Monday, July 14, 2025

सुदृढ़ हो रही है उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था


डॉ. सौरभ मालवीय  
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था निरंतर सुदृढ़ हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज लखनऊ स्थित अपने सरकारी आवास पर आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में प्रदेश की आर्थिक स्थिति, विकास संरचना और राजस्व स्रोतों की व्यापक समीक्षा की। बैठक में मुख्यमंत्री ने प्रदेश की आर्थिक यात्रा को ‘सम्भावनाओं से परिणाम तक’ की प्रक्रिया बताते हुए कहा कि यह रूपांतरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में विकसित भारत की परिकल्पना से प्रेरित है। उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था अब केवल आंकड़ों की प्रगति नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर बदलाव का प्रमाण बन चुकी है।

बैठक में प्रस्तुत विवरण के अनुसार प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) वर्ष 2024-25 में 29.6 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े तक पहुंचने का अनुमान है, जो वर्ष 2020-21 की तुलना में लगभग 80 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। इसी अवधि में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में प्रदेश की भागीदारी 8.4 प्रतिशत से बढ़कर 8.9 प्रतिशत हो गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश की दिशा में ठोस उपलब्धि बताते हुए यह भी कहा कि हमें वर्ष 2026 तक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत की भागीदारी प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर अभी से ठोस रणनीति बनानी चाहिए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश की आर्थिक संरचना में स्पष्ट परिवर्तन दिखाई दे रहा है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों की भागीदारी में निरंतर वृद्धि हो रही है, जबकि कृषि आधारित भागीदारी क्रमिक रूप से कम हो रही है। उन्होंने ‘मेक इन यूपी’ मॉडल को अगले दशक के लिए औद्योगिक रणनीति का आधार बताते हुए निर्देश दिए कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में नई इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाए।

उन्हें कृषि क्षेत्र की समीक्षा में अवगत कराया गया कि खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2024-25 में 722 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचने का अनुमान है, जो वर्ष 2020-21 की तुलना में 100 लाख मीट्रिक टन अधिक है। जिलावार उत्पादकता में अभी भी बड़ा अंतर है। कुछ जिलों में गेहूं की उत्पादकता 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुँच गई है, वहीं कुछ जिलों में यह 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास है। मुख्यमंत्री ने इसे असंतुलन मानते हुए निर्देश दिए कि तकनीकी सहायता और किसान जागरूकता अभियानों के माध्यम से यह अंतर कम किया जाए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पशुपालन क्षेत्र में राज्य का दुग्ध उत्पादन देश में सर्वाधिक है। अंडा उत्पादन में भी सुधार हुआ है। लेकिन केवल कुल उत्पादन पर्याप्त नहीं, बल्कि प्रति पशु उत्पादकता में सुधार लाने की आवश्यकता है। उन्होंने नस्ल सुधार, फीड प्रबंधन और डेयरी व्यवसाय से जुड़े डेटा का नियमित विश्लेषण करने के निर्देश दिए।

मुख्यमंत्री को विनिर्माण क्षेत्र की समीक्षा में अवगत कराया गया कि प्रदेश में पंजीकृत फैक्ट्रियों की संख्या वर्ष 2024-25 में 27 हजार से अधिक हो गई है। मुख्यमंत्री ने ने कहा कि विनिर्माण को जनपदों में समान रूप से प्रसारित किया जाए, जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार और राज्य को राजस्व मिले। उन्होंने जिला उद्योग केन्द्रों की क्षमता को और मजबूत करने की आवश्यकता बताई, ताकि उद्योगों से निरंतर संवाद हो सके और नई इकाइयों का पंजीयन और सहायता तंत्र बेहतर बने।

प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं के निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। एसटीपीआई के माध्यम से वर्ष 2024-25 में 46,800 करोड़ रुपये मूल्य की आईटी सेवाओं का निर्यात हुआ, जो वर्ष 2021-22 की तुलना में 40 प्रतिशत अधिक है। मुख्यमंत्री ने इसे युवाओं के लिए अपार संभावनाओं वाला क्षेत्र बताया। इसी तरह पर्यटन, होटल और व्यापार जैसे सेवा क्षेत्रों में भी सकारात्मक संकेत देखे गए, विशेषकर कोविड के बाद पर्यटन क्षेत्र में आगंतुकों की संख्या में क्रमशः सुधार हुआ है।

बैठक में राज्य के दो प्रमुख राजस्व स्रोतों, जीएसटी और आबकारी शुल्क की समीक्षा भी की गई। वित्तीय वर्ष 2024-25 में राज्य द्वारा एकत्रित जीएसटी 1.49 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वहीं आबकारी से प्राप्त राजस्व 52,574 करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंच गया, जिसमें वर्ष दर वर्ष लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। मुख्यमंत्री ने इन आंकड़ों को ‘राजस्व स्वावलंबन के प्रमाण’ बताते हुए कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि राजस्व वृद्धि सेवा विस्तार और सामाजिक योजनाओं के विस्तार का आधार बने।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सड़क परिवहन क्षेत्र की समीक्षा के दौरान इसे ‘भविष्य का संभावनाशील क्षेत्र’ बताया। उन्होंने कहा कि राज्य को निजी बस सेवाओं के लिए नये रूट चिन्हित करने होंगे, ताकि एक ओर आमजन को आवागमन की सुविधा मिले और दूसरी ओर राज्य को राजस्व का नया स्रोत प्राप्त हो। इससे परिवहन क्षेत्र में रोजगार की भी बड़ी संभावनाएं उत्पन्न होंगी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि विभिन्न विभागों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले आंकड़े पूर्णतः प्रमाणिक और अद्यतन होने चाहिए। उन्होंने निर्देश दिए कि कृषि, विनिर्माण, सेवा, ऊर्जा और मानव संसाधन जैसे प्रत्येक प्रमुख क्षेत्र के लिए स्पष्ट, समयबद्ध और परिणामोन्मुख रोडमैप तैयार कर नियोजन विभाग के समन्वय से सतत समीक्षा की व्यवस्था हो। सही आंकड़े ही नीति निर्माण के सही आधार बनते हैं और यही उत्तर प्रदेश को विकसित राज्यों की श्रेणी में तेजी से आगे ले जाने में सहायक होंगे।

