भाषाओं के मामले में इतना समृद्ध है कि उसकी तुलना ही नहीं हो सकती। हमारी भाषाओं की सबसे बड़ी खूबसूरती ये है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक, कच्छ से कोहिमा तक सैंकड़ों भाषाएं, हजारों बोलियां एक दूसरे से अलग लेकिन एक दूसरे में रची-बसी हैं। हमारी भाषा अनेक, लेकिन भाव एक है।
भाषा, केवल अभिव्यक्ति का ही माध्यम नहीं, बल्कि भाषा समाज की संस्कृति और विरासत को भी सहेजने का काम करती है। हमारे यहां भाषा की अपनी खूबियां हैं, मातृभाषा का अपना विज्ञान है। इस विज्ञान को समझते हुए ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा में पढ़ाई पर जोर दिया गया है।
 
आज देखने को मिल रहा है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में गिनती नहीं करते, अपितु अंग्रेजी में गणना करते हैं। अंग्रेजी का ज्ञान भी प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि यह भी समय की मांग है। किन्तु अपनी मातृभाषा को तुच्छ समझना उचित नहीं है। माता-पिता भी बच्चों को अपनी मातृभाषा की बजाय अंग्रेजी में बात करते हुए देखकर प्रसन्न होते हैं। वे अपने बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं। ऐसा करने से बच्चे भी अंग्रेजी को उच्च मानने लगते हैं। उन्हें अपनी मातृभाषा तुच्छ लगने लगती है। इस प्रकार वे अपनी संस्कृति से भी दूर होने लगते हैं। उन्हें अंग्रेजी के साथ-साथ पश्चिमी सभ्यता अच्छी लगने लगती है। वे स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगते हैं तथा उन्हें अपनी लोकभाषा अर्थात मातृभाषा में बात करने वाले लोग तुच्छ लगने लगते हैं।
 
हमारे विशाल भारत देश में अनेक भाषाएं हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 121 भाषाएं हैं तथा 1369 मातृभाषा हैं। वर्ष 2001 की जनगणना की तुलना में वर्ष 2011 में हिंदी को अपनी मातृभाषा की बताने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। वर्ष 2001 में 43.03 प्रतिशत लोगों ने हिंदी को अपनी मातृभाषा बताया था, जबकि वर्ष 2011 में 43.6 प्रतिशत लोगों ने हिंदी को अपनी मातृभाषा बताया। देश की सूचीबद्ध भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोली जाने वाली भाषा बनी हुई है। मात्र 24821 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया। गैर सूचीबद्ध भाषाओं में अंग्रेजी को लगभग 2.6 लाख लोगों ने अपनी मातृभाषा बताया। इसमें लगभग 1.60 लाख लोग महाराष्ट्र के हैं।
 
मातृभाषा के महत्त्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन ने सर्वप्रथम 17 नवंबर 1999 को प्रतिवर्ष 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी। उसके पश्चात वर्ष 2000 से विश्वभर में प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन के अनुसार मातृभाषा को बढ़ावा देने से न केवल सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा मिलता है, अपितु जातीय परंपराओं और भाषा विज्ञान पर भी अधिक ध्यान पैदा होता है। इसके अतिरिक्त मान्यता समझ, संवाद और सहिष्णुता के आधार पर एकता को बढ़ावा देती है।
(लेखक- मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Tuesday, September 9, 2025

