Sourabh Malviya डॉ.सौरभ मालवीय
विचारों की धरा पर शब्दों की अभिव्यक्ति...
Monday, June 30, 2025
भेंट
पत्रकारिता के नक्षत्र रहे स्वर्गीय रोहित सरदाना के पूज्य पिताजी श्रीमान रतन चन्द्र सरदाना जी से मिलने का अवसर. कुरुक्षेत्र.
Sunday, June 29, 2025
Saturday, June 28, 2025
Friday, June 27, 2025
मन को तृप्त करने वाली पुस्तक
सचित्र मिश्रा
विगत दिनों डॉ. सौरभ मालवीय जी की पुस्तक ‘भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप’ पढ़ने का सुअवसर मिला। इस पुस्तक को दिल्ली के शिल्पायन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ने प्रकाशित किया है।
पुस्तक पढ़कर मन तृप्त हो गया। भागदौड़ के समय में संतों के विषय में पढ़कर चित्त को शांति प्राप्त हुई। इस पुस्तक ने विचारने पर विवश कर दिया कि हमारे पास संतों की शिक्षाओं एवं उनके उपदेशों के रूप में ज्ञान का अपार भंडार है, किन्तु हम भौतिक वस्तुओं एवं सुख-साधन एकत्रित करने में अपने संपूर्ण जीवन को समाप्त कर रहे हैं। दीन-दुखियों की सेवा के लिए हम क्या कार्य कर रहे हैं? क्या हम ईश्वर के मार्ग पर चल रहे हैं? क्या हम जो कार्य कर रहे हैं, उससे किसी का अहित तो नहीं हो रहा है? क्या हम केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए असत्य के साथ खड़े हैं? क्या यही जीवन का उद्देश्य है? प्रश्न अनेक हैं, परन्तु इनका उत्तर हमें स्वयं खोजना होगा।
मालवीय जी का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि “भारत में अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने विश्व को मानवता का संदेश दिया। संतों की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उस समय थीं जब उन्होंने उपदेश दिए थे। आज जब लोग पश्चिमी सभ्यता के पीछे भाग रहे हैं तथा जीवन मूल्यों को भूल रहे हैं, ऐसी परिस्थिति में संतों की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार अत्यंत आवश्यक हो जाता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने यह पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में 15 संतों के जीवन एवं उनके उपदेशों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, जिनमें रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास, महान कृष्ण भक्त सूरदास, महान भक्त कवि रसखान, कबीर, रैदास, मीराबाई, नामदेव, गोरखनाथ, तुकाराम, मलूकदास, धनी धरमदास, धरनीदास, दूलनदास, भीखा साहब एवं चरणदास सम्मिलित हैं। इन सभी संतों ने देश में भक्ति की गंगा प्रवाहित की। इनकी रचनाओं ने लोगों में भक्ति का संचार किया। इसमें ऐसे भी संत हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन में रहकर ईश्वर की भक्ति की। उन्होंने अपने परिवार एवं परिवारजनों के प्रति अपने सभी दायित्वों का निर्वाह किया। इनमें ऐसे भी संत हैं, जिन्होंने सांसारिक संबंधों से नाता तोड़कर अपना संपूर्ण जीवन प्रभु की भक्ति में व्यतीत कर दिया।“ संतों ने कभी किसी को अपने पारिवारिक कर्तव्यों से विमुख होने के लिए नहीं कहा, अपितु अपने संपूर्ण कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर की साधना करने का संदेश दिया।
