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Wednesday, September 3, 2025

पुस्तक भेंट



उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मा. श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज के आवास पर  संगठनात्मक चर्चा के उपरांत अपनी पुस्तक 'भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप'  भेंट की.

Friday, August 22, 2025

पुस्तक भेंट



प्रिय ईशान प्रताप सिंह से सुखद भेंट. इस अवसर पर उन्हें अपनी पुस्तक 'भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप' भेंट की. 
ईशान प्रताप सिंह, 
पूर्ति निरीक्षक, खाद्य रसद विभाग जनपद महराजगंज- उत्तर प्रदेश

पुस्तक समीक्षा : भारत को भारतीय दृष्टि से देखने का प्रयास है ‘भारत-बोध’


लोकेन्द्र सिंह
भारत में लेखकों, साहित्यकारों एवं इतिहासकारों का एक ऐसा वर्ग रहा है, जिसने समाज को ‘भारत बोध’ से दूर ले जाने का प्रयास किया. उन्होंने पश्चिम की दृष्टि से भारत को देखा और अपने लेखन में वैसे ही प्रस्तुत किया. उन्होंने इस प्रकार के विमर्श खड़े किए, जिनसे उपजे भ्रम के वातावरण में भारतीय समाज अपने मूल स्वरूप को विस्मृत करने की दिशा में बढ़ गया. अपनी लेखनी एवं मेधा का उपयोग इस वर्ग ने देश को उसकी मूल संस्कृति से काटने के लिए किया. परंतु, भारत की वास्तविक पहचान को मिटा देना इतना आसान कार्य भी नहीं है. अनेक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आक्रमणों के बाद भी भारत अपनी पहचान के साथ उन्नत हिमालय की तरह खड़ा हुआ है. थोड़ी-बहुत जो धुंध छा गई थी, उसे हटाने का प्रयास भारतीयता से ओतप्रोत लेखक वर्ग कर ही रहा है. पत्रकारिता के प्राध्यापक एवं लेखक डॉ. सौरभ मालवीय की नयी पुस्तक ‘भारत बोध’ भारत को भारतीय दृष्टि से देखने के प्रयासों में महत्वपूर्ण प्रयास है. डॉ. मालवीय ने अपनी पुस्तक में 41 आलेखों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक धारा के कुछ आयामों को प्रस्तुत किया है. भारत की संस्कृति, त्योहार एवं उनकी अवधारणा, रीति-रिवाजों में सामाजिक एवं राष्ट्रीय बोध, पर्यावरण एवं प्रकृति के प्रति भारतीय मानस और भारत में राष्ट्र की संकल्पना जैसे समसामयिक विमर्श के अनेक बिन्दुओं पर उनके विचारों का निर्मल प्रवाह दिखाई देता है.

लेखक डॉ. सौरभ मालवीय ने अपनी पीएचडी ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ जैसे महत्वपूर्ण विषय पर की है. संभवत: यही कारण रहा होगा कि उनके लेखों से गुजरने पर गहन अध्ययन की अनुभूति होती है. भारतीय वांग्मय से सूत्र और प्रसंग लेकर डॉ. मालवीय ने अपनी बातों को आधार दिया है.

राष्ट्र, संस्कृति, पर्यावरण और मीडिया जैसे विषयों पर भी जब उन्होंने लेखन किया है, तो उनको समझने एवं समझाने के लिए लेखक ने भारतीय वांग्मय के पृष्ठ ही पलट कर देखे हैं. संस्कृति, राष्ट्र और राष्ट्रवाद को समझने के लिए उन्होंने पाश्चात्य विद्वानों एवं पाश्चात्य दृष्टि की अपेक्षा भारतीय मनीषियों के चिंतन को श्रेष्ठ माना है. यही सही भी है. भारत के संदर्भ में जब बात आए, तब हमें अपने पुरखों को अवश्य पढऩा चाहिए कि आखिर उन्होंने भारत की व्याख्या किस तरह की है? उनका भारत बोध क्या था? ‘भारत की अवधारणा’ को समझाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह एवं विचारक डॉ. मनमोहन वैद्य कहते हैं कि “भारत को समझने के लिए चार बिन्दुओं पर ध्यान देने की जरूरत है. सबसे पहले भारत को मानो, फिर भारत को जानो, उसके बाद भारत के बनो और सबसे आखिर में भारत को बनाओ”. लेखक डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘भारत बोध’ इन चार चरणों से होकर गुजरती है. इसलिए यह पुस्तक हमें भारत की वास्तविक पहचान के निकट ले जाने के प्रयास में सफल होती दिखती है.

वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अरुण कुमार भगत ने ठीक ही लिखा है कि “डॉ. मालवीय ने इस पुस्तक हेतु अपने जिन निबंधों का चयन किया है, वे सभी भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत की पहचान को सुनिश्चित और संस्थापित करने वाले हैं”. पुस्तक के संदर्भ में एक और बात महत्वपूर्ण है कि इसमें शामिल लेखों की भाषा सहज, सरल और सरस है. भाषा की सरलता के कारण आज की युवा पीढ़ी भी पुस्तक में शामिल विषयों की गहराई में उतर पाएगी. आलेखों में प्रस्तुत विचारों में भी एक प्रवाह है, जो पाठकों को बांधे रखने में सफल रहेगा.