शिक्षण संस्थान बालक के सर्वांगीण विकास की आधारशिला हैं : मुख्यमंत्री














बस्ती/लखनऊ, 9 सितंबर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत की शिक्षा कैसी होनी चाहिए। आजादी के पांच साल के बाद जब तत्कालीन सरकारें इस दिशा में प्रयास नहीं कर पाईं, तब नाना जी ने गोरखपुर से इस प्रयास को बढ़ाया था। उसके पीछे का ध्येय था कि भारत, भारतीयता, परंपरा,  संस्कृति और मातृभाव से ओतप्रोत ऐसे शिक्षण संस्थान की स्थापना आवश्यक है, जो देश को फिर से विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने में योगदान दे सके। इसकी शुरूआत शिक्षा के मंदिरों से ही होती है। शिक्षण संस्थान केवल अक्षर ज्ञान के माध्यम ही नहीं, बल्कि बालक के सर्वांगीण विकास की आधारशिला हैं। शिक्षा यदि संस्कार, मूल्यों-आदर्शों, मातृभूमि, महापुरुषों, राष्ट्रीयता के प्रति समर्पण का भाव पैदा नहीं कर पा रही है तो वह कुशिक्षा और भटकाव है। आजादी के तत्काल बाद उसका समाधान सरस्वती शिशु मंदिर से प्रारंभ हुआ। 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बसहवा का भूमि पूजन, शिलान्यास, पौधरोपण व पुस्तक का विमोचन भी किया। आरएसएस के तत्कालीन प्रचारक नाना जी देशमुख के नेतृत्व में सरस्वती शिशु मंदिर की पहली शाखा गोरखपुर में स्थापित की गई थी। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान के मातृभूमि होने का सौभाग्य गोरक्ष प्रांत को प्राप्त है। विद्या भारती के अंतर्गत संचालित हजारों शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान राष्ट्र निर्माण के जिस अभियान के साथ जुड़े हैं, उसकी ताकत देश-दुनिया समझती है। 

शिशु मंदिर से निकले छात्र समाज का नेतृत्व भी कर रहे और मार्गदर्शन भी
सीएम योगी ने कहा कि पाठ्यक्रम सरकार तैयार करती है। सरकार सहयोग करे या न करे। बिना सरकार की सहायता के अपने दम और स्वयंसेवकों के सहयोग से भारतीयता के प्रति अनुराग रखने वाले नागरिकों के माध्यम से सरस्वती शिशु मंदिर ने इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। गोरखपुर के पक्कीबाग में जब पहला सरस्वती शिशु मंदिर स्थापित हुआ तो उस समय मात्र पांच छात्र थे, लेकिन आज शिशु मंदिर के 12 हजार विद्यालय हैं। यह संस्थान बच्चों के अंदर भारत व भारतीयता के प्रति नागरिक के रूप में कर्तव्यों का बोध कराने और सुयोग्य नागरिक बनाने के लिए राष्ट्रीय दायित्व का ईमानदारी से निर्वहन कर रहा है। सरस्वती शिशु मंदिर से निकले छात्र समाज को नेतृत्व भी दे रहे और मार्गदर्शन भी कर रहे हैं।  

शिक्षा से होती देश के समर्थ, आत्मनिर्भर व शक्तिशाली होने की शुरुआत  
सीएम योगी ने कहा कि देश के समर्थ, आत्मनिर्भर व शक्तिशाली होने की शुरुआत शिक्षा से होती है। दुनिया में समृद्धि की चर्चा होती है तो पहला पैरामीटर शिक्षा, फिर स्वास्थ्य, उसके बाद कृषि-जल संसाधन, तब कौशल विकास व रोजगार होता है। फिर पर्यावरण को ध्यान में रखकर विकास की बात होती है। यह पैरामीटर तय करते हैं कि समग्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। इस मंशा के साथ जब कोई अभियान बढ़ता है तो वह न केवल देशहित, बल्कि मानवता का मार्ग भी प्रशस्त करता है। आज का कार्यक्रम सुयोग्य नागरिकों को गढ़ने, तलाशने और तराशने का महत्वपूर्ण मंच शुरू करने जा रहा है। इसके माध्यम से भारत के सुयोग्य नागरिक विकसित करने का मंच विकसित हो रहा है। 

