डॉ. सौरभ मालवीय
किसी भी सभी समाज के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है। अत:विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए।” पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में- “शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं।“ शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्रियां लेकर नौकरी प्राप्त करना नहीं है, अपितु इसका उद्देश्य मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना है।
कोठारी आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार हमें पाठ्यचर्या में विज्ञान तथा तकनीकी विषयों को मुख्य स्थान देना होगा, परंतु इन विषयों से चारित्रिक विकास एवं मानवीय गुणों को क्षति पहुंचने की संभावना है। अत: परिचर्चा में वैज्ञानिक विषयों के साथ-साथ मानवीय विषयों को भी सम्मिलित किया जाए, जिससे औद्योगिक उन्नति के साथ-साथ मानवीय मूल्य भी विकसित होते रहें और नागरिक सामाजिक, नैतिकता तथा आध्यात्मिक मूल्यों को प्राप्त कर सकें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस बात पर गहरी चिंता प्रकट की जा रही है कि जीवन के लिए आवश्यक मूल्यों पर से ही लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। इसलिए शिक्षाक्रम में ऐसे परिवर्तन की आवश्यकता है, जिससे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के विकास में शिक्षा एक सशक्त माध्यम बन सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में में कहा गया है कि शैक्षिक प्रणाली का उद्देश्य अच्छे मनुष्यों का विकास करना है, जो तर्कसंगत विचार और कार्य करने में सक्षम हों, जिनमें करुणा और सहानुभूति, साहस और लचीलापन, वैज्ञानिक चिंतन और रचनात्मक कल्पना शक्ति, नैतिक मूल्य हों। नैतिकता, मानवीय और संवैधानिक मूल्य जैसे दूसरों के लिए सम्मान, स्वच्छता, शिष्टाचार, लोकतांत्रिक भावना, सेवा की भावना, सार्वजनिक संपत्ति के लिए सम्मान, स्वतंत्रता, दायित्व बोध, बहुलतावाद, समानता और न्याय का भाव।
शिक्षा के दो ही उद्देश्य समझ आते हैं, प्रथम व्यक्ति पढ़-लिखकर खुशहाल जीवन जिये और द्वितीय वह दूसरों के खुशी से जीने में सहयोग देने की स्थिति में आ जाए। छोटी कक्षाओं से लेकर कॉलेज और विश्वविद्यालय तक की शिक्षा का कुल उद्देश्य इतना ही है। जब गणित, विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, भाषा आदि सभी की शिक्षा का उद्देश्य खुशहाली ही है तो फिर अनुभूति अथवा हैप्पीनेस करिकुलम की आवश्यकता क्यों है? विद्यार्थियों के लिए वर्तमान जीवन में और भविष्य में उनके जीवन में खुशी का क्या अर्थ है? दूसरों के खुशी से जीने में सहयोग का क्या अर्थ है? क्या खुशी को मापा जा सकता है? क्या खुशी की तुलना की जा सकती है? दूसरों से तुलना में मिलने वाली खुशी और अपने अंदर से प्रकट होने वाली खुशी का विज्ञान क्या है? कहीं हम सुविधाओं को ही तो खुशी नहीं मान बैठे हैं? वास्तव में इन सब और इन जैसे एनी प्रश्नों के वैज्ञानिक उत्तर अपने अंदर से, अपने आसपास से खोजने के पाठ्यक्रम का नाम है हैप्पीनेस करिकुलम। इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य बच्चों में खुशी की समझ पैदा करना है।