‘भारत बोध’ का प्रकाशन यश पब्लिकेशंस, दिल्ली ने किया है. पुस्तक में 176 पृष्ठ हैं. पुस्तक के संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बिहार क्षेत्र के प्रचारक सूबेदार जी और वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अरुण कुमार भगत ने महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जिन्हें पुस्तक में शामिल किया गया है. ‘भारत बोध’ की प्रस्तावना भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने लिखी है, जिन्होंने स्वयं भी ‘भारत बोध’ के संदर्भ में विपुल लेखन किया है. बहरहाल, डॉ. सौरभ मालवीय की यह पुस्तक भारत को भारतीय दृष्टि से देखने का महत्वपूर्ण प्रयास है. उनका यह प्रयास भारत की वास्तविक संकल्पना को समाज तक पहुँचाने में सफल हो, ऐसी कामना है. इसके साथ ही यह पुस्तक इस दिशा में चल रहे विमर्श में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है.
पुस्तक : भारत बोध
लेखक : डॉ. सौरभ मालवीय
पृष्ठ : 176
मूल्य : 220 रुपये (पेपरबैक)
प्रकाशक : यश पब्लिकेशंस,
1/10753, गली नं. 3, सुभाष पार्क,
नवीन शाहदरा, दिल्ली-32


Saturday, August 16, 2025

पुस्तक भेंट

आज मेरे विप्रधाम निवास पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक श्री मान दीपक जी व जिला संघचालक माननीय डाक्टर मकसुदन मिश्रा जी व अर्जुन जी  का आगमन हुआ। आप सब को विद्या भारती के क्षेत्रीय मंत्री लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डाक्टर सौरभ मालवीय द्वारा लिखित पुस्तक 'भारतीय राजनीति के महानायक नरेंद्र मोदी' सप्रेम भेंट किया।




Friday, July 25, 2025

पुस्तक भेंट





आज लखनव विश्व विद्यालय में पत्रकारिता विभाग के प्रमुख मेरे छात्र जीवन के बड़े भाई सौरभ मालवीय जी से मुलाकात हुई। अंग वस्त्र के साथ अपनी लिखी पुस्तक 'भारतीय पत्रकारिता के स्वर्णिम हस्ताक्षर' भेंट की। आप इसी तरह आगे बढ़े और क्षेत्र , लार का नाम रोशन करे। सौरभ जी देश के माने जाने पत्रकारों में गिने जाते है, और भाजपा मीडिया सेल के प्रभारी भी रह चुके है। बहुत सारी बीती बाते हुई।
-संतोष सिंह लारी 