Sunday, July 13, 2025

नये शिक्षा सत्र का हम करें अभिनंदन


डॉ. सौरभ मालवीय  
शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र प्रारंभ हो चुका है। प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में प्राय: नया शिक्षा सत्र अप्रैल महीने में आरंभ हो जाता है, किन्तु उच्च शिक्षा के संस्थानों में जुलाई से ही नये शिक्षा सत्र का प्रारंभ होता है। यदि देखा तो वास्तव में सभी शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र जुलाई महीने में ही आरंभ होता है। इससे पूर्व का समय तो शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने, पुस्तकें, स्टेशनरी, बैग और यूनिफॉर्म आदि खरीदने में व्यतीत हो जाता है। जो समय मिलता है, उसमें विद्यार्थी अपनी नई पुस्तकों से परिचय करते हैं। प्राय: विद्यार्थी भाषा की पुस्तकें पढ़ते हैं, क्योंकि उनमें कहानियाँ और कविताएं होती हैं, जो बच्चों को अति प्रिय हैं। 

कुछ समय विद्यालय जाने के पश्चात ग्रीष्म कालीन अवकाश आ जाता है। यह ग्रीष्म कालीन अवकाश ग्रीष्म ऋतु के मध्य में आता है। इस समयावधि में अत्यधिक भीषण गर्मी पड़ती है। प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश मई के अंतिम सप्ताह से लेकर पूरे जून तक रहता है। इस समयावधि में उच्च तापमान के कारण सभी विद्यालय एवं महाविद्याल बंद रहते हैं।  

बच्चे ग्रीष्मकालीन अवकाश की वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि इसमें उन्हें सबसे अधिक दिनों का अवकाश प्राप्त होता है। बच्चों के लिए ग्रीष्म कालीन अवकाश किसी पर्व से कम नहीं होता। इस समयावधि में उन्हें कोई चिंता नहीं होती अर्थात उन्हें न तो प्रात:काल में शीघ्र उठकर विद्यालय जाने की चिंता होती है और न ही गृहकार्य करने की कोई चिंता होती है। प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपनी नानी के घर जाते हैं। वहां वे अपने ननिहाल के लोगों से मिलते हैं। सब उन्हें बहुत लाड़-प्यार करते हैं। नानी उन्हें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं। नाना और मामा उन्हें घुमाने के लिए लेकर जाते हैं और उन्हें उनके पसंद के खिलौने दिलवाते हैं। आज के एकल परिवार के युग में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपने दादा-दादी के घर भी जाते हैं। वहां भी उन्हें बहुत ही लाड़- प्यार मिलता है। नानी की तरह दादी भी बच्चों को कहानियां सुनाती हैं। इन कथा- कहानियों के माध्यम से वे बच्चों में संस्कार पोषित करती हैं, जो उनके चरित्र का निर्माण करते हैं। यही संस्कार जीवन में उनका मार्गदर्शन करते हैं। अपने पैतृक गांव अथवा नगरों में जाने से वे वहां की संस्कृति से जुड़ते हैं। अपने सगे-संबंधियों से मिलते हैं। इससे उन्हें अपने संबंधों का पता चलता है। उनमें अपने संबंधियों के प्रति स्नेह का भाव पैदा होता है। वे अपने संबंधियों के प्रति अपने दायित्व को भी समझते हैं। बच्चों में संबंध मूल्य और जीवन मूल्य की समझ बनती है। सम्मान और स्नेह का भाव उपजता है। 

ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान बच्चे अपने माता- पिता के साथ पर्यटन स्थलों पर भी जाते हैं। अधिकतर लोग ऐसे स्थानों पर जाते हैं, जहां तापमान कम रहता है। ये पहाड़ी क्षेत्र होते हैं। इससे वे वहां की संस्कृति एवं रीति- रिवाजों के बारे में जान पाते हैं। इसके अतिरिक्त वे धार्मिक स्थलों एवं ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों पर भी घूमने जाते हैं। घूमने का अर्थ केवल सैर सपाटा और मनोरंजन करना नहीं है, अपितु पर्यटन से बहुत सी शिक्षाएं मिलती हैं। धार्मिक स्थलों पर जाने से मन को शान्ति प्राप्त होती है तथा बच्चे अपने गौरवशाली संस्कृति से जुड़ पाते हैं। उन्हें अपने ईष्ट देवी-देवताओं के बारे में जानने का अवसर मिलता है। उनमें आस्था का संचार होता है। उनका आत्मबल एवं आत्म विश्वास बढ़ता है। ऐतिहासिक स्थलों पर जाने से उन्हें अपने इतिहास को जानने का अवसर प्राप्त होता है। ये व्यवहारिक ज्ञान है, जो उन्हें आने- जाने से प्राप्त होता है। यह उनके लिए आवश्यक भी है। वे जिन चीजों के बारे में पुस्तकों में पढ़ते उनके बारे में उन्हें सहज जानकारी प्राप्त होती है। इसका उनके मन- मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।          
शिक्षकों द्वारा ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए भी विद्यार्थियों को गृहकार्य दिया जाता है। इस दौरान विद्यालय अवश्य बंद रहते हैं, किन्तु ट्यूशन सेंटर खुले रहते हैं। बच्चे ट्यूशन के लिए जाते हैं और अपना गृहकार्य भी करते हैं। इसके अतिरिक ग्रीष्म कालीन अवकाश के दौरान बहुत से संस्थान अनेक प्रकार के कम समयावधि वाले कोर्स प्रारंभ करते हैं, उदाहरण के लिए चित्रकला, संगीत, गायन, नृत्य, मिट्टी के खिलौने बनाने, सजावटी सामान बनाना आदि। इस समयावधि में बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने एवं नई- नई चीजें सीखने का अवसर प्राप्त होता है। बहुत से बच्चे खेलों की ओर रुझान करते हैं। समय अभाव के कारण वे खेल नहीं पाते थे, किन्तु अवकाश में उन्हें अपनी पसंद के खेल खेलने का अवसर मिल जाता है। क्षेत्र के बच्चे अपनी-अपनी टीमें बना लेते हैं और आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं. इससे उनमें खेल भावना का विकास होता है। किसी भी खिलाड़ी के खेल का प्रारंभ इसी प्रकार होता है। पहले वे अपने मित्रों के साथ खेलता है. फिर इसी प्रकार वह खेल स्पर्धाओं में खेलने लगता है। इस प्रकार एक दिन वह देश के लिए पदक जीतने वाला खिलाड़ी बन जाता है। वास्तव में यह समय बच्चों के नैसर्गिक गुणों को निखारने का कार्य करता है।               
      
ग्रीष्म कालीन अवकाश व्यतीत होने के पश्चात विद्यालय व अन्य शिक्षण संस्थान पुन: खुल जाते हैं। विद्यार्थियों की दिनचर्या पुनः पूर्व की भांति हो जाती है। वे प्रात:काल में शीघ्र उठ जाते हैं। नित्य कर्म से निपटने के पश्चात विद्यालय जाने के लिए तैयार होते हैं। वे नाश्ता करके घर से निकल जाते हैं। दिनचर्या केवल बच्चों की ही परिवर्तित नहीं होती, अपितु उनके साथ- साथ उनके माता- पिता की दिनचर्या भी परिवर्तित हो जाती है। उनकी माता प्रातः काल में शीघ्र उठकर उनके लिए नाश्ता बनाती है। उनके लिए टिफिन तैयार करती है। उन्हें विद्यालय या स्कूल बस तक छोड़ने जाती है। बहुत सी माताएं बच्चों को विद्यालय लेकर भी जाती हैं और उन्हें वापस भी लाती हैं। बहुत से विद्यालयों के बाहर दोपहर में महिलाएं अपने बच्चों की प्रतीक्षा में खड़ी रहती हैं। बहुत से बच्चों को उनके पिता विद्यालय छोड़ने जाते हैं।                            
 
नये शिक्षा सत्र में बच्चे बहुत प्रसन्न दिखाई देते हैं। उनकी कक्षा का एक स्तर बढ़ जाता है। वे स्वयं को पहले से श्रेष्ठ अनुभव करते हैं। पिछली कक्षा में भी उन्होंने कड़ा परिश्रम किया था। उसके कारण ही परीक्षा में वे सफलता प्राप्त कर पाए। परिणामस्वरूप अब वह उससे अगली कक्षा में अर्थात उससे ऊंची कक्षा में हैं। जब विद्यालय खुले थे, तब बहुत अधिक गर्मी थी। बच्चे गर्मी से व्याकुल थे, किन्तु उनके चेहरे पर उत्साह के भाव दिखाई दे रहे थे। बहुत से विद्यालयों में रोली एवं तिलक लगाकर बच्चों का स्वागत किया गया है। यह एक अच्छी पहल है। इससे बच्चों में अपनी संस्कृति के प्रति लगाव उत्पन्न होता है। 

Saturday, July 12, 2025

प्रान्त मंत्री समूह की बैठक




प्रान्त मंत्री समूह की बैठक 
विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र, लखनऊ

भारत पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी शुरू करने वाला पहला देश: डब्ल्यूएचओ


वैश्विक स्वास्थ्य सेवा नवाचार के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने "पारंपरिक चिकित्सा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनुप्रयोग का मापन" शीर्षक से एक तकनीकी संक्षिप्त विवरण जारी किया है। इसमें पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों, विशेष रूप से आयुष प्रणालियों के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को एकीकृत करने में भारत के अग्रणी प्रयासों की सराहना की गई है। यह विवरण इस विषय पर भारत के प्रस्ताव के बाद जारी किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप पारंपरिक चिकित्सा में एआई के अनुप्रयोग हेतु डब्‍ल्‍यूएचओ का पहला रोडमैप विकसित हुआ है।

अपनी आयुष प्रणालियों की क्षमताओं को उन्नत और व्यापक बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की क्षमता का लाभ उठाने के भारत के प्रयास प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जो देश को डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार और पारंपरिक चिकित्सा के एकीकरण में एक वैश्विक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने 2023 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर वैश्विक भागीदारी (जीपीएआई) शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर कहा, "हमने 'सभी के लिए एआई' की भावना से प्रेरित होकर सरकारी नीतियाँ और कार्यक्रम विकसित किए हैं। हमारा प्रयास सामाजिक विकास और समावेशी विकास के लिए एआई की क्षमताओं का पूरा लाभ उठाना है।"

केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री, श्री प्रतापराव जाधव ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी विवरण में उल्लिखित भारत की एआई-आधारित पहल, अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उन्होंने कहा, "यह मान्यता पारंपरिक चिकित्सा की वैश्विक प्रासंगिकता का विस्तार करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उभरती तकनीकों का उपयोग करने के प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के दूरदर्शी दृष्‍टिकोण के साथ हमारी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। एआई को आयुष प्रणालियों के साथ एकीकृत करके—और आयुर्वेदिक के ऐतिहासिक छाप प्रदर्शन (एसएएचआई) पोर्टल, राष्‍ट्रीय आयुष रुगणता और मानकीकृत इलेक्‍ट्रानिक शब्‍दावली (नमस्‍ते) पोर्टल और आयुष अनुसंधान पोर्टल जैसे अग्रणी डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से—भारत न केवल अपने सदियों पुराने चिकित्सा ज्ञान की रक्षा कर रहा है, बल्कि व्यक्तिगत, साक्ष्य-आधारित और विश्व स्तर पर सुलभ स्वास्थ्य सेवा के भविष्य को आकार देने में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है।"

आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा, "डब्ल्यूएचओ दस्तावेज़ में भारत की ओर से किए गए कई अग्रणी एआई-संचालित नवाचारों पर प्रकाश डाला गया है - जिसमें प्रकृति-आधारित मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग करके पूर्वानुमानित निदान से लेकर आयुर्वेद ज्ञान और आधुनिक जीनोमिक्स को एक साथ लाने वाली अभूतपूर्व आयुर्जेनोमिक्स परियोजना शामिल है। इस डिजिटल परिवर्तन का मूल आधार आयुष ग्रिड है। यह 2018 में शुरू किया गया एक व्यापक डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफ़ॉर्म है जो कई नागरिक-केंद्रित पहलों जैसे कि एसएएचआई पोर्टल, नमस्‍ते पोर्टल और आयुष अनुसंधान पोर्टल की नींव का काम करता है। ये एआई-सक्षम प्लेटफ़ॉर्म न केवल भारत की पारंपरिक ज्ञान चिकित्सा प्रणालियों को संरक्षित और मान्य कर रहे हैं, बल्कि साक्ष्य-आधारित, डिजिटल स्वास्थ्य सेवा ढाँचों के भीतर उनके वैश्विक एकीकरण को भी आगे बढ़ा रहे हैं।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह प्रकाशन न केवल वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा परिदृश्य में भारत के बढ़ते प्रभाव को मान्यता देता है, बल्कि एआई और आयुष क्षेत्र में कई प्रमुख भारतीय नवाचारों को भी मान्यता देता है।

यह दस्तावेज़ आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी, सोवा रिग्पा और होम्योपैथी में एआई-संचालित अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला को प्रदर्शित करता है, जिसमें निदान सहायता प्रणालियाँ भी शामिल हैं जो नाड़ी मापन, जीभ परीक्षण और प्रकृति मूल्यांकन जैसी पारंपरिक विधियों को मशीनों के अनुप्रयोग और गहन तांत्रिका नेटवर्क के साथ एकीकृत करती हैं। ये प्रयास निदान सटीकता को बढ़ा रहे हैं और व्यक्तिगत निवारक देखभाल को सक्षम बना रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के संक्षिप्त विवरण में एक उल्लेखनीय विशेषता आयुर्जेनोमिक्स का उल्लेख है। यह वैज्ञानिक उपलब्धि जीनोमिक्स को आयुर्वेदिक सिद्धांतों के साथ जोड़ती है। इस पहल का उद्देश्य आयुर्वेदिक संरचना प्रकारों के कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-आधारित विश्लेषण का उपयोग कर रोगों के पूर्वानुमानित संकेतों की पहचान करना और स्वास्थ्य संबंधी सुझावों को व्यक्तिगत बनाना है। यह दस्तावेज़ आधुनिक रोग स्थितियों में पुनर्प्रयोजन हेतु हर्बल विधियों के जीनोमिक और आणविक आधार को समझने के प्रयासों पर भी प्रकाश डालता है जो पारंपरिक ज्ञान को समकालीन विज्ञान के साथ एकीकृत करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्‍धि  है।

पारंपरिक ज्ञान को डिजिटल बनाने की भारत की पहल, जैसे पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल), को स्वदेशी चिकित्सा विरासत के संरक्षण और ज़िम्मेदारी से उपयोग के वैश्विक मॉडल के रूप में सराहा जाता है। इसके अलावा, प्राचीन ग्रंथों के सूचीकरण और अर्थ विश्लेषण के लिए एआई-संचालित उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे समय-परीक्षित चिकित्सीय ज्ञान तक आसान पहुँच संभव हो रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यता प्राप्त एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू औषधि की कार्यप्रणाली की पहचान, आयुर्वेद, पारंपरिक चीनी चिकित्सा और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों के बीच तुलनात्मक अध्ययन, और रस, गुण और वीर्य जैसे पारंपरिक मापदंडों का आकलन करने के लिए कृत्रिम रासायनिक सेंसरों के विकास हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उपयोग है। ये तकनीकी समाधान पारंपरिक औषधियों को मान्य और आधुनिक बनाने में मदद कर रहे हैं।

दस्तावेज़ में ऑनलाइन परामर्श के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों को शामिल करने, आयुष चिकित्सकों के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने और पारंपरिक चिकित्सा को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा के साथ एकीकृत करने के लिए अंतर-प्रचालनीय प्रणालियों के विकास में भारत के व्यापक प्रयासों की भी सराहना की गई है।
आयुष मंत्रालय इस मान्यता का स्वागत करता है और इसे पारंपरिक चिकित्सा के लिए एक मज़बूत वैज्ञानिक तंत्र बनाने में भारत के नेतृत्व का प्रमाण मानता है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पारंपरिक चिकित्सा के व्यापक ढांचे के अंतर्गत परिकल्पित वैश्विक सहयोग और ज़िम्मेदार नवाचार को बढ़ावा देने के लिए देश की प्रतिबद्धता की भी पुष्टि करता है।