आज जब पूरे विश्व में आतंकवाद, ग्लोबल वॉर्मिंग और भ्रष्टाचार जैसी विकट समस्याओं के समाधान प्रशासन और शासन के माध्यम से खोजने का प्रयास हो रहा है, उस समय यह करिकुलम इस बात का प्रमाण बनेगा कि मानवीय व्यवहार के कारण उत्पन्न समस्याओं का स्थायी समाधान केवल शिक्षा से ही संभव है। एक अच्छा विद्यालय भवन, आधुनिक कक्ष, पढ़ाने के लिए आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करना शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धियां नहीं हैं। यह सब अनिवार्य आवश्यकताएं हैं, परंतु शिक्षा की वास्तविक उपलब्धि यह है कि क्या वह वर्तमान और भविष्य की संभावित समस्याओं का समाधान खोजकर आने वाली पीढ़ियों को उसके लिए तैयार करती है अथवा नहीं। हैप्पीनेस पाठ्यक्रम इस संभावना की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम दिखाई देता है।
आज जब अनेक देशों में सोशल इमोशनल लर्निंग के नाम से इस पाठ्यक्रम को लाया जा रहा है या लाने की तैयारी हो रही हो, तो ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा यह पहल बहुत ही महत्त्वपूर्ण लगती है। उत्तर प्रदेश में शीघ्र ही सभी विद्यालयों में कक्षा एक से आठ तक हैप्पीनेस पाठ्यक्रम लागू किया जाएगा। इसका प्रारम्भ राज्य के 16 जिलों में किया जा रहा है, जिनमें वाराणसी, देवरिया, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, प्रयागराज, अमेठी, अयोध्या, लखनऊ, मुरादाबाद, मेरठ, गाजियाबाद, आगरा, मथुरा, झांसी एवं चित्रकूट आदि सम्मिलित हैं। यदि इस पायलट प्रोजेक्ट को सफलता प्राप्त होती है, तो इसे पूरे राज्य में लागू किया जाएगा। राज्य शैक्षिक अनुंसधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने शिक्षकों के साथ बैठक कर पाठ्यक्रम की तैयारी पर कार्य आरंभ कर दिया है। इससे पूर्व हापुड़ एवं बुलंदशहर में कक्षा एक से आठ तक के विद्यालयों में इसका पायलट प्रोजेक्ट भी चलाया गया था और पूरे राज्य में लागू करने के आदेश भी हुए थे, परंतु इस बीच शिक्षकों ने सुझाव दिए थे कि पाठ्यक्रम को राज्य की परिस्थिति के अनुसार किया जाना चाहिए। देश में हैप्पीनेस पाठ्यक्रम को लेकर चर्चा उस समय बढ़ी, जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पत्नी मेलानिया ट्रंप के साथ भारत दौरे पर आए थे। इस दौरान मेलानिया ट्रंप ने दिल्ली के सरकारी विद्यालयों का दौरा किया था। इस दौरे में मेलानिया ने विद्यालयों में हैप्पीनेस क्लास उसके पाठ्यक्रम समेत कई जानकारियां ली थीं, जिसके बाद से लगातार हैप्पीनेस पाठ्यक्रम पर चर्चा हो रही है।
प्रदेश सरकार महापुरुषों के इन विचारों को मूर्त रूप देने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हो रहे हैं। बात चाहे प्राथमिक शिक्षा की हो, माध्यमिक शिक्षा की हो, व्यावसायिक शिक्षा की हो या उच्च शिक्षा की, सभी क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं। आशा की जानी चाहिए कि राज्य के शिक्षकों और शिक्षाविदों की सुयोग्य टीम के माध्यम से हैप्पीनेस पाठ्यक्रम विकसित भी होगा, संचालित भी होगा और अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त भी करेगा। साथ ही अभिभावकों, विद्यार्थियों और प्रशासकों के साथ-साथ समाज के प्रत्येक वर्ग की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा। इस पाठ्यक्रम की सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि शिक्षक किस हद तक इसे अपने जीवन में आत्मसात कर सकेंगे, क्योंकि जब तक शिक्षक स्वयं इसे आत्मसात नहीं करते, तब तक वे बच्चों को भी इसे ठीक प्रकार से नहीं समझा पाएंगे।
(लेखक हैप्पीनेस पाठ्यक्रम के प्रभारी हैं)
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