Sunday, July 6, 2025

मन को तृप्त करने वाली पुस्तक




सचित्र मिश्रा 
विगत दिनों डॉ. सौरभ मालवीय जी की पुस्तक ‘भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप’ पढ़ने का सुअवसर मिला। इस पुस्तक को दिल्ली के शिल्पायन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ने प्रकाशित किया है। 
पुस्तक पढ़कर मन तृप्त हो गया। भागदौड़ के समय में संतों के विषय में पढ़कर चित्त को शांति प्राप्त हुई। इस पुस्तक ने विचारने पर विवश कर दिया कि हमारे पास संतों की शिक्षाओं एवं उनके उपदेशों के रूप में ज्ञान का अपार भंडार है, किन्तु हम भौतिक वस्तुओं एवं सुख-साधन एकत्रित करने में अपने संपूर्ण जीवन को समाप्त कर रहे हैं। दीन-दुखियों की सेवा के लिए हम क्या कार्य कर रहे हैं? क्या हम ईश्वर के मार्ग पर चल रहे हैं? क्या हम जो कार्य कर रहे हैं, उससे किसी का अहित तो नहीं हो रहा है? क्या हम केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए असत्य के साथ खड़े हैं? क्या यही जीवन का उद्देश्य है? प्रश्न अनेक हैं, परन्तु इनका उत्तर हमें स्वयं खोजना होगा।  
मालवीय जी का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि “भारत में अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने विश्व को मानवता का संदेश दिया। संतों की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उस समय थीं जब उन्होंने उपदेश दिए थे। आज जब लोग पश्चिमी सभ्यता के पीछे भाग रहे हैं तथा जीवन मूल्यों को भूल रहे हैं, ऐसी परिस्थिति में संतों की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार अत्यंत आवश्यक हो जाता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने यह पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में 15 संतों के जीवन एवं उनके उपदेशों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, जिनमें रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास, महान कृष्ण भक्त सूरदास, महान भक्त कवि रसखान, कबीर, रैदास, मीराबाई, नामदेव, गोरखनाथ, तुकाराम, मलूकदास, धनी धरमदास, धरनीदास, दूलनदास, भीखा साहब एवं चरणदास सम्मिलित हैं। इन सभी संतों ने देश में भक्ति की गंगा प्रवाहित की। इनकी रचनाओं ने लोगों में भक्ति का संचार किया। इसमें ऐसे भी संत हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन में रहकर ईश्वर की भक्ति की। उन्होंने अपने परिवार एवं परिवारजनों के प्रति अपने सभी दायित्वों का निर्वाह किया। इनमें ऐसे भी संत हैं, जिन्होंने सांसारिक संबंधों से नाता तोड़कर अपना संपूर्ण जीवन प्रभु की भक्ति में व्यतीत कर दिया।“ संतों ने कभी किसी को अपने पारिवारिक कर्तव्यों से विमुख होने के लिए नहीं कहा, अपितु अपने संपूर्ण कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर की साधना करने का संदेश दिया।
मालवीयजी ने अपनी पुस्तक में संतों के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी संकलित की है। वह लिखते हैं कि        प्रश्न यह है कि संत कौन है? जो सहज भाव से विचार करे तथा सहज आचरण करे, वही संत कहलाने के योग्य है। संत वह होता है, जो मान मिलने पर अभिमान नहीं करता। वह अहंकार नहीं करता। वह अहंकार से दूर रहता है। यदि कोई उसका अपमान करे, तो वह क्रोधित नहीं होता। उसके बुरे की कामना नहीं करता। उसे अपशब्द नहीं कहता। संतों की वाणी मधुर होती है। वह सबका कल्याण चाहते हैं। उनका व्यवहार संयमशील होता है। वे धैर्यवान  होते हैं। उनका चरित्र इतना प्रभावशाली होता है कि जो भी उनके समीप आता है, उनसे प्रभावित हो जाता है। संतों की वाणी ईश्वर की वाणी है। उनकी वाणी में ईश्वर का संदेश होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने संतों की चर्चा करते हुए कहा है-
समदुःख सुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः।
तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्य निन्दात्म संस्तुतिः।।
अर्थात जो सुख एवं दुख दोनों को ही समान मानता है, जिसे अपने मान अथवा अपमान, अपनी स्तुति एवं निन्दा की चिंता नहीं होती, जो धैर्यवान होता है, वही संत है।
महात्मा कबीर ने संत की परिभाषा इस प्रकार व्यक्त की है-
निरबैरी निहकामता, साईं सेती नेह।
विषया सून्यारा रहै, संतन के अंग एह।।
अर्थात जिसका कोई शत्रु नहीं है, जो निष्काम है, जो ईश्वर से प्रेम करता है तथा विषयों से दूर रहता है, वही संत है।
प्रेम से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। मीराबाई का उदाहरण कालजयी है। विक्रमादित्य ने मीराबाई को विष देकर मारने का प्रयास किया। मीराबाई के लिए कांटों की सेज बिछाई गई। पूजा के पुष्पों की डलिया में पुष्पों में छिपाकर सर्प भेजा गया, ताकि वह मीराबाई के प्राण हर ले। उन्हें विष का प्याला दिया गया, परन्तु मीराबाई को कोई हानि नहीं पहुंची। मान्यता है कि विक्रमादित्य द्वारा भेजा गया विष अमृत तथा सर्प पुष्पों की माला बन गया। कांटों की सेज पुष्पों की सेज बन गई। गिरधर गोपाल के भक्तों का मानना था कि यह सब गिरधर गोपाल की भक्ति का ही फल था कि कोई भी मीराबाई का बाल बांका तक न कर सका। मीराबाई कहती हैं-
मीरा मगन भई, हरि के गुण गाय।
सांप पेटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दीयों जाय।
न्हाय धोय देखण लागीं, सालिगराम गई पाय।
जहर का प्याला राणा भेज्या, अमरित दीन्ह बनाय।
न्हाय धोय जब पीवण लागी, हो गई अमर अंचाय।
सूल सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय।
सांझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाय।
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे बिघन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पै बलिजाय।
वास्तव में इन संतों ने समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार किया तथा लोगों को आपस में प्रेमभाव से रहने का संदेश दिया। अन्य संतों की भांति संत तुकाराम ने भी समाज में व्याप्त कुरीतियों आदि का विरोध किया। वह जाति-पांत तथा ऊंच-नीच का भेद नहीं मानते थे वह कहते थे कि सभी मनुष्य परमपिता ईश्वर की संतान हैं, इसलिए सभी मनुष्य समान हैं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ईश्वर की भक्ति एवं भक्ति-प्रचार के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने गृहस्थ में रहकर ईश्वर की भक्ति का संदेश दिया। वह कहते थे कि मनुष्य के अपने परिवारजनों के प्रति सभी कर्त्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। वह कहते थे की संसार का सुख तो क्षणिक है, वास्तविक सुख तो ईश्वर की भक्ति में है।      
उनका कहना था कि लोग अपने वस्त्र तो धोकर स्वच्छ कर लेते हैं, परंतु मन में विकारों की जो गंदगी भरी पड़ी है, उसे साफ नहीं करते। वह कहते हैं-
तुका बस्तर बिचारा क्या करे रे,
अन्तर भगवान होय।
भीतर मैला केंव मिटे रे,
मरे उपर धोय।।
अर्थात बेचारे वस्त्र को बार-बार धोने से क्या होगा? भगवान बाहरी वस्त्र में नहीं, अपितु हृदय में निवास करते हैं। आन्तरिक मैल को कब मिटाओगे? केवल बाहरी स्वच्छता से तो हम मर जाएंगे।
आज के समय में संतों की इन शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार की नितांत आवश्यकता है। पुस्तक की भाषा सरल एवं प्रभावशाली है। नि:संदेह यह पुस्तक समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करेगी। आशा है कि मालवीयजी अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेंगे। यह पुस्तक उपयोगी एवं संग्रहणीय है।   
       
पुस्तक का नाम : भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप
लेखक : डॉ. सौरभ मालवीय
प्रकाशक : शिल्पायन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली
पृष्ठ : 239
मूल्य : 400