मोदी ने यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में मराठा सैन्य परिदृश्य को शामिल करने की सराहना की


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के मराठा सैन्य परिदृश्यों को प्रतिष्ठित यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने पर अत्यधिक गर्व और प्रसन्नता व्यक्त की है।
उन्होंने कहा कि अंकित धरोहर में 12 भव्‍य किले शामिल हैं- 11 महाराष्ट्र में और 1 तमिलनाडु में स्थित है।
प्रधानमंत्री ने मराठा साम्राज्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, "जब हम गौरवशाली मराठा साम्राज्य की बात करते हैं, तो हम इसे सुशासन, सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक गौरव और सामाजिक कल्याण पर जोर के साथ जोड़ते हैं। ये महान शासक हमें किसी भी अन्याय के आगे झुकने से मना करने के लिए प्रेरित करते हैं।"
उन्होंने नागरिकों से मराठा साम्राज्य के समृद्ध इतिहास के बारे में जानने के लिए इन किलों का भ्रमण करने का आग्रह किया।
प्रधानमंत्री ने 2014 में रायगढ़ किले की अपनी यात्रा की यादें साझा की और एक तस्वीर भी साझा की जिसमें उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रधानमंत्री ने उक्‍त सम्‍मान के बारे में यूनेस्‍को की एक पोस्‍ट का उत्‍तर देते हुए कहा:
"हर भारतीय इस सम्‍मान से उत्साहित है।
इन 'मराठा सैन्य परिदृश्यों' में 12 भव्‍य किले शामिल हैं जिनमें से 11 महाराष्ट्र में और 1 तमिलनाडु में हैं।
जब हम गौरवशाली मराठा साम्राज्य की बात करते हैं, तो हम इसे सुशासन, सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक गौरव और सामाजिक कल्याण पर ज़ोर से जोड़ते हैं। ये  महान शासक किसी भी अन्याय के आगे न झुकने के अपने साहस से हमें प्रेरित करते हैं।
मैं सभी से इन किलों को देखने और मराठा साम्राज्य के समृद्ध इतिहास के बारे में जानने का आह्वान करता हूं।"
"यहां 2014 में रायगढ़ किले की मेरी यात्रा की तस्वीरें हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज को नमन करने का अवसर मिला। उस यात्रा को मैं हमेशा संजो कर रखूंगा।"

Friday, July 11, 2025

साहित्य में मनभावन सावन

 

डॉ. सौरभ मालवीय 
वर्षा ऋतु कवियों की प्रिय ऋतु मानी जाती है। इस ऋतु में सावन मास का महत्व सर्वाधिक है। ज्येष्ठ एवं आषाढ़ की भयंकर ग्रीष्म ऋतु के पश्चात सावन का आगमन होता है। सावन के आते ही नीले आकाश पर काली घटाएं छा जाती हैं। जब वर्षा की बूंदें धरती पर पड़ती हैं, तो संपूर्ण वातावरण मिट्टी की सुगंध से भर जाता है। प्रकृति झूम उठती है। वृक्ष-पौधे झूमने लगते हैं। मनुष्य ही नहीं, अपितु सभी जीव-जंतु प्रसन्न हो जाते हैं। जिसे तन-मन अनुभव करता है, उस ऋतु का शब्दों में उल्लेख करना कोई सरल कार्य नहीं है। किंतु हमारे कवियों ने इस ऋतु को बहुत ही सुंदर शब्दों में बांधकर इसे काव्य के रूप में प्रस्तुत किया है। वेदों की ऋचाओं की अनुभूति सावन के मनोहर भाव को व्यक्त की है ।
 
कविता का कोई भी काल रहा हो, सभी काल के कवियों ने वर्षा ऋतु पर जमकर लिखा है। भक्तिकाल एवं रीतिकाल के संधि कवि सेनापति वर्षा ऋतु का चित्रण करते हुए कहते हैं कि मेघ बहुत जल बरसाते हैं एवं सारंग की भांति ध्वनि करते हैं। मोर अत्यंत सुंदर लगते हैं तथा वे मेघ के घिर आने पर प्रसन्नचित्त होते हैं। मेघ वर्षा जल देने के कारण जीवन के आधार माने जाते हैं। कवि सेनापति के शब्दों में-
सारंग धुनि सुनावै घन रस बरसावै,
मोर मन हरषावै अति अभिराम है।
जीवन अधार बड़ी गरज करनहार,
तपति हरनहार देत मन काम है।।
सीतल सुभग जाकी छाया जग सेनापति,
पावत अधिक तन मन बिसराम है।
संपै संग लीने सनमुख तेरे बरसाऊ,
आयौ घनस्याम सखि मानौं घनस्याम है।।
 