मालवीयजी ने अपनी पुस्तक में संतों के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी संकलित की है। वह लिखते हैं कि प्रश्न यह है कि संत कौन है? जो सहज भाव से विचार करे तथा सहज आचरण करे, वही संत कहलाने के योग्य है। संत वह होता है, जो मान मिलने पर अभिमान नहीं करता। वह अहंकार नहीं करता। वह अहंकार से दूर रहता है। यदि कोई उसका अपमान करे, तो वह क्रोधित नहीं होता। उसके बुरे की कामना नहीं करता। उसे अपशब्द नहीं कहता। संतों की वाणी मधुर होती है। वह सबका कल्याण चाहते हैं। उनका व्यवहार संयमशील होता है। वे धैर्यवान होते हैं। उनका चरित्र इतना प्रभावशाली होता है कि जो भी उनके समीप आता है, उनसे प्रभावित हो जाता है। संतों की वाणी ईश्वर की वाणी है। उनकी वाणी में ईश्वर का संदेश होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने संतों की चर्चा करते हुए कहा है-
समदुःख सुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः।
तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्य निन्दात्म संस्तुतिः।।
अर्थात जो सुख एवं दुख दोनों को ही समान मानता है, जिसे अपने मान अथवा अपमान, अपनी स्तुति एवं निन्दा की चिंता नहीं होती, जो धैर्यवान होता है, वही संत है।
महात्मा कबीर ने संत की परिभाषा इस प्रकार व्यक्त की है-
निरबैरी निहकामता, साईं सेती नेह।
विषया सून्यारा रहै, संतन के अंग एह।।
अर्थात जिसका कोई शत्रु नहीं है, जो निष्काम है, जो ईश्वर से प्रेम करता है तथा विषयों से दूर रहता है, वही संत है।
प्रेम से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। मीराबाई का उदाहरण कालजयी है। विक्रमादित्य ने मीराबाई को विष देकर मारने का प्रयास किया। मीराबाई के लिए कांटों की सेज बिछाई गई। पूजा के पुष्पों की डलिया में पुष्पों में छिपाकर सर्प भेजा गया, ताकि वह मीराबाई के प्राण हर ले। उन्हें विष का प्याला दिया गया, परन्तु मीराबाई को कोई हानि नहीं पहुंची। मान्यता है कि विक्रमादित्य द्वारा भेजा गया विष अमृत तथा सर्प पुष्पों की माला बन गया। कांटों की सेज पुष्पों की सेज बन गई। गिरधर गोपाल के भक्तों का मानना था कि यह सब गिरधर गोपाल की भक्ति का ही फल था कि कोई भी मीराबाई का बाल बांका तक न कर सका। मीराबाई कहती हैं-
मीरा मगन भई, हरि के गुण गाय।
सांप पेटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दीयों जाय।
न्हाय धोय देखण लागीं, सालिगराम गई पाय।
जहर का प्याला राणा भेज्या, अमरित दीन्ह बनाय।
न्हाय धोय जब पीवण लागी, हो गई अमर अंचाय।
सूल सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय।
सांझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाय।
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे बिघन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पै बलिजाय।
वास्तव में इन संतों ने समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार किया तथा लोगों को आपस में प्रेमभाव से रहने का संदेश दिया। अन्य संतों की भांति संत तुकाराम ने भी समाज में व्याप्त कुरीतियों आदि का विरोध किया। वह जाति-पांत तथा ऊंच-नीच का भेद नहीं मानते थे वह कहते थे कि सभी मनुष्य परमपिता ईश्वर की संतान हैं, इसलिए सभी मनुष्य समान हैं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ईश्वर की भक्ति एवं भक्ति-प्रचार के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने गृहस्थ में रहकर ईश्वर की भक्ति का संदेश दिया। वह कहते थे कि मनुष्य के अपने परिवारजनों के प्रति सभी कर्त्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। वह कहते थे की संसार का सुख तो क्षणिक है, वास्तविक सुख तो ईश्वर की भक्ति में है।