Saturday, July 5, 2025

पुस्तक भेंट


बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥" अर्थात् बिना सत्संग के विवेक नहीं होता और राम कृपा के बिना सत्संग सुलभ नहीं होता। मेरे गुरु एवं मार्गदर्शक आदरणीय श्री सौरभ मालवीय सर का सत्संग, स्नेह और सुखद सानिध्य प्राप्त हुआ। उनकी पुस्तक 'भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप' प्राप्त हुई। 
सचित्र मिश्रा 

Wednesday, June 18, 2025

पुस्तक भेट





माटी की महक 
गृह जनपद देवरिया निवासी और पूर्वांचल विकास बोर्ड के सदस्य श्रीमान राजकुमार शाही जी, प्रधानाचार्य श्री रमेश सिंह जी और बीजेपी के वरिष्ठ नेता श्री धनंजय जी का आगमन मेरे ऑफिस लखनऊ विश्वविद्यालय हुआ.
इस अवसर पर अपनी पुस्तक 'अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश' उन्हें भेंट की. 

Tuesday, June 17, 2025

सपनों को साकार करने का संकल्प


किसी भी देश, समाज एवं राष्ट्र के विकास की प्रक्रिया के आधारभूत तत्व मानवता, समुदाय, परिवार एवं व्यक्ति ही केंद्र में होता है, जिससे वहां के लोग आपसी भाईचारे से अपनी विकास की नैया को आगे बढ़ाते हैं तथा सुख एवं  समृद्धि प्राप्त करते हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्हीं मूल तत्वों के साथ आगे बढ़ रहे हैं। देश में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में आए हुए आठ वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन आठ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां विश्वभर के अनेक देशों में यात्राएं कर उनसे संबंध प्रगाढ़ बनाने का प्रयास किया है, वहीं देश में लोगों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए जनकल्याण की अनेक योजनाएं प्रारम्भ की हैं। इस समय देश में लगभग डेढ़ सौ योजनाएं चल रही हैं। मोदी सरकार ने विकास का नारा दिया और विकास को ही प्राथमिकता दी। परिणामस्वरूप देश में चहुंओर विकास की गंगा बह रही है तथा मोदी ही मोदी के जयकारे गूंज रहे हैं।

श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में देश के अंतिम व्यक्ति तक के जीवन को सुखी एवं समृद्ध करने के सपने को साकार करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। मोदी के शासन में देश ने लगभग सभी क्षेत्रों में उन्नति की है। कृषि, उद्योग, रोजगार, आवास, परिवहन, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, पर्यावरण आदि क्षेत्रों में सरकार ने सराहनीय कार्य किए हैं। विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जा रही है। वृद्धजन, विधवा एवं दिव्यांगजन को पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। अनाथ बच्चों के भरण-पोषण की भी व्यवस्था की गई है। जिन परिवारों में कोई कमाने वाला व्यक्ति नहीं है, सरकार उन्हें भी वित्तीय सहायता उपलब्ध करवा रही है। निर्धन परिवार की लड़कियों एवं दिव्यांगजन के विवाह लिए अनुदान प्रदान किया जा रहा है। निराश्रित गौवंश के संरक्षण पर भी सरकार विशेष ध्यान दे रही है। नि:संदेह सरकार अपने वादों पर शत-प्रतिशत खरी उतरी है।      

वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र को सर्वोपरि कहते नहीं, अपितु उसे जीते हैं। पिछले कुछ दशकों में भारतीय जनमानस का मनोबल टूट गया था, परन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को नये स्वप्न दिखाए तथा उनमें उनमें रंग भरे। अब लोगों के मनोबल की स्थिति यह है कि उनकी उड़ान दिन-प्रतिदिन ऊंची होती जा रही है, उनके सपनों को नये पंख मिल गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि एक बार जब हम संकल्प करते हैं तो हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेते हैं। हमें दूसरों की नकल करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। जब हम अपनी जड़ों से जुड़े होते हैं, तब ही हम ऊंची उड़ान भर सकते हैं, जब हम ऊंची उड़ान भरेंगे तो संपूर्ण विश्व समस्याओं से निपटने का समाधान देंगे।

श्री नरेंद्र मोदी ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया है। वह दिन-रात्रि देश के लिए ही सोचते हैं, तभी तो अपने जन्मदिन को भी उन्होंने देश सेवा का माध्यम बना दिया। उनके जन्मदिवस 17 सितम्बर के उपलक्ष्य में देशभर में स्वच्छता पखवाड़े का आयोजन किया गया। 16 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक चलने वाले इस पखवाड़े के दौरान जन जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए गए। लोगों को स्वच्छता का महत्त्व बताया गया तथा विभिन्न क्षेत्रों की सफाई की गई। साथ ही हरित पर्यावरण एवं स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा पर बल दिया गया। इसके अतिरिक्त प्लास्टिक कचरे के उन्मूलन पर विशेष ध्यान दिया गया। सरकारी कार्यालयों में एवं अन्य संबंधित प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों को स्वच्छता शपथ दिलाई गई। प्रधानमंत्री के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे इस पखवाड़े की देशभर में सराहना हुई, क्योंकि प्रधानमंत्री का जन्मदिन केवल व्यक्तिगत आयोजन न होकर देश और समाज के हित के कार्य करने का माध्यम बन गया है।    

वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वीच्छकता को एक जन आन्दोलन में परिवर्तित कर दिया है और उसमें पूरे समाज की व्यामपक भागीदारी हो रही है। उल्लेखनीय है कि स्वच्छ भारत अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। इसका उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को समाप्त करना है। यह अभियान शहरों और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को दिल्ली के मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन के समीप स्वयं झाड़ू उठाकर स्वच्छ भारत अभियान का प्रारम्भ किया था। इसके पश्चात वह वाल्मिकी बस्ती गए तथा वहां भी झाडू लगाई एवं कूड़ा उठाया। मोदी सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के प्रथम चरण में ही 10.71 करोड़ शौचालयों का निर्माण करवाया गया। आठ वर्ष पूर्व जब प्रधानमंत्री ने यह अभियान प्रारम्भ किया था, तब 10 में से केवल चार घरों में ही शौचालय थे। स्व च्छव भारत अभियान लागू होने के पश्चात शौचालय के निर्माण में बढ़ोतरी होती गई, क्योंीकि सरकार शौचालय बनवाने के लिए लोगों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करवा रही है। 

अंतरराष्ट्रीोय स्तार पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की सराहना की गई। यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फोर ने स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे मुद्दों में 'राजनीतिक समय और प्रयासों' का निवेश करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक समय और प्रयास का निवेश स्वधच्छंता जैसे मुद्दों में किया। उन्हों्ने स्वसच्छत भारत अभियान महात्मा  गांधी को समर्पित किया, देशवासियों का समर्पित किया और उन्हें  इसमें गर्व की अनुभूति हुई।

स्वच्छत भारत अभियान के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि गांधीजी के दो सपनों भारत छोड़ो और स्वच्छ भारत में से एक को साकार करने में लोगों ने सहायता की, अपितु स्वच्छ भारत का दूसरा सपना अब भी पूरा होना शेष है। उन्होंने कहा कि एक भारतीय नागरिक होने के नाते यह हमारा सामाजिक दायित्व है कि हम उनके स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करें। प्रधानमंत्री ने देश की सभी पिछली सरकारों और सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों द्वारा स्वच्छता को लेकर किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भारत को स्वच्छ बनाने का काम किसी एक व्यक्ति या अकेले सरकार का नहीं है, यह कार्य तो देश के 125 करोड़ लोगों द्वारा किया जाना है जो भारत माता के पुत्र-पुत्रियां हैं। स्वच्छ भारत अभियान को एक जन आंदोलन में परिवर्तित करना चाहिए। लोगों को ठान लेना चाहिए कि वह न तो गंदगी करेंगे और न ही करने देंगे।

कुछ वर्ष पूर्व जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार बनाई तब इनके सामने तमाम चुनौतियां खड़ी थीं। ऐसे में प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद के सहयोगियों के लिए चुनौतियों का सामना करते हुए विकास के पहिये को आगे बढ़ाना आसान नहीं था, परन्तु उन्होंने ऐसा करके दिखाया। मोदी की कार्ययोजना का आधार बताता है कि उनके पास दूरदृष्टि और स्पष्ट दृष्टि है, तभी तो पिछले कुछ वर्षों से समाचार- पत्रों में भ्रष्टाचार, महंगाई, सरकार के ढुलमुल निर्णय, मंत्रियों का मनमर्जी, भाई-भतीजावाद, परिवारवाद अब दिखाई नहीं देता।

किसी भी सरकार और देश के लिए उसकी छवि महत्त्वपूर्ण होती है। मोदी इस बात को भली-भांति समझते हैं। इसलिए विश्वभर के तमाम देशों में जाकर भारत को याचक नहीं, अपितु शक्तिशाली और समर्थ देश के नाते स्थापित कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी जिस पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में आज प्रधानमंत्री बने हैं, उस भारतीय जनता पार्टी का मूल विचार एकात्म मानव दर्शन एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है और दीनदयाल उपाध्याय भी इसी विचार को सत्ता द्वारा समाज के प्रत्येक तबके तक पहुंचाने की बात करते थे। समाज के सामने उपस्थित चुनौतियों के समाधान के लिए सरकार अलग-अलग समाधान खोजने की जगह एक योजनाबद्ध तरीके से कार्य करे। लोगों के जीवन की गुणवत्ता, आधारभूत संरचना और सेवाओं में सुधार सामूहिक रूप से हो। प्रधानमंत्री इसी योजना के साथ गरीबों, वंचितों और पीछे छूट गए लोगों के लिए प्रतिबद्व है और वे अंत्योदय के सिद्धांत पर कार्य करते दिख रहे हैं।

वास्तव में भारत में स्वतंत्रता के पश्चात कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने शब्दों की विलासिता का जबरदस्त दौर चलाया। उन्होंने देश में तत्कालीन सत्ताधारियों को छल-कपट से अपने घेरे में ले लिया। परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत जीवनशैली का मार्ग निरन्तर अवरुद्ध होता गया। अब अवरुद्ध मार्ग खुलने लगा है। संस्कृति से उपजा संस्कार बोलने लगा है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आधार हमारी युगों पुरानी संस्कृति है, जो शताब्दियों से चली आ रही है। यह सांस्कृतिक एकता है, जो किसी भी बंधन से अधिक सुदृढ़ एवं टिकाऊ है, जो किसी देश में लोगों को एकजुट करने में सक्षम है। इसी ने देश को एक राष्ट्र के सूत्र में बांध रखा है।