रीतिबद्ध काव्य के आचार्य कवि देव अपनी कविता में विरहिणी नायिका की मनोव्यथा का वर्णन करते हैं।
नायिका कह रही है कि मैंने रात्रि में एक स्वप्न देखा, जिसमें मुझे प्रतीत हुआ कि झरझर का शब्द करती हुई झीनी-झीनी बूंदे गिर रही हैं एवं गर्जना के साथ आकाश में घटाएं घिरी हुई हैं। उस वातावरण में श्रीकृष्ण ने आकर मुझसे कहा है कि चलो आज झूला झूलते हैं। प्रियतम का यह प्रस्ताव सुनकर मैं अत्यधिक प्रसन्न हो गई। कवि देव कहते हैं-
झहरि-झहरि झीनी बूंद है परति मानो,
घहरि-घहरि घटा घिरी है गगन में।
आनि कह्यो स्याम मो सों, चलो झूलिबे को आजु,
फूली ना समानी, भयी ऐसी हौं मगन मैं।।
चाहति उठ्योई, उड़ि गयी सो निगोड़ी नींद,
सोय गये भाग मेरे जागि वा जगन में।
आंखि खोलि देखौं तो मैं घन हैं न घनस्याम,
वेई छायी बूंदें मेरे आंसू ह्वै दृगन में।।
 
अयोध्या नरेश एवं रीतिकाल की स्वच्छंद काव्य-धारा के अंतिम कवि द्विजदेव ने भी वर्षा ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। वे कहते हैं-
कारी नभ कारी निसि कारियै डरारी घटा,
झूकन बहत पौन आनंद को कंद री।
'द्विजदेव' सांवरी सलोनी सजी स्याम जू पै,
कीन्हौं अभिसार लखि पावस अनंद री।
नागरी गुनागरी सु कैसें डरै रैनि डर,
जाके संग सोहैं ए सहायक अमंद री।
बाहन मनोरथ उमाहिं संगवारी सखी,
मैन मद सुभट मसाल मुख चंद री।।
 
सितारगढ़ के नरेश शंभुनाथ सिंह सोलंकी 'नृप शंभु ने सावन का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। इन्हें शंभु कवि एवं नाथ कवि के नाम से भी जाना जाता है। वे मनभावान सावन का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
सावन के मास मनभावन के संग प्यारी,
अटा पर ठाढ़ी भई घटा अंधियारी में।
दामिनी के धोखे चक चौंझे दृग कवि नाथ,
छबिन सों मुरि दुरै पिय अंग वारी में।।
कोटि रति वारों ऐसी राधाजू के रूप पर,
रंभा रंक कहा शंक शची के निहारी में।
पागि रही रस जागि रही ज्योति लाजनि में,
नेह भीजो वेह मेह भीजो श्वेत सारी में।।
 
रीतिकाल के कवि घनश्याम शुक्ल सावन में उमड़-उमड़ कर आ रही घटाओं के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं-
उमड़ि घुमड़ि घन आवत अटान चोट,
घन-घन जोति छटा छटकि-छटकि जात।
सोर करें चातक चकोर पिक चहवार
मोर ग्रीव मोरि-मोरि मटकि-मटकि जात।।
सावन लौं आवन सुनो है घनश्याम जू को,
आंगन लौ आय-पांय पटकि-पटकि जात।
हिये बिरहानल की तपनि अपार उर,
हार गज मोतिन को चटकि-चटकि जात।।
 
रीतिकालीन कवि श्रीपति जल से भरे मेघों का वर्णन करते हैं कि किस प्रकार वे दसों दिशाओं से दामिनी साथ लाते हैं। वे कहते हैं-
जलभरे झूमैं मानो भूमै परसत आय,
दसहू दिसान घूमैं दामिनी लए लए।
धूरिधार धूमरे से, धूमसे धुंधारेकारे,
धुरवान धारे धावैं छबिसों छए छए।।
श्रीपति सुकवि कहै घेरि घेरि घहराहिं,
तकत अतन तन ताव तैं तए तए।
लाल बिनु केसे लाज चादर रहैगी आज,
कादर करत मोहिं बादर नए नए।।
 
अंबिकादत्त व्यास भी मेघों का अति चित्रण करते हुए कहते हैं-
मेघ देस-देस नट खट आसा पूरि आये,
कान्हर लै गूजरी हिंडोर छबि छाकी है।
दीप-दीप भैरव भये हैं नारि बृंदन सों,
ललित सुहाई लीला सारंग छटा की है।
श्यामल तमाल कोस कोस लौं कुमोद कीनों,
अंबादत्त सोहनी त्यों छाया बदरा की है।
कोऊ सुघरई सों श्रीकृष्ण को जु पाऔं तब,
आली या कल्यान की बहार बरसा की है।।
 
कवि कवींद्र 'उदयनाथ' सावन में ग्राम के वातावरण का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
लाग्यो यह सावन सनेह सरसावन,
सलिल बरसावन पटाधर ठटान को।
गोरी गांव गांवन लगी हैं गीत गावन,
हिंडोरो झूम लावन उठान छ्वै अटान को।।
भनत कबिंद्र बिरहीजन सतावन सो,
देखो चमकावनरी बिज्जुल छटान को।
प्यारे परौ पांवन लला को लीजै नावन सो,
देखो आजु आवन सुहावन घटान को।।
 
सुमित्रानंदन पंत सावन के अनुपम सौन्दर्य का चित्रण करते हुए कहते हैं-
झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूंदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर।
आंधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर् चर्
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।
 
सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ सावन के आगमन का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
जेठ नहीं, यह जलन हृदय की,
उठकर जरा देख तो ले;
जगती में सावन आया है,
मायाविन! सपने धो ले।
जलना तो था बदा भाग्य में
कविते! बारह मास तुझे;
आज विश्व की हरियाली पी
कुछ तो प्रिये, हरी हो ले।
 
जयशंकर प्रसाद सावन की रात्रि के सौन्दर्य को अपने शब्दों में बांधते हुए कहते हैं-
नव तमाल श्यामल नीरद माला भली
श्रावण की राका रजनी में घिर चुकी,
अब उसके कुछ बचे अंश आकाश में
भूले भटके पथिक सदृश हैं घूमते।
अर्ध रात्रि में खिली हुई थी मालती,
उस पर से जो विछल पड़ा था, वह चपल
मलयानिल भी अस्त व्यस्त हैं घूमता
उसे स्थान ही कहीं ठहरने को नहीं।
 
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी प्रेमिका को संबोधित करते हुए कहते हैं-
मेरी सांसों पर मेघ उतरने लगे हैं,
आकाश पलकों पर झुक आया है,
क्षितिज मेरी भुजाओं से टकराता है,
आज रात वर्षा होगी।
कहां हो तुम?
 
कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं-
लाए कौन संदेश नए घन!
अम्बर गर्वित,
हो आया नत,
चिर निस्पंद हृदय में उसके
उमड़े री पुलकों के सावन!
लाए कौन संदेश नए घन!
 
हरिवंशराय बच्चन वर्ष ऋतु में चलने वाली हवा को अनुभव करते हुए कहते हैं-
बरसात की आती हवा।
वर्षा-धुले आकाश से,
या चन्द्रमा के पास से,
या बादलों की सांस से;
मघुसिक्त, मदमाती हवा,
बरसात की आती हवा।
यह खेलती है ढाल से,
ऊंचे शिखर के भाल से,
अस्काश से, पाताल से,
झकझोर-लहराती हवा;
बरसात की आती हवा।
 
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' कहते हैं-
सखी ! बादल थे नभ में छाये
बदला था रंग समय का
थी प्रकृति भरी करूणा में
कर उपचय मेघ निश्चय का।
वे विविध रूप धारण कर
नभ–तल में घूम रहे थे
गिरि के ऊंचे शिखरों को
गौरव से चूम रहे थे।
 
त्रिलोक सिंह ठकुरेला सावन में कृषकों का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
सावन बरसा जोर से, प्रमुदित हुआ किसान।
लगा रोपने खेत में, आशाओं के धान।।
आशाओं के धान, मधुर स्वर कोयल बोले।
लिये प्रेम-संदेश, मेघ सावन के डोले।
‘ठकुरेला’ कविराय, लगा सबको मनभावन।
मन में भरे उमंग, झूमता गाता सावन।।
 
दुष्यंत कुमार कहते हैं-
दिन भर वर्षा हुई
कल न उजाला दिखा
अकेला रहा
तुम्हें ताकता अपलक।
 
आती रही याद
इंद्रधनुषों की वे सतरंगी छवियां
खिंची रहीं जो
मानस-पट पर भरसक।
 
कलम हाथ में लेकर
बूंदों से बचने की चेष्टा की-
इधर-उधर को भागा
भींग गया पर मस्तक
(लेखक – स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
 

Thursday, July 10, 2025

अपनी जड़ों की ओर लौटने का प्रयास


डॉ. सौरभ मालवीय 
हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता विश्व की सर्वाधिक गौरवशाली एवं समृद्ध सभ्यताओं में एक है। विश्व के अनेक देशों में जब बर्बरता का युग था, उस समय भी हमारी भारतीय सभ्यता अपने शीर्ष पर थी। इसका सबसे प्रमुख कारण है शिक्षा। हमारे पूर्वजों ने शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत उन्नति की। शिक्षा के माध्यम से ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ। इस पवित्र भारत भूमि पर वेद-पुराणों की रचना हुई तथा यह सब शिक्षा के कारण ही संभव हो सका। मनुष्य के लिए जितने आवश्यक वायु, जल एवं भोजन है, उतनी ही आवश्यक शिक्षा भी है। शिक्षा के बिना मनुष्य पशु समान है।
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्।
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्।
विद्या राजसु पुज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः।।
अर्थात विद्या मनुष्य का विशेष रूप है, विद्या गुप्त धन है। वह भोग की दाता, यश की दाता एवं उपकारी है। विद्या गुरुओं की गुरु है। विद्या विदेश में बंधु है। विद्या देवता है। राजाओं के मध्य विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं। विद्या विहीन मनुष्य पशु है।
निसंदेह किसी भी सभ्य समाज के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। शिक्षा केवल जीविकोपार्जन के लिए नहीं होती कि विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय से शैक्षिक प्रमाण-पत्र प्राप्त कर राजकीय या अराजकीय नौकरी प्राप्त कर ली जाए। शिक्षा का उद्देश्य तो मानव के संपूर्ण जीवन का विकास करना होता है। हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता में शिक्षा को अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। मनुष्य के भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। शिक्षित व्यक्ति के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं होता।
विद्या वितर्का विज्ञानं स्मति: तत्परता किया।
यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते।।
अर्थात विद्या, तर्क, विज्ञान, स्मृति, तत्परता एवं दक्षता, जिसके पास ये छह गुण हैं, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। विद्या अथवा शिक्षा प्रकाश का वह स्त्रोत है, जो मानव जीवन को प्रकाशित करता है। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति श्रेष्ठ शिक्षा पद्धति थी। किन्तु कालांतर में शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आया तथा शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी प्राप्त करने तक ही रह गया। बहुत समय से वर्तमान शिक्षा पद्धति में परिवर्तन की बात उठ रही थी तथा ऐसी शिक्षा पद्धति की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। साथ ही बच्चों के कंधों से बस्ते का भार कुछ कम किया जा सके।
  
