Sourabh Malviya डॉ.सौरभ मालवीय
विचारों की धरा पर शब्दों की अभिव्यक्ति...
Friday, June 20, 2025
Thursday, June 19, 2025
विश्व को भारत की देन है योग : करे योग रहे निरोग
डॉ. सौरभ मालवीय
भारतीय संस्कृति में योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। योग शब्द संस्कृत के युज से बना है। युज का अर्थ है शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों को एकत्रित करना। योग साधक को उसकी आत्मा से जोड़ता है। योग के द्वारा साधक अपनी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों को एकत्रित कर लेता है। योग का संबंध शरीर एवं मन दोनों से है। यह अध्यात्म से भी जुड़ा है। योग के आठ अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि। योग एक कला, साधना एवं विद्या है। योग की चार विधियां हैं, जिनमें कर्म योग, भक्ति योग, राज योग एवं ज्ञान योग सम्मिलित हैं।
भारतीय संस्कृति में योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। योग शब्द संस्कृत के युज से बना है। युज का अर्थ है शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों को एकत्रित करना। योग साधक को उसकी आत्मा से जोड़ता है। योग के द्वारा साधक अपनी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों को एकत्रित कर लेता है। योग का संबंध शरीर एवं मन दोनों से है। यह अध्यात्म से भी जुड़ा है। योग के आठ अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि। योग एक कला, साधना एवं विद्या है। योग की चार विधियां हैं, जिनमें कर्म योग, भक्ति योग, राज योग एवं ज्ञान योग सम्मिलित हैं।
योग अति प्राचीन है। मान्यता है कि जब सभ्यता ने जन्म लिया, तब योग का भी जन्म हुआ। योग एक प्राचीन विद्या है। कैलाश पर निवास करने वाले भगवान शिव को आदि योगी एवं आदि गुरु माना जाता है। भगवान शिव के पश्चात वैदिक काल के ऋषि-मुनियों ने योग को अपनाया। उन्होंने इसका संरक्षण किया था तथा इसके साथ-साथ इसका प्रचार-प्रसार भी किया। भगवान श्रीकृष्ण योगराज माने जाते हैं। वेदों, उपनिषदों, महाभारत एवं भगवद्गीता में भी योग का उल्लेख है। श्रीमद् भगवद्गीता में कहा गया है-
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
अर्थात हे धनंजय ! आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित होकर तुम कर्म करो। यह समभाव ही योग कहलाता है।
मध्य युग में पतंजलि ने योग को सुव्यवस्थित रूप प्रदान करके इसका प्रचार- प्रसार किया। इसके पश्चात विभिन्न पंथों ने योग का विस्तार किया तथा इसका प्रचार- प्रसार करते हुए इसे लोकप्रिय बनाया। इनमें सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव एवं शाक्त पंथ आदि सम्मिलित हैं।
गीतोपदेश में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडव पुत्र अर्जुन को विस्तार से योग का महत्व बताया। उन्होंने कर्मयोग, भक्तियोग एवं ज्ञानयोग का वर्णन करते हुए अर्जुन से कहा-
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।
अर्थात् हे अर्जुन! मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।
इस श्लोक से योग की महत्ता का पता चलता है।
सिन्धु घाटी की सभ्यता से प्राप्त वस्तुओं से पता चलता है कि उस समय भी लोग योग करते थे। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में खुदाई में योग मुद्राओं वाली वस्तुएं प्राप्त हुईं। इसका अर्थ है कि भारत में हजारों वर्षों से लोग योग करते आ रहे हैं।
योग के प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका
योग प्राचीन काल की वह विद्या है, जो आज भी अत्यधिक लोकप्रिय है तथा दिन प्रतिदिन इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हो रही है। इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है कि प्रतिवर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने एवं योग को वैश्विक पहचान देने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्ती भूमिका है। उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के पश्चात अनेक ऐसे सरहानीय कार्य किए हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की एक नई पहचान स्थापित हुई है। इनमें योग भी सम्मिलित है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का विचार प्रथम बार 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के दौरान प्रस्तुत किया था। योग को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के उद्देश से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि योग भारत की प्राचीन परंपरा का अमूल्य उपहार है। यह मन और शरीर की एकतात्मकता, विचार और कार्य, संयम और सम्पूर्णता, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य, स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण का प्रतीक है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, अपितु अपने आपको, दुनिया और प्रकृति के साथ एकता की भावना की खोज करने के लिए है। हमारी जीवन शैली को बदलकर और चेतना जागृत कर कल्याण में सहायता कर सकता है। आइए हम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को अपनाने की दिशा में कार्य करें।