भारत की संस्कृति भारत की धरती की उपज है। उसकी चेतना की देन है। साधना की पूंजी है। उसकी एकता, एकात्मता, विशालता, समन्वय धरती से निकला है। भारत में आसेतु-हिमालय एक संस्कृति है। उससे भारतीय राष्ट्र जीवन प्रेरित हुआ है। अनादिकाल से यहां का समाज अनेक सम्प्रदायों को उत्पन्न करके भी एक ही मूल से जीवन रस ग्रहण करता आया है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे को नरेंद्र मोदी इसी रूप में पूरा कर रहे हैं।

पिछले सात दशकों में भारत के राजनीतिक नेत्तृत्व के पास विश्व में अपना सामर्थ्य बताने के लिए कुछ भी नहीं था। सत्य तो यह है कि इन राजनीतिक दुष्चक्रों के कारण हम अपनी अहिंसा को अपनी कायरता की ढाल बनाकर जी रहे थे। आज पहली बार विश्व की महाशक्तियों ने समझा है कि भारत की अहिंसा इसके सामर्थ्य से निकलती है, जो भारत को 70 वर्षों में पहली बार मिली है।

भारतीयों के स्वाभिमान का भारत अब खड़ा हो चुका है और यह आत्मविश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी है, तभी तो इस पूंजी का शंखनाद न्यूयार्क के मेडिसन स्क्वायर गार्डन से लेकर सिडनी, बीजिंग, काठमांडू और ईरान तक अपने समर्थ भारत की कहानी से गूंज रहा है। उनके शासनकाल के कार्य का आधार मजबूत इरादों को पूरा करता दिख रहा है। नरेंद्र मोदी को अपने इरादे मजबूत करके भारत के लिए और परिश्रम करने की आवश्यकता है।
डॉ. सौरभ मालवीय  

प्राक्कथन


देश के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए सरकार अनेक योजनाएं चला रही है। हर योजना का उद्देश्य होता है कि उसका लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचे। जब योजना का लाभ व्यक्ति तक पहुंचता है, वह योजना सफल होती है। इस समय देश में लगभग डेढ़ सौ योजनाएं चल रही हैं। इनमें अधिकतर पुरानी योजनाएं हैं। इनमें कई ऐसी पुरानी योजनाएं भी हैं, जिनके नाम बदल दिए गए हैं। इनमें कई ऐसी योजनाएं भी हैं, जो लगभग बंद हो चुकी थीं और उन्हें दोबारा शुरू किया गया है। इनमें कुछ नई योजनाएं भी सम्मिलित हैं। देश में दो प्रकार की सरकारी योजनाएं चल रही हैं। पहली योजनाएं वे हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाती हैं। इस तरह की योजनाएं पूरे देश या देश के कुछ विशेष राज्यों में चलाई जाती हैं। दूसरी योजनाएं वे हैं, जो राज्य सरकारें चलाती हैं। इस पुस्तक के माध्यम से सरकारी की कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्हें पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है। अकसर ऐसा होता है कि अज्ञानता और अशिक्षा के कारण लोगों को सरकार की जन हितैषी योजनाओं की जानकारी नहीं होती, जिसके कारण वे इन योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य यही है कि लोग उन सभी योजनाओं का लाभ उठाएं, जो सरकार उनके कल्याण के लिए चला रही है. 

इन योजनाओं की जानकारी संबंधित मंत्रालयों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. उल्लेखनीय है कि समय-समय पर योजनाओं में आंशिक रूप से परिवर्तन भी होता रहता है.  

Sunday, May 25, 2025

भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप



भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप 
पुस्तक श्री यतीन्द्र जी शर्मा राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री विद्या भारती के हाथो में.
इस पुस्तक की प्रस्तावना आप द्वारा लिखी गयी है. 



Saturday, May 17, 2025

पत्रकार की लेखनी में भारत निर्माण का भाव होना आवश्‍यक : सुभाष जी




 • आद्य पत्रकार देवर्षि नारद जी की जयंती के उपलक्ष्‍य में 'लोकमंगल की पत्रकारिता एवं राष्‍ट्रधर्म' विषयक विचार गोष्‍ठी का आयोजन