उनका कहना था कि लोग अपने वस्त्र तो धोकर स्वच्छ कर लेते हैं, परंतु मन में विकारों की जो गंदगी भरी पड़ी है, उसे साफ नहीं करते। वह कहते हैं-
तुका बस्तर बिचारा क्या करे रे,
अन्तर भगवान होय।
भीतर मैला केंव मिटे रे,
मरे उपर धोय।।
अर्थात बेचारे वस्त्र को बार-बार धोने से क्या होगा? भगवान बाहरी वस्त्र में नहीं, अपितु हृदय में निवास करते हैं। आन्तरिक मैल को कब मिटाओगे? केवल बाहरी स्वच्छता से तो हम मर जाएंगे।
आज के समय में संतों की इन शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार की नितांत आवश्यकता है। पुस्तक की भाषा सरल एवं प्रभावशाली है। नि:संदेह यह पुस्तक समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करेगी। आशा है कि मालवीयजी अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेंगे। यह पुस्तक उपयोगी एवं संग्रहणीय है।
पुस्तक का नाम : भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप
लेखक : डॉ. सौरभ मालवीय
प्रकाशक : शिल्पायन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली
पृष्ठ : 239
मूल्य : 400
Thursday, June 26, 2025
Wednesday, June 25, 2025
आदिवासी सशक्तिकरण हेतु धरती आबा जनभागीदारी अभियान प्रारंभ
देश के 31 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में 1 लाख से ज़्यादा आदिवासी गाँवों और बस्तियों को शामिल करने वाला एक ऐतिहासिक अभियान
स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे बड़े जनजातीय संपर्क और सशक्तिकरण अभियान- धरती आबा जन भागीदारी अभियान (डीएजेए) के तहत, पिछले 9 दिनों में गांव और पीवीटीजी आवास स्तर पर आदिवासी सशक्तिकरण शिविरों ने जनजातीय समुदायों के लिए अब तक प्रभावशाली परिणाम दिए हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अभियान देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित 22,000 से अधिक आदिवासी सशक्तिकरण शिविरों के माध्यम से 53 लाख से अधिक जनजातीय नागरिकों तक पहुँच चुका है।
इस अभियान के तहत 1.38 लाख से अधिक लोगों को आधार नामांकन की सुविधा दी गई है, 1.68 लाख से अधिक आयुष्मान भारत कार्ड जारी किए गए हैं, इसके अलावा पीएम-किसान के लिए 46,000 से अधिक किसानों ने पंजीकरण कराया है और 22,000 से अधिक लाभार्थियों ने पीएम उज्ज्वला योजना के लिए नामांकन कराया है, साथ ही 32,000 से अधिक नए पीएम जनधन खाते खोले गए हैं। अभियान का मुख्य लक्ष्य केन्द्र सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का पूर्ण लाभ दिलाना है।
इसे जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा समावेशी शासन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। 15 जून से 15 जुलाई 2025 तक, महीने भर चलने वाला यह राष्ट्रीय आंदोलन 31 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के 550 से अधिक जिलों के 1 लाख से अधिक जनजातीय गांवों और पीवीटीजी बस्तियों में 5.5 करोड़ से अधिक जनजातीय नागरिकों तक पहुँच रहा है, जिससे सरकारी सेवाएँ सीधे लोगों के दरवाज़े तक पहुँच रही हैं।
जनजातीय गौरव वर्ष के एक अन्य महत्वपूर्ण पहल के रूप में, डीएजेए जनजातीय गौरव और प्रतिरोध के प्रतीक भगवान बिरसा मुंडा (धरती आबा) को सम्मानित करता है, और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास की कल्पना को प्रतिबिंबित करता है - जो आदिवासी समुदायों को भारत के विकास के केन्द्र में रखता है।