इस प्रारंभिक प्रस्ताव के पश्चात संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 14 अक्टूबर 2014 को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पांडुलिपि’ प्रस्ताव पर अनौपचारिक परामर्श किया। इस परामर्श का आयोजन भारत के प्रतिनिधिमंडल द्वारा किया गया था। इसके पश्चात 11 दिसंबर 2014 को भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पांडुलिपि प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इसे विश्व के 177 सदस्य देशों से समर्थन प्राप्त हुआ। यह सुखद एवं सराहनीय था कि इस पहल को वैश्विक नेताओं का भारी समर्थन प्राप्त हुआ। विश्व के कुल 177 देशों ने प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया, जो इस प्रकार के किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव के लिए सह-प्रायोजकों की सर्वाधिक संख्या है। यह देश के लिए गौरव का विषय रहा। इसके पश्चात भारत के नेतृत्व में 21 जून 2015 को प्रथम ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया था। इस अवसर पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में 84 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इस दिवस पर हजारों लोगों ने दिल्ली के राजपथ पर योगासन किया था। इस कार्यक्रम को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में संग्रहित किया गया था। तब से प्रतिवर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है।
वास्तव में योग भारत की अमूल्य धरोहर है, जो उसने विश्व को प्रदान की है। योग मनुष्य के तन एवं मन दोनों को स्वस्थ रखता है। योग करने से जहां मन- मस्तिष्क को शान्ति प्राप्त होती है, वहीं इससे शरीर भी स्वस्थ रहता है। देश के महापुरुषों ने योग को अति आवश्यक बताते हुए इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला है।
दुखों को समाप्त करता है योग
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार- अभ्यास चीजों को आसान बना देता है। योग के माध्यम से ज्ञान, ज्ञान के माध्यम से प्रेम आता है, और प्रेम से परमानंद। वह कहते हैं कि प्रत्येक आत्मा संभावित रूप से दिव्य है। बाहरी और आंतरिक प्रकृति को नियंत्रित करके इस देवत्व को प्रकट करना लक्ष्य है। वह कहते हैं कि योग सिखाता है कि आत्मा है और इस आत्मा के अंदर सारी शक्ति है। यह पहले से ही मौजूद है और अगर हम इस शरीर पर अधिकार हासिल कर सकते हैं, तो सारी शक्ति सामने आ जाएगी। सारा ज्ञान आत्मा में है। लोग संघर्ष क्यों कर रहे हैं ? दुख को कम करने के लिए। सारे दुख हमारे शरीर पर अधिकार न होने के कारण होते हैं। इस प्रकार आप अपने शरीर पर अधिकार करें तो दुनिया के सभी दुख दूर हो जाएंगे। संसार के सारे दुख इन्द्रियों में हैं। दुख और सुख केवल इन्द्रियपरायण व्यक्ति के ही हो सकते हैं। योग इन्द्रियों, इच्छा और मन को नियंत्रित करके सापेक्ष ज्ञान से परे जाना है। वह कहते हैं कि काश ईश्वर की कृपा से ऐसा होता कि सभी मनुष्य इतने गठित होते कि उनके मन में दर्शन, रहस्यवाद, भावना और कार्य के सभी तत्व समान रूप से पूर्ण रूप से मौजूद रहते। यही आदर्श है, मेरे पूर्ण मनुष्य का आदर्श। इन चारों दिशाओं में सामंजस्य बिठाना मेरा धर्म का आदर्श है। और यह धर्म उसी से प्राप्त होता है, जिसे हम भारत में योग- ‘ईश्वर से मिलन’ कहते हैं।
वास्तव में योग हमारे मन- मस्तिष्क को स्थिरता प्रदान करता है, शान्ति प्रदान करता है, धैर्य प्रदान करता है। योग मनुष्य के आत्मबल में वृद्धि करता है, उसका आत्मविश्वास बढ़ाता है। आज के तनाव के युग में योग और भी महत्वपूर्ण एवं उपयोगी हो जाता है। हमें अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय योग के लिए भी अवश्य निकालना चाहिए। 24 घंटे में एक घंटा स्वयं के लिए अर्थात शरीर के लिए देना चाहिए। करे योग रहे निरोग।
Wednesday, June 18, 2025
शब्द साधक अटलजी, हमारे अटलजी
भारत की राजनीति में अपने चरित्र, ध्येयनिष्ठा, राष्ट्र के प्रति समर्पण, सहिष्णुता, शब्दसाधक, मिलनसारिता, सहजता, सरलता और गरिमा आदि गुणों से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले श्री अटल बिहारी वाजपेयी को केवल लेखनी की सीमा में रख पाना बड़ा दुष्कर है. वे बहुआयामी व्यक्तित्व के शाश्वत स्वरूप हैं, जिनको पाकर भारतीय राजनीति धन्य हुई है. उनके विराट मानस पटल में राजनेता केवल एक विभाग भर है, वे मूलतः समाजनेता हैं, जिनका उद्देश्य भारत को परम वैभव के शिखर पर आरूढ़ करना है. वे भारतीय संस्कृति के ऋषि प्रेषित प्रवक्ता हैं, जो समाज में भारद्वाज, अत्रि, याज्ञवल्य, पाराशर, पतंजलि, भृगु आदि की परंपरा को चिरस्थायी स्वरूप देने हेतु कटिबद्ध है, वे आध्यात्म और विज्ञान के सेतु हैं. अटलजी प्रखर वक्ता हैं. उनकी शैली मोहिनी है, हृदय संवेदनाओं से भरा हुआ है, उनकी कविताओं में समष्टि से व्यक्ति तक के विचार समाहित रहते हैं. अटलजी के लेखों में राष्ट्र और राष्ट्रवाद जीवंत रूप में दर्शनीय है. भारत की संस्कृति, सभ्यता, राजधर्म, राजनीति और विदेश नीति आदि विषयों पर अटलजी की लेखनी सभी के लिए प्रेरक है. उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया. ऐसे व्यक्तित्व पर लिखना सचमुच कठिन है. कितना भी प्रयास करें, बहुत कुछ उल्लेख में शेष रह जाएगा. उनकी लेखनी धन्य है. मैंने इस पुस्तक के माध्यम से अटलजी के पत्रकारीय जीवन को संजोने का एक छोटा सा प्रयास किया है. आशा करता हूं कि राष्ट्र की युवा पीढ़ी अटलजी के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर उनके सपनों के अनुरूप भारत के नव निर्माण का प्रयत्न करेगी.
डॉ. सौरभ मालवीय
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