• विश्‍व संवाद केन्‍द्र लखनऊ तथा पत्रकारिता व जनसंचार विभाग लखनऊ विश्‍वविद्यालय के संयुक्‍त तत्‍वावधान में किया गया कार्यक्रम
लखनऊ। 'एक पत्रकार 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' की भावना के साथ पत्रकारिता करके लोकमंगल का आह्वान करता है। पत्रकार अपनी कार्यशैली से समाज का मार्गदर्शन करने का कार्य करता है। उसकी लेखनी में भारत निर्माण का भाव होना चाहिये।' ये विचार राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के पूर्वी उत्‍तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष जी ने प्रकट किये। वे विश्‍व संवाद केन्‍द्र लखनऊ तथा पत्रकारिता व जनसंचार विभाग लखनऊ विश्‍वविद्यालय के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित 'लोकमंगल की पत्रकारिता एवं राष्‍ट्रधर्म' विषयक विचार गोष्‍ठी को सम्‍बोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम आद्य पत्रकार देवर्षि नारद जी की जयंती के उपलक्ष्‍य में आयोजित किया गया था। 
सुभाष जी ने कार्यक्रम को सम्‍बोधित करते हुये कहा कि पत्रकार एक योद्धा होता है। वह देश और समाज के विकास कार्य में अपने जीवन को गलाता है। आद्य पत्रकार देवर्षि नारद जी पौराणिक काल में एक आदर्श पत्रकार की भूमिका निभाते हुये संदेश का सम्‍प्रेषण करते थे। मगर उन्‍हें एक विदूषक की भांति फिल्‍मों में प्रचारित किया गया। इस विषय पर प्रकाश डालते हुये उन्‍होंने 80 के दशक में पंजाब के हालातों का वर्णन करते हुये कहा कि पंजाब केसरी समाचार पत्र के सम्‍पादक लाला जगतनारायण ने उस समय अपनी पत्रकारिता से राष्‍ट्रधर्म का मान रखते हुये समाज में व्‍याप्‍त आतंक का विरोध किया। उनकी हत्‍या कर दी गयी लेकिन उन्‍होंने जो पत्रकारिता के क्षेत्र में जो कार्य किया वह वंदनीय है। इसी प्रकार उन्‍होंने दैनिक जागरण के सम्‍पादक रहे नरेंद्र मोहन जी की पत्रकारिता का वर्णन करते हुये कहा कि वे पत्रकारिता के धर्म का पूर्ण पालन करते थे। साथ ही, उन्‍होंने गीता प्रेस गोरखपुर के हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का उल्‍लेख करते हुये कहा कि सम्‍मान और धन कमाने की लालसा को त्‍यागकर उन्‍होंने जिस प्रकार अपनी लेखनी से धर्म का प्रचार एवं प्रसार किया वह अविस्‍मरणीय है। उन्‍होंने वर्तमान में की जा रही पत्रकारिता का उल्‍लेख करते हुये कहा कि एक पत्रकार की लेखनी में भारत निर्माण का भाव होना चाहिये। उसे अपनी लेखनी से सदैव ही लोकमंगल की कामना करनी चाहिये। अंत में उन्‍होंने कहा कि रामचरितमानस में भी नारद जी का वर्णन आते ही तुलसीदास जी ने उनकी व्‍याख्‍या एक कोमल हृदय वाले व्‍यक्ति के समान की है। अत: एक पत्रकार का हृदय कोमल होना चाहिये ताकि वह भाव समझ सके। 

कोई भी सूचना देश की सुरक्षा से बड़ी नहीं : प्रवीण कुमार 
इसके पश्‍चात कार्यक्रम को सम्‍बोधित करते हुये विशिष्‍ट अतिथि के रूप में उपस्थित टाइम्‍स ऑफ इंडिया के स्‍थानीय सम्‍पादक प्रवीण कुमार जी ने कहा कि आधुनिक युग की पत्रकारिता के महर्षि नारद प्रणेता रहे हैं। उनकी कार्यशैली बिल्‍कुल एक पत्रकार की तरह थी। उन्‍होंने चिंता प्रकट करते हुये कहा कि नारद जी को एक विदूषक की तरह प्रस्‍तुत किया गया जो पूरी तरह से गलत है। नारद जी ने अपनी कार्यशैली से राष्‍ट्रहित और जनहित की पत्रकारिता का परिचय दिया है। हर कालखंड में आरम्‍भ किया गया समाचार पत्र लोक कल्‍याण की भावना को बढ़ावा देने के साथ किया गया। उन्‍होंने वर्तमान के पत्रका‍रों को सम्‍बोधित करते हुये कहा कि कठिन विषयों को आसानी से समझाना एक पत्रकार की विशेषता होनी चाहिये। उसे जनता से सीधा संवाद स्‍थापित करके समस्‍या को उजागर करना चाहिये। उसकी लेखनी में सद्भावना होनी चाहिये। अंत में उन्‍होंने एक गम्‍भीर विषय पर प्रश्‍न उठाते हुये कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के समय कई पत्रकार गलत तरीके से पत्रकारिता करते हुये देशहित से उलट कार्य कर रहे थे। वर्तमान में सूचना का प्रसारण करते समय ऐसी गलतियों से राष्‍ट्र का अहित होता है। अत: यह जानना आवश्‍यक है कि कौन सी सूचना कितनी बतानी चाहिये। कोई भी सूचना देश की सुरक्षा से बड़ी नहीं है।

सदैव राष्‍ट्रधर्म का भाव लेखनी में हो : आशुतोष शुक्‍ल
आयोजन के मुख्‍य अतिथि के रूप में उपस्थित दैनिक जागरण के प्रदेश सम्‍पादक आशुतोष शुक्‍ल जी ने कहा कि एक पत्रकार समाज में रहते हुये भी समाज से विरक्‍त रहकर समाज को जागरूक करने का कार्य करता है। उन्‍होंने गोष्‍ठी के विषय का उल्‍लेख करते हुये कहा कि लोकमंगल की बात करेंगे तो राष्‍ट्रधर्म की ही बात होगी। एक पत्रकार को सदैव राष्‍ट्रधर्म का भाव अपनी लेखनी में रखना चाहिये। उन्‍होंने पत्रकारों का मार्गदर्शन करते हुये कहा कि पत्रकारों को कोई पसंद नहीं करता क्‍योंकि वह समाज को आईना दिखाने का कार्य करता है। फिर भी पत्रकार को अपना दायित्‍व निभाते हुये सच्‍चाई को उजागर करते रहना चाहिये। उन्‍होंने बताया कि एक पत्रकार की धमक उसकी बीट पर गूँजती है। उसके समाचारों में मात्र निंदा नहीं होनी चाहिये। उसमें समस्‍या का समाधान भी निहित होना चाहिये। नकारात्‍मकता को बढ़ावा देना पत्रकारिता नहीं है। उन्‍होंने कहा कि देशहित सर्वोपरि होना चाहिये। देशहित ही सबसे बड़ा धर्म है। राष्‍ट्रधर्म के भाव के साथ ही पत्रकारिता की जानी चाहिये। एक पत्रकार को निरन्‍तर अध्‍ययन करना चाहिये। अध्‍ययन करने से ही उसकी लेखनी में जोर आता है। उन्‍होंने सोशल मीडिया के सम्‍बंध में कहा कि आज के दौर में हर आदमी न्‍यायाधीश की भूमिका निभाने लगा है, जो उचित नहीं है। उन्‍होंने कहा कि यदि आपके आस-पास समाज में कुछ भी अनुचित होता दिखे और आप उसे रोकने की इच्‍छा रखते हैं, प्रयास करते हैं तो आप एक पत्रकार हैं। 

पत्रकारिता में जवाबदेही जरूरी : प्रो आलोक राय 
कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कर रहे लखनऊ विश्‍वविद्यालय के उपकुलपति आलोक राय जी ने कहा कि पत्रकारिता में जवाबदेही का होना बहुत आवश्‍यक है। बिना जवाबदेही के किया समाचार लेखन व प्रसारण मात्र समाचार का सम्‍प्रेषण है, पत्रकारिता नहीं। उन्‍होंने बताया कि आज भी कई बार विश्‍वविद्यालय में व्‍याप्‍त समस्‍याओं की जानकारी हमें समाचार पत्रों के माध्‍यम से होती है, उस समस्‍या को दूर करने का कार्य किया होता है। यही कारण है कि बीते कुछ वर्षों में एलयू में कई प्रकार के विकास कार्य हुये जो शहर और प्रदेश के लिये गौरव का विषय बने। उन्‍होंने बताया कि विदेशी छात्रों का कैम्‍पस में पंजीकरण बढ़ा है। इससे एलयू की मजबूत होती साख का पता चलता है। 

पुस्‍तक का विमोचन 
अंत में कार्यक्रम में उपस्थित सभी गणमान्‍य सदस्‍यों का राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के अवध प्रांत के प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ अशोक दुबे जी ने आभार प्रकट किया। इस कार्यक्रम में मंच पर विश्‍व संवाद केन्‍द्र न्‍यास के अध्‍यक्ष नरेंद्र भदौरिया जी भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ कृतिका अग्रवाल ने किया। इस अवसर पर डॉ सौरभ मालवीय रचित पुस्‍तक 'भारतीय पत्रकारिता के स्‍वर्णिम हस्‍ताक्षर' का विमोचन किया गया।
कार्यक्रम में रहे उपस्थित : कार्यक्रम में प्रमुख रूप से राष्‍ट्रधर्म पत्रिका के निदेशक मनोजकांत जी, लखनऊ विश्‍वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के अध्‍यक्ष डॉ मुकुल श्रीवास्‍तव, चीफ प्रॉक्‍टर डॉ राकेश द्विवेदी, हिन्दुस्थान समाचार के स्टेट ब्यूरो चीफ दिलीप शुक्ला जी, डॉ अमित कुशवाहा, डॉ नीलू शर्मा, प्रांत प्रचारक प्रमुख यशोदानन्‍द जी, प्रशांत भाटिया, विश्‍व संवाद केन्‍द्र प्रमुख डॉ उमेश जी, सर्वेश द्विवेदी, डॉ लोकनाथ जी, विभाग प्रचारक अनिल जी, क्षेत्र मुख्‍यमार्ग कार्य प्रमुख राजेंद्र सक्‍सेना, डॉ यशार्थ मंजुल, दुष्‍यंत शुक्‍ल, मोहित महाजन, दिलशेर सिंह, विनोद जी, श्‍याम त्रिपाठी जी, एडवोकेट उमेश चंद्र, डॉ अनूप चतुर्वेदी, सचित्र मिश्र, शिवशंकर पाण्‍डेय, मृत्‍युंजय श्रीवास्‍तव एवं श्‍याम यादव आदि उपस्थित रहे।

मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ को पुस्तक भेंट की


मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज से आज लखनऊ में विद्या भारती, पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के मंत्री डॉ. सौरभ मालवीय जी एवं श्री राम सिंह जी, प्रदेश निरीक्षक, शिशु शिक्षा समिति ने शिष्टाचार भेंट की। सौरभ मालवीय जी ने मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज को अपनी पुस्तक भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप भेंट की। 

इस अवसर पर सरस्वती विद्या मंदिर, बस्ती के प्रबंधक डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह जी एवं प्रधानाचार्य श्री गोविन्द सिंह जी व श्री उमाशंकर जी भी उपस्थित रहे।

विमोचन समारोह



लखनऊ विश्वविद्यालय में अयोजित आद्य पत्रकार देवर्षि नारद जयन्ती के कार्यक्रम में हम सबके अभिभावक डॉ. सौरभ मालवीय जी गुरु जी द्वारा लिखी हुई किताब के विमोचन में.
उज्ज्वल त्रिपाठी