बिना प्लानिंग कार्य करने से चूक जाते हैं
सीएम ने कहा कि जब बिना किसी प्लानिंग कार्य करते हैं तो चूक जाते हैं। हर व्यवस्था, प्रबंधन, सरकार, कॉरपोरेट घराना वर्ष भर की योजना बनाता है, फिर लघु, मध्यम व दीर्घ अवधि के कार्यक्रम तय करता है। इसके माध्यम से आगे के लक्ष्यों को प्राप्त करके हम भी सशक्त होंगे और भावी पीढ़ी, संस्थान को भी समर्थ भी बना पाएंगे। सरकार हर साल बजट प्रस्तुत करती है। इसमें विजन होता है कि एक वर्ष, फिर पांच वर्ष, दस वर्ष, 25 वर्ष की योजना क्या होगी। भारत की आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष पर पीएम मोदी ने आगामी 25 वर्ष की कार्ययोजना तैयार करने को कहा।  भारत को विकसित बनाने के लिए पंच प्रण को जीवन का हिस्सा बनाने को कहा।  

विरासत का करना होगा सम्मान
सीएम ने कहा कि विरासत का सम्मान करना होगा। हमारे पूर्वजों (1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी) ने संकल्प लिया था कि एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेंगे। कश्मीर में शेष भारत का कानून लागू करने का शंखनाद किया था। उन्हें बलिदान भी देना पड़ा। 1952 में कांग्रेस ने बाबा साहेब के न चाहने के बावजूद जबरन लागू किया, लेकिन पीएम मोदी ने डॉ. मुखर्जी के संकल्प को साकार कर आतंकवाद व भारत विरोधी गतिविधियों-साजिशों को समाप्त करके कश्मीर को भारत के कानून के साथ जोड़ा। 500 वर्ष का इंतजार समाप्त हुआ और अयोध्या में रामललाा के मंदिर का निर्माण हुआ। विपक्षी दल चाहते थे कि यह नहीं होना चाहिए। सीएम ने कहा कि प्रभु श्रीराम आदर्श व भारतीयता के प्रतीक है। जब महर्षि वाल्मिकी ने नारद जी से पूछा कि मुझे कुछ लिखना है, ऐसा कौन सा आदर्श है। तब उन्होंने कहा कि इस धरती पर एक ही चरित्र है, आप श्रीराम पर लिखें। हमें महर्षि वाल्मीकि, प्रभु राम,  श्रीकृष्ण की परंपरा पर गौरव की अनुभूति है। भारत और भारतीयता के लिए जिन महापुरुषों व स्वतंत्र भारत में सीमाओं की रक्षा करते हुए जिन्होंने बलिदान दिया, वे सभी हमारे आदर्श हैं। उनका सम्मान और विरासत का संरक्षण करना हर भारतीय का दायित्व है। 

विदेशियों ने भारत को लूटकर अर्जित किया, जबकि भारत ने पुरुषार्थ से समृद्धि को बनाया
सीएम ने गुलामी के अंशों को सर्वथा समाप्त करने पर भी चर्चा की। बोले कि गुलामी की मानसिकता देश के अंदर छा गई थी। भारतीय को हेय और विदेशी को संपन्न की दृष्टि से देखे जाने लगा। इस दुष्प्रवृत्ति पर 11 वर्ष में आपने रोक लगाते हुए देखा होगा। जो भारतीय है, वह सर्वश्रेष्ठ है और वह ऐसा इसलिए है, क्योंकि जो विदेशियों ने भारत को लूटकर अर्जित किया है, जबकि भारत ने अपने पुरुषार्थ से समृद्धि को बनाया था। 400 वर्ष पहले भारत दुनिया की नंबर एक अर्थव्यवस्था थी। दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान 25 फीसदी था। जब देश आजाद हुआ तो भारत का योगदान केवल दो फीसदी रह गया। भारत को लूटा गया। भारत और भारतीयता के मन में यह भाव पैदा किया गया कि भारतीयों को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने वालों को लोग हतोत्साहित करते थे। हमने हिंदी और संस्कृत की जगह अंग्रेजी को भारतीयता का प्रतीक और भारत के महापुरुषों की जगह दुनिया के लोगों को आदर्श मानना प्रारंभ कर दिया। भारत में अपनी परंपरा व प्रतीक से दूरी बनाई, जिसका दुष्परिणाम हुआ कि यहां के नागरिकों के मन में भाव पैदा हुआ कि देश कभी आजाद नहीं होगा। जिस भारत के सामने दुनिया की कोई ताकत ठहर नहीं सकती थी, वह गुलाम हो गया। भारत के पास बल, वैभव व बुद्धि किसी रूप की कमी नहीं थी। 

सुहेलदेव को हम भूल गए और सालार मसूद को पूजने लगे
सीएम ने महाराज सुहेलदेव के योगदान की चर्चा की। बताया कि बहराइच में एक हजार वर्ष पहले जब महाराजा सालार मसूद बहराइच में मंदिरों को तोड़ने आया था, तो महाराज सुहेलदेव ने सैनिकों के साथ मुकाबला किया। उसे परास्त कर वह सजा दी, जिसे इस्लाम के दृष्टि से सबसे खराब मानी  जाती थी। लोग सुहेलदेव को भूल गए थे। हमारी सरकार ने बहराइच में उनका भव्य स्मारक और आजमगढ़ में विश्वविद्यालय बनाया। वे हमारे पूर्वज और आदर्श हैं। गुलामी की मानसिकता इस कदर छा गई कि सालार मसूद को पूजने लगे और सुहेलदेव को समाज भूल गया।  

जब पैसा विदेशी कंपनी के पास जाता है तो इसका मुनाफा पहलगाम जैसी आतंकी वारदात में होता है
सीएम योगी ने पीएम के वोकल फॉर लोकल की चर्चा करते हुए कहा कि मेड इन इंडिया को प्राथमिकता देना है। भारतीय हस्तशिल्पियों के बने उत्पादों को जीवन का हिस्सा बनाएं। भारत के कारीगरों की वस्तुओं को ही उपहार में दें, जिससे उसका मुनाफा हस्तशिल्पियों के पास जाए। इससे वह पैसा भारत की समृद्धि में लगेगा वरना यह पैसा विदेशी कंपनियों के हाथ में जाता है तो इसका मुनाफा आतंकवाद में खर्च होता है। भारत के मुनाफे की राशि जब गलत तरीके से पहुंचती है तो पहलगाम व अन्य आतंकी वारदात के पीछे खर्च होती है। हमें सैनिकों और यूनिफॉर्म के प्रति सम्मान का भाव रखना होगा। 

पड़ोस की आग नहीं बुझाई तो हमें भी उसकी चपेट में आना होगा
सीएम ने कहा कि हम आपस में बंटे थे, इसलिए देश गुलाम इसलिए हुआ था। हमें लगता था कि उस पर हमला हुआ है, पड़ोस में आग लगी है। हमने आग नहीं बुझाई तो हमें भी उसकी चपेट में आना होगा। सीएम ने भेदभाव को समाप्त करने पर जोर देते हुए कहा कि बांटने वाली ताकतें भारत को कमजोर करने का षडयंत्र करती हैं। आज का समय सोशल मीडिया का है। सीएम ने कोविड काल में शिक्षकों ने वर्चुअल क्लास के जरिए बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करने का उदाहरण देकर इसके सकारात्मक पहलू को गिनाया तो फेक अकाउंट बनाकर जाति को जाति से लड़ाने और एक-दूसरे को गाली देने के नकारात्मक पहलू पर भी चर्चा की।  

टेक्नोलॉजी ने नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए 
सीएम ने कहा कि आज का समय टेक्नोलॉजी का है। इसे हम अपने अनुरूप ढाल सकें, समाज व देश के अनुरूप बना सकें। जब दुनिया कोविड काल में पस्त थी, तब पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत कोरोना प्रबंधन का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रहा था। उसी समय भारत ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की घोषणा की। टेक्नोलॉजी ने नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए। डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करके युवाओं को देश—दुनिया से अवगत कराने में सहयोगी बन सकते हैं। शिक्षक ने किसी विषय और चैप्टर का अच्छा कंटेंट तैयार किया है तो तमाम संस्थानों में एक साथ प्रस्तुत कर सकते हैं। टेक्नोलॉजी का उपयोग करके लोग लाभान्वित हो रहे। हम टेक्नोलॉजी के दास न बनें। 

चार-छह घंटे सोशल मीडिया पर देने लगे तो शरीर को धोखा दे रहे हैं 
सीएम ने एआई को सतर्कता व सावधानी को बढ़ाने के लिए सबक बताया। सीएम ने तस्वीरों से छेड़छाड़-ब्लैकमेलिंग, साइबर फ्रॉड, डिजिटल अरेस्ट पर भी बातचीत की। सरकार ने इससे सुरक्षा के कदम को भी गिनाया। टेक्नोलॉजी का उपयोग उतना ही हो, जो हमारे लिए उपयोगी हो। चार-छह घंटे यदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर दे रहे हैं तो श्रम और शरीर को भी धोखा दे रहे हैं। असमय आंखें भी जवाब देने लग जाएंगी। सीएम ने चैटबॉट, जीपीटी की उपयोगिता पर भी चर्चा की। सीएम ने इसके सदुपयोग व दुरुपयोग पर भी चर्चा की और कहा कि इस पर निर्भरता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि खुद को समक्ष नहीं बनाएंगे तो प्रतियोगी परीक्षाओं में यह कारगर नहीं होगा। इसलिए जानकारी आवश्यक है। जीवन में पहाड़ नहीं खड़े होने देने हैं, बल्कि इसे सरल बनाना है। 
*आजादी के बाद जो कार्य सरकार को करना चाहिए था, उस दायित्व को आरएसएस ने स्वीकारा*
सीएम योगी ने कहा कि शिक्षा को राष्ट्रीयता के साथ जोड़कर चुनौतियों से जूझने के लिए खुद को तैयार कर सकें। गोरक्ष प्रांत से प्रारंभ हुई सरस्वती शिशु मंदिर की परंपरा देश-दुनिया में दिखेगी। नार्थ ईस्ट व सुदूर दक्षिण, वनवासी क्षेत्र में जाते हैं तो विद्या भारती द्वारा संचालित कोई न कोई सरस्वती शिशु मंदिर व विद्या मंदिर मिलता है। वहां के अध्ययनरत छात्र राष्ट्रीयता के भाव से ओतप्रोत होते हैं। आजादी के बाद जो कार्य सरकारों को करना चाहिए, उस दायित्व को आरएसएस ने स्वीकारा।  

विकसित भारत के लिए विकसित यूपी और विकसित यूपी के लिए विकसित बस्ती आवश्यक
सीएम ने कहा कि विकसित भारत हम सभी के जीवन का ध्येय होना चाहिए। इसके लिए विकसित उत्तर प्रदेश, विकसित बस्ती, हर गांव-कस्बे को विकसित बनने की दिशा में प्रयास प्रारंभ करना पड़ेगा। जो प्रदेश बीमारू व विकास का बैरियर कहा जाता था, वही राज्य 8 वर्ष में भारत के विकास का ग्रोथ इंजन बन गया है। पहले जो यूपी बॉटम थ्री में रहता था, वह आज टॉप-2 में है और अधिकांश योजनाओं में शीर्ष पर है। यह टीम वर्क,  लक्ष्य स्पष्ट, नीयत साफ और सरकार की नीति- सबका साथ, सबका विकास के कारण संभव हो पाया।  