उत्तम शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम में चारित्रिक विकास एवं मानवीय गुणों को विकसित करने के विषयों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। विज्ञान एवं तकनीकी विषयों से केवल मनुष्य की भौतिक उन्नति होती है, किन्तु औद्योगिक उन्नति के साथ-साथ मानवीय मूल्य भी विकसित होने चाहिए, जिससे नागरिक सामाजिक, नैतिकता तथा आध्यात्मिक मूल्यों को प्राप्त कर सकें। वर्तमान युग में मनुष्य ज्यों-ज्यों भौतिक उन्नति कर रहा है, त्यों-त्यों वह जीवन के मूल्यों को पीछे छोड़ता जा रहा है। आपसी पारिवारिक संबंध टूटते जा रहे हैं। किसी को किसी की तनिक भी चिंता नहीं है। परिवार के वृद्धजनों को वृद्धाश्रम में डाल दिया जाता है तथा बच्चे बोर्डिंग स्कूल में भेज दिए जाते हैं। ग्रामों की पैतृक संपत्ति को बेचकर महानगरों में छोटे-छोटे आवासों में भौतिक सुख-सुविधा में जीने को ही मनुष्य ने जीवन की सफलता मान लिया है। यदि हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना है, तो सबसे पहले वर्मान शिक्षा पद्धति में सुधार करना होगा। इसी उद्देश्य के दृष्टिगत उत्तर प्रदेश सरकार राज्य के सभी विद्यालयों में प्रथम कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक अनुभूति पाठ्यक्रम लागू करने जा रही है।
  
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस बात पर चिंता प्रकट की जा रही है कि मानव का जीवन- मूल्यों से विश्वास उठता जा रहा है। वह चरित्र की अपेक्षा धन को महत्त्व दे रहा है। इससे उसका नैतिक पतन हो रहा है। मनुष्य के चारित्रिक पतन के कारण समाज में अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए पाठ्यक्रम में ऐसे परिवर्तन की आवश्यकता है, जिससे मनुष्य का नैतिक विकास हो तथा वह एक सुसभ्य समाज का निर्माण करने में सहायक सिद्ध हो सके। नि:संदेह शिक्षा इसका सबसे सशक्त माध्यम है। नई शिक्षा पद्धति का उद्देश्य ऐसे सदाचारी मनुष्यों का विकास करना है, जिनमें दया, करुणा, सहानुभूति एवं साहस हो। जो नैतिक मूल्यों से संपन्न हों, जिनके लिए मानवीय मूल्य सर्वोपरि हों।  
 
शिक्षा का प्रथम उद्देश्य विद्यार्थी के चरित्र का निर्माण करना होता है। भारतीय संस्कृति में चरित्र निर्माण पर सर्वाधिक बल दिया गया है। मनुस्मृति के अनुसार सभी वेदों का ज्ञाता विद्वान भी सच्चरित्रता के अभाव में श्रेष्ठ नहीं है, किन्तु केवल गायित्री मंत्र का ज्ञाता पंडित यदि चरित्रवान है, तो श्रेष्ठ है। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं होना चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करना है, ताकि वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकास कर सके। शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी को उसके अधिकारों के साथ-साथ उसके कर्त्तव्यों के बारे में भी बताना है, ताकि वह अपने अधिकारों को प्राप्त कर सके तथा परिवार एवं समाज के प्रति अपने कर्त्तव्यों का भी निर्वाहन कर सके। शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी के जीवन स्तर को उन्नत व समृद्ध बनाना भी है। शिक्षा के माध्यम से वह अपने जीवन को सुगम, उन्नत एवं समृद्ध बना सके। विद्यार्थियों को अक्षर ज्ञान के साथ-साथ व्यवसायिक कार्यों का भी प्रशिक्षण दिया जाता था, ताकि वे अपने-अपने कार्यों में भी निपुणता प्राप्त कर सकें। एक नैतिकता से परिपूर्ण चरित्रवान व्यक्ति ही अपने कुल तथा देश का नाम ऊंचा करता है।
 
उत्तर प्रदेश में ऐसी ही शिक्षा पद्धति को लागू किया जा रहा है। कम शब्दों में बात की जाए, तो मूल रूप से शिक्षा के दो ही उद्देश्य हैं, प्रथम यह कि व्यक्ति शिक्षा ग्रहण कर समृद्धि प्राप्त करे एवं प्रसन्नतापूर्वक जीवनयापन करे तथा द्वितीय यह कि वह दूसरों को प्रसन्नता एवं सहायता प्रदान करने योग्य हो। छोटी कक्षाओं से लेकर महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय तक की शिक्षा का कुल उद्देश्य यही है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब वर्तमान शिक्षा का उद्देश्य समृद्धि ही है तो फिर अनुभूति पाठ्यक्रम की आवश्यकता क्यों है? 

वास्तव में हम सुख-सुविधाओं को जीवन का उद्देश्य मान बैठे हैं। आज उच्च शिक्षा प्राप्त करके तथा उसके माध्यम से उच्च पद प्राप्त करना। तत्पश्चात अकूत धन-संपदा एकत्रित करना ही जीवन का उद्देश्य बनकर रह गया है। इस भागदौड़ में मानवीय मूल्यों का निरंतर ह्रास हो रहा है। इन्हीं मानवीय मूल्यों के दृष्टिगत उत्तर प्रदेश में अनुभूति पाठ्यक्रम लागू किया जा रहा है।  राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हो रहे हैं। बात चाहे प्राथमिक शिक्षा की हो, माध्यमिक शिक्षा की हो, व्यावसायिक शिक्षा की हो या उच्च शिक्षा की, सभी क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं। आशा है कि राज्य के शिक्षकों एवं शिक्षाविदों के माध्यम से अनुभूति पाठ्यक्रम विद्यार्थियों में नई ऊर्जा का संचार करेगा तथा यह विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगो सिद्ध होगा। 

सुदृढ़ हो रही है उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था

डॉ. सौरभ मालवीय   मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था निरंतर सुदृढ़ हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ...