जीते जी सम्मानों से बहुत परहेज करते थे अटल जी

वाजपेयी जी के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष: अटल बिहार वाजपेयी’ का एक अंश. महाराष्ट्र की पुणे नगरपालिका द्वारा 23 जनवरी, 1982 को आयोजित गौरव सम्मान समारोह में अटल बिहारी वाजपेयी को सम्मानित किया गया. इस अवसर पर समारोह को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, 'किन शब्दों में मैं अपने भावों को व्यक्त करूं. व्यक्त न करने का कारण या न कर पाने का कारण ये नहीं है कि मैं भावों से गद्गद हो गया हूं. कारण ये है कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मेरा यह सम्मान किसलिए किया जा रहा है. मैं साठ वर्ष का हो गया हूं- क्या इसीलिए सम्मान हो रहा है? साठी बुद्धि नाठी. ये मराठी की म्हण (कहावत) है. हिन्दी में इसका दूसरा चरण है साठा सो पाठा. लेकिन अगर मैं जीवित हूं, तो साठ साल का होने वाला हूं. और जीवन तो किसी के हाथ में नहीं है. पता नहीं, उमर बढ़ती है या घटती है. नाना साहब यहां बैठे हैं- वे अस्सी साल के हो गये हैं, उन्होंने स्वयं आपको बताया है. वे सम्मान के अधिकारी हैं. खरात साहब लेखनी के धनी हैं. उनका अभिनन्दन किया जाये, तो स्वाभाविक है.' 'मोरे साहब से तो मेरी मुलाकात हाल