इसके अलावा, एफआरए दावे, पेंशन नामांकन, पोषण सहायता, आदिवासी स्टार्ट-अप समर्थन और कानूनी सहायता जैसी सेवाएं एक एकीकृत, शिविर-आधारित मॉडल के माध्यम से प्रदान की गई हैं।
स्थानीय आवाज़ें, राष्ट्रीय प्रभाव
लद्दाख: माननीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने बाजरा आधारित आदिवासी पोषण को बढ़ावा देते हुए चांगथांग के रोंगो गांव का दौरा किया।
मध्य प्रदेश: माननीय राज्यपाल श्री मंगूभाई छगनभाई पटेल ने सांस्कृतिक उत्सव के साथ सेवा वितरण को जोड़ते हुए सीहोर में डीएजेए का शुभारंभ किया।
असम: मुख्यमंत्री श्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुवाहाटी में डीएजेए का उद्घाटन किया और इसे पूर्वोत्तर में जनजातीय विकास में एक नया अध्याय बताया।
महाराष्ट्र: मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फड़नवीस ने आदिवासी उद्यमिता और आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कई शिविर खोले।
आंध्र प्रदेश: राज्य ने पार्वतीपुरम मण्यम में कमजोर वनवासी समूहों पर ध्यान केंद्रित किया।
केरल: वायनाड में एक जनजातीय सम्मेलन ने सहयोगी योजना के लिए जिला टीमों को एकजुट किया।
नेतृत्व की प्रेरणाप्रद बातें
श्री जुएल ओराम, केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री: "यह केवल एक अभियान नहीं है - यह समानता और सम्मान के लिए एक जन आंदोलन है। यह हमारे आदिवासी समुदायों के लिए सम्मान है जो प्रकृति के साथ सद्भाव में रहते हैं।"
श्री दुर्गा दास उइके, जनजातीय कार्य राज्य मंत्री : "आदिवासी युवाओं और महिलाओं की बढ़ती भागीदारी आकांक्षा और समावेश की एक नई भावना को दर्शाती है।"
श्री विभु नायर, सचिव, जनजातीय कार्य: "वास्तविक समय के डिजिटल डैशबोर्ड से लेकर सांस्कृतिक पुनरुत्थान तक, डीएजेए एक नया शासन मानक स्थापित कर रहा है।"
डीएजेए के 5 स्तंभ: शासन का एक नया मॉडल
1. जनभागीदारी - जनजातीय आवाज़ों द्वारा संचालित, समुदायों द्वारा संचालित
2. परिपूर्णता - हर पात्र परिवार को अधिकार प्राप्त होंगे
3. सांस्कृतिक समावेशन - जनजातीय भाषाओं और कला का उपयोग करके जुड़ना
4. अभिसरण - मंत्रालय, सीएसओ, युवा समूह का एक साथ काम करना
5. अंतिम मील वितरण - सेवाओं के साथ दूरदराज के इलाकों तक पहुँचना
राष्ट्रव्यापी लामबंदी: एक जन अभियान
550 से अधिक जिले, 3,000 से अधिक ब्लॉक सक्रिय
700 से अधिक आदिवासी समुदायों और 75 पीवीटी की भागीदारी
माय भारत, एनएसएस, नागरिक समाज और आदिवासी छात्रों जैसे युवा समूह सक्रिय रूप से लगे हुए हैं
पूरे भारत में सांस्कृतिक कार्यक्रम: आदिवासी व्यंजन उत्सव, लोक नृत्य, हस्तशिल्प प्रदर्शनी
कार्रवाई का आह्वान: जन भागीदारी आंदोलन में शामिल हों
मंत्रालय प्रत्येक नागरिक, शिक्षाविद, स्वयंसेवक और मीडिया प्लेटफॉर्म से इस परिवर्तनकारी आंदोलन का हिस्सा बनने का आग्रह करता है। आप इस तरह योगदान दे सकते हैं:
जन सेवा शिविर में जाएँ और जागरूकता बढ़ाएँ
आदिवासी कहानियाँ, परंपराएँ और सफलताएँ साझा करें
हैशटैग का उपयोग करें: #धरतीआबाअभियान #पीएमजनमन #आदिवासियों का सशक्तीकरण विकसित भारत #जनजातीय गौरव वर्ष
स्वदेशी ज्ञान, भाषाओं और कला का दस्तावेजीकरण करें और उसका जश्न मनाएँ
आइये धरती आबा के साथ मिलकर विकसित भारत की ओर चलें। डीएजेए एक सरकारी पहल से कहीं अधिक है - यह आदिवासी पहचान में सम्मान, समावेश और गौरव के लिए एक जमीनी क्रांति है।
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