दो दिन में छह हजार युवाओं को दिया नियुक्ति पत्र 
सीएम योगी ने कहा कि यूपी के बारे में धारणा बदली है। लखनऊ में दो दिन में छह हजार युवाओं को सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र वितरित किया है। 2017 के बाद साढ़े 8 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दी गई। 60,244 पुलिसकर्मियों व महिला बाल विकास विभाग में मुख्य सेविकाओं की भर्ती में भी बस्ती के अनेक युवाओं को नियुक्ति मिली। जब सरकार संकीर्ण सोच की होती तो बड़ा कार्य नहीं कर सकती। सीएम ने कृषि व ओडीओपी को लेकर सरकार के कार्यों की चर्चा की। आज यूपी के युवा को अपने प्रदेश, क्षेत्र व गांव में नौकरी की गारंटी मिल रही है। सीएम ने विकसित यूपी के लिए सभी की भूमिका पर बल दिया। 

इस सीजन में अब कोई माता-पिता चिंतित नहीं होते
सीएम ने इंसेफेलाइटिस के दर्द और उसके निवारण का भी जिक्र किया। बोले कि अब किसी भी सीजन में माता-पिता को चिंतित नहीं होना पड़ता, क्योंकि सरकार ने बीमारी पर नकेल कस दी है। जब पीएम ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की तो लोगों ने इसके बारे में नहीं समझा। इंसेफेलाइटिस का उन्मूलन स्वच्छ भारत मिशन की सबसे बड़ी ताकत थी। सरकार  थोड़ा ध्यान दे दे तो बीमारी, माफिया से भी बच सकते हैं। सबकी सुरक्षा से नए निवेश के द्वार खुलेंगे। सीएम ने शिक्षकों, छात्रों, गृहस्थों व हर नागरिकों से ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का आह्वान किया और कहा कि इससे 2047 में भारत दुनिया की महाशक्ति बनेगा। 
इस दौरान विद्या भारती के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हेमचंद्र, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक रमेश,  क्षेत्रीय मंत्री विद्या भारती डॉ सौरभ मालवीय, हर्रैया विधायक अजय सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष संजय चौधरी, गोसेवा आयोग के उपाध्यक्ष महेश शुक्ला, प्रांत मंत्री शैलेष कुमार सिंह, प्रधानाचार्य गोविंद सिंह, कोषाध्यक्ष प्रहलाद मोदी, भाजपा जिलाध्यक्ष विवेकानंद मिश्र आदि मौजूद रहे।

भूमि पूजन एवं शिलान्यास








सा विद्या या विमुक्तये'
अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान, विद्या भारती के सरस्वती विद्या मंदिर, वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के नवीन प्रकल्प का आज महर्षि वशिष्ठ की पावन धरा जनपद बस्ती में भूमि पूजन एवं शिलान्यास पूज्यवर योगी आदित्यनाथ जी, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के द्वारा किया गया! 
सरस्वती शिशु मंदिर, बच्चों के अंदर भारत और भारतीयता के प्रति, एक नागरिक के रूप में उन कर्तव्यों का बोध कराने, सुयोग्य नागरिक बनाने हेतु अपने राष्ट्रीय दायित्व का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन कर रहा है।
यहां से निकले हुए छात्र आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाज को नेतृत्व देकर आदरणीय प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi जी के 'विकसित भारत' के संकल्प के साथ जुड़कर पूरी प्रतिबद्धता के साथ अपना योगदान दे रहे हैं। 
विद्या भारती परिवार को हृदय से बधाई एवं जनपद वासियों को शुभकामनाएं!

Sunday, August 31, 2025

मूल्य-आधारित और समावेशी शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण : डॉ सौरभ मालवीय











बस्ती। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान आज देश के सबसे बड़े शैक्षणिक आंदोलनों में से एक है, जो गुणवत्तापूर्ण (गुणात्मक) और संस्कृति-युक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। विद्या भारती मूल्य-आधारित और समावेशी शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में रत है। विद्या भारती का मूल उद्देश्य भारतीय संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रीयता आधारित शिक्षा प्रणाली का प्रचार प्रसार करना है। 
1952 में गोरखपुर में एक विद्यालय से प्रारंभ कर यह संस्था आज 684 जिलों में 12,118 विद्यालयों का संचालन कर रही है। उपरोक्त बातें डॉ सौरभ मालवीय, क्षेत्रीय मंत्री पूर्व उत्तर प्रदेश क्षेत्र ने सरस्वती विद्या मन्दिर रामबाग बस्ती में विद्या भारती गोरक्ष प्रान्त के प्रचार विभाग की एक दिवसीय कार्यशाला के दौरान आयोजित पत्रकार वार्ता में कहीं।

डॉ मालवीय ने कहा कि विद्या भारती के विद्यालय देश के अनेक दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित हैं, इनमें जनजातीय इलाके और सीमावर्ती जिले शामिल हैं। भारत की सीमाएँ पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, चीन और म्यांमार से लगती हैं, और इन 127 सीमावर्ती जिलों के 167 विकास खण्डों में विद्या भारती ने 211 विद्यालय स्थापित किए हैं। इसके अतिरिक्त, संस्था देशभर में 8,000 से अधिक अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र भी संचालित कर रही है, जो समाज के वंचित वर्ग को नि:शुल्क शिक्षा सुविधा प्रदान कर रहे हैं। वर्तमान में 35.33 लाख से अधिक छात्र- छात्राएं विद्या भारती के स्कूलों में अध्ययनरत हैं और उन्हें 1.53 लाख से अधिक शिक्षक शिक्षित कर रहे हैं।
कार्यशाला के समापन सत्र में क्षेत्रीय संगठन मंत्री हेमचन्द्र जी ने कहा कि यदि हम विद्या भारती जैसे संगठनों की बात करें तो प्रचार विभाग विद्यालयों में हो रहे सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक कार्यों को समाज के सामने लाता है। इससे समाज को प्रेरणा मिलती है और विद्यार्थी, शिक्षक तथा अभिभावक सभी को गर्व की अनुभूति होती है। 

इससे पूर्व प्रान्त की दोनों समितियों की एक दिवसीय प्रान्तीय कार्यशाला का उद्घाटन हेमचन्द्र जी (क्षेत्रीय संगठन मंत्री, विद्या भारती पूर्वी उ०प्र०) डॉ० सौरभ मालवीय (क्षेत्रीय मंत्री, विद्या भारती पूर्वी उ०प्र०) के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन व पुष्पार्चन के साथ किया गया। द्वितीय सत्र में प्रो. किरणलता डंगवाल जी के द्वारा ए० आई० के प्रयोग के संदर्भ में प्रशिक्षण प्रदान किया गया। तृतीय सत्र में संगठनात्मक रचना एवं अष्ट बिन्दु पर डॉ० योगेन्द्र प्रताप सिंह, क्षेत्र संयोजक, प्रचार विभाग) ने एवं अंकित गुप्ता (प्रान्त संयोजक, प्रचार विभाग) ने कार्य योजना के महत्व को रेखांकित किया। समापन सत्र को हेमचन्द्र जी ने संबोधित किया। अतिथि परिचय प्रधानाचार्य गोविन्द सिंह जी ने कराया। इस अवसर पर प्रान्त की दोनों समितियों के मंत्री डॉ० शैलेश कुमार सिंह व डॉ दुर्गा प्रसाद अस्थाना, प्रदेश निरीक्षक राम सिंह व जियालाल, प्रधानाचार्य सरस्वती शिशु मन्दिर भानु प्रकाश मिश्र, प्रधानाचार्य बालिका विद्या मन्दिर प्रियंका सिंह, प्रान्त संवाददाता प्रेमशरण मिश्र व सोशल मीडिया प्रमुख नरेन्द्र चन्द कौशिक, अशोक मिश्र, डॉ उपेन्द्र नाथ द्विवेदी, लव कुमार, रमेश सिंह, योगेश कुमार, शम्भू नारायण कुशवाहा, चन्द्रप्रकाश सिंह, सहित सभी संकुलों के प्रचार, सोशल मीडया व संवाददाता प्रमुख उपस्थित रहे।

