Saturday, May 20, 2017

आखिर राष्ट्रवाद से भय क्यों





 पत्रकारिता के राष्ट्रवादी स्वरूप के इतने महत्वपूर्ण योगदान के बाद भी, दुर्भाग्यवश स्वाधीनता प्राप्ति के बाद पत्रकारिता जगत में राष्ट्रवाद की उपेक्षा होने लगी | आज स्थिति यह है कि पत्रकारिता के आधुनिक स्वरूप में राष्ट्रवाद को संकुचित विचार माना जाता है। इसलिए राष्ट्रवादी विचारों और मुद्दों पर की जाने वाली पत्रकारिता को मुख्यधरा की पत्रकारिता में शामिल नही किया जाता, परन्तु यदि हम राष्ट्रवाद की परिभाषा और व्यख्या पर नजर डालें तो यह स्थापित सत्य दीखता है कि पत्रकारिता का राष्ट्रवाद से सीधा सम्बन्ध है सामाजिक मान्यता है कि मीडिया संस्कृति का वाहक भी है, दर्पण भी है और निर्माता भी अतएव पत्रकारिता का मौलिक कार्य समाज की विकास के प्रक्रियाओं को मजबूत करना है जिसके लिए उसे निर्भीक ,सत्यवादी और सुचितापूर्ण अनुशासन की भूमिका मे अपने को रखना है।
भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय पत्रकारिता पर मीडिया स्कैन द्वारा आयोजित सेमिनार में।

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