Sunday, August 24, 2025

शिक्षा की गुणवत्ता सर्वोच्च प्राथमिकता : डॉ. सौरभ मालवीय
















गोरखपुर।  शिशु शिक्षा समिति, गोरक्ष प्रांत की बैठक में शिक्षा की गुणवत्ता पर ज़ोर। शिशु शिक्षा समिति, गोरक्ष प्रांत के संयोजकों और प्रांत प्रमुखों (आयाम) की एक महत्वपूर्ण बैठक सरस्वती शिशु मंदिर, पक्कीबाग, गोरखपुर में संपन्न हुई। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे कार्यों की समीक्षा करना और भविष्य की रणनीतियों पर विचार-विमर्श करना था।
बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में क्षेत्रीय मंत्री विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र डॉ. सौरभ मालवीय उपस्थित रहे। अपने उद्बोधन में सभी संयोजकों और प्रांत प्रमुखों से आह्वान किया कि वे अपने-अपने विषयों से संबंधित क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ कार्य करें। डॉ. मालवीय ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखना और उसे निरंतर बेहतर बनाना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हमें अपने प्रयासों से बच्चों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करना है।
बैठक में उपस्थित सभी पदाधिकारियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में किए जा रहे कार्यों का ब्यौरा प्रस्तुत किया और आने वाली चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया। इस दौरान, संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों और नवाचारों पर भी चर्चा हुई।
बैठक के अंत में, सभी ने डॉ. मालवीय के विचारों का स्वागत किया और शिक्षा के क्षेत्र में उनके मार्गदर्शन में और अधिक लगन से कार्य करने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती की वंदना से हुआ। प्रधानाचार्य डॉक्टर राजेश सिंह जी द्वारा अतिथि परिचय हुआ।                                        
इस अवसर पर शिशु शिक्षा समिति मंत्री डॉक्टर शैलेश सिंह, प्रदेश निरीक्षक राम सिंह,जियालाल, संभाग निरीक्षक कन्हैया चौबे,दिवाकर राम त्रिपाठी सहित समस्त विषय संयोजक एवं प्रांत प्रमुख उपस्थित रहे।

Wednesday, August 20, 2025

क्षेत्रीय पुस्तक लेखन कार्यशाला






लखनऊ। विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के तत्वावधान में क्षेत्रीय दो दिवसीय पुस्तक लेखन कार्यशाला 17 अगस्त से 20 अगस्त को सम्पन्न हुई। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य भारतीय ज्ञान परम्परा, संस्कार युक्त शिक्षा, स्वदेशी का भाव, राष्ट्र प्रेम तथा राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव विद्यालय के छात्रों हेतु उच्च गुणवत्ता की पाठ्य पुस्तकों का लेखन करना है।
कार्यशाला में हिन्दी विषय (कक्षा नवम से द्वादश) तथा अंग्रेज़ी विषय (कक्षा IX एवं X) के पुस्तक लेखन कार्य हेतु सभी नगरीय समितियों से 24 प्रतिभागी इस सृजनात्मक कार्य में सक्रिय रूप से उपस्थित हैं।
समापन सत्र में रहने का अवसर मिला। इस अवसर पर श्री अशोक शर्मा एवं श्री राजेन्द्र बाबू (प्रबंधक, शारदा प्रकाशन)  उपस्थित रहें.

Friday, August 8, 2025

सरस्वती यात्रा एवं रक्षाबंधन उत्सव






सरस्वती विद्या मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल, सेक्टर-क्यू, अलीगंज, लखनऊ 
 विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के तत्वावधान में संचालित है, विद्यार्थियों में सांस्कृतिक मूल्यों और देशभक्ति की भावना के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विद्यालय द्वारा समय-समय पर विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों और विभागों में "सरस्वती यात्रा" का आयोजन किया जाता है।
 रक्षाबंधन का उत्सव जो सामाजिक समरसता एवं सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। यह कार्यक्रम विद्यार्थियों में भाईचारे, सम्मान और राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रबल प्रदान करता है।