Saturday, July 12, 2025

भारत पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी शुरू करने वाला पहला देश: डब्ल्यूएचओ


वैश्विक स्वास्थ्य सेवा नवाचार के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने "पारंपरिक चिकित्सा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनुप्रयोग का मापन" शीर्षक से एक तकनीकी संक्षिप्त विवरण जारी किया है। इसमें पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों, विशेष रूप से आयुष प्रणालियों के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को एकीकृत करने में भारत के अग्रणी प्रयासों की सराहना की गई है। यह विवरण इस विषय पर भारत के प्रस्ताव के बाद जारी किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप पारंपरिक चिकित्सा में एआई के अनुप्रयोग हेतु डब्‍ल्‍यूएचओ का पहला रोडमैप विकसित हुआ है।

अपनी आयुष प्रणालियों की क्षमताओं को उन्नत और व्यापक बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की क्षमता का लाभ उठाने के भारत के प्रयास प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जो देश को डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार और पारंपरिक चिकित्सा के एकीकरण में एक वैश्विक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने 2023 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर वैश्विक भागीदारी (जीपीएआई) शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर कहा, "हमने 'सभी के लिए एआई' की भावना से प्रेरित होकर सरकारी नीतियाँ और कार्यक्रम विकसित किए हैं। हमारा प्रयास सामाजिक विकास और समावेशी विकास के लिए एआई की क्षमताओं का पूरा लाभ उठाना है।"

केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री, श्री प्रतापराव जाधव ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी विवरण में उल्लिखित भारत की एआई-आधारित पहल, अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उन्होंने कहा, "यह मान्यता पारंपरिक चिकित्सा की वैश्विक प्रासंगिकता का विस्तार करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उभरती तकनीकों का उपयोग करने के प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के दूरदर्शी दृष्‍टिकोण के साथ हमारी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। एआई को आयुष प्रणालियों के साथ एकीकृत करके—और आयुर्वेदिक के ऐतिहासिक छाप प्रदर्शन (एसएएचआई) पोर्टल, राष्‍ट्रीय आयुष रुगणता और मानकीकृत इलेक्‍ट्रानिक शब्‍दावली (नमस्‍ते) पोर्टल और आयुष अनुसंधान पोर्टल जैसे अग्रणी डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से—भारत न केवल अपने सदियों पुराने चिकित्सा ज्ञान की रक्षा कर रहा है, बल्कि व्यक्तिगत, साक्ष्य-आधारित और विश्व स्तर पर सुलभ स्वास्थ्य सेवा के भविष्य को आकार देने में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है।"

आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा, "डब्ल्यूएचओ दस्तावेज़ में भारत की ओर से किए गए कई अग्रणी एआई-संचालित नवाचारों पर प्रकाश डाला गया है - जिसमें प्रकृति-आधारित मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग करके पूर्वानुमानित निदान से लेकर आयुर्वेद ज्ञान और आधुनिक जीनोमिक्स को एक साथ लाने वाली अभूतपूर्व आयुर्जेनोमिक्स परियोजना शामिल है। इस डिजिटल परिवर्तन का मूल आधार आयुष ग्रिड है। यह 2018 में शुरू किया गया एक व्यापक डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफ़ॉर्म है जो कई नागरिक-केंद्रित पहलों जैसे कि एसएएचआई पोर्टल, नमस्‍ते पोर्टल और आयुष अनुसंधान पोर्टल की नींव का काम करता है। ये एआई-सक्षम प्लेटफ़ॉर्म न केवल भारत की पारंपरिक ज्ञान चिकित्सा प्रणालियों को संरक्षित और मान्य कर रहे हैं, बल्कि साक्ष्य-आधारित, डिजिटल स्वास्थ्य सेवा ढाँचों के भीतर उनके वैश्विक एकीकरण को भी आगे बढ़ा रहे हैं।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह प्रकाशन न केवल वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा परिदृश्य में भारत के बढ़ते प्रभाव को मान्यता देता है, बल्कि एआई और आयुष क्षेत्र में कई प्रमुख भारतीय नवाचारों को भी मान्यता देता है।

यह दस्तावेज़ आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी, सोवा रिग्पा और होम्योपैथी में एआई-संचालित अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला को प्रदर्शित करता है, जिसमें निदान सहायता प्रणालियाँ भी शामिल हैं जो नाड़ी मापन, जीभ परीक्षण और प्रकृति मूल्यांकन जैसी पारंपरिक विधियों को मशीनों के अनुप्रयोग और गहन तांत्रिका नेटवर्क के साथ एकीकृत करती हैं। ये प्रयास निदान सटीकता को बढ़ा रहे हैं और व्यक्तिगत निवारक देखभाल को सक्षम बना रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के संक्षिप्त विवरण में एक उल्लेखनीय विशेषता आयुर्जेनोमिक्स का उल्लेख है। यह वैज्ञानिक उपलब्धि जीनोमिक्स को आयुर्वेदिक सिद्धांतों के साथ जोड़ती है। इस पहल का उद्देश्य आयुर्वेदिक संरचना प्रकारों के कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-आधारित विश्लेषण का उपयोग कर रोगों के पूर्वानुमानित संकेतों की पहचान करना और स्वास्थ्य संबंधी सुझावों को व्यक्तिगत बनाना है। यह दस्तावेज़ आधुनिक रोग स्थितियों में पुनर्प्रयोजन हेतु हर्बल विधियों के जीनोमिक और आणविक आधार को समझने के प्रयासों पर भी प्रकाश डालता है जो पारंपरिक ज्ञान को समकालीन विज्ञान के साथ एकीकृत करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्‍धि  है।

पारंपरिक ज्ञान को डिजिटल बनाने की भारत की पहल, जैसे पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल), को स्वदेशी चिकित्सा विरासत के संरक्षण और ज़िम्मेदारी से उपयोग के वैश्विक मॉडल के रूप में सराहा जाता है। इसके अलावा, प्राचीन ग्रंथों के सूचीकरण और अर्थ विश्लेषण के लिए एआई-संचालित उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे समय-परीक्षित चिकित्सीय ज्ञान तक आसान पहुँच संभव हो रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यता प्राप्त एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू औषधि की कार्यप्रणाली की पहचान, आयुर्वेद, पारंपरिक चीनी चिकित्सा और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों के बीच तुलनात्मक अध्ययन, और रस, गुण और वीर्य जैसे पारंपरिक मापदंडों का आकलन करने के लिए कृत्रिम रासायनिक सेंसरों के विकास हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उपयोग है। ये तकनीकी समाधान पारंपरिक औषधियों को मान्य और आधुनिक बनाने में मदद कर रहे हैं।

दस्तावेज़ में ऑनलाइन परामर्श के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों को शामिल करने, आयुष चिकित्सकों के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने और पारंपरिक चिकित्सा को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा के साथ एकीकृत करने के लिए अंतर-प्रचालनीय प्रणालियों के विकास में भारत के व्यापक प्रयासों की भी सराहना की गई है।
आयुष मंत्रालय इस मान्यता का स्वागत करता है और इसे पारंपरिक चिकित्सा के लिए एक मज़बूत वैज्ञानिक तंत्र बनाने में भारत के नेतृत्व का प्रमाण मानता है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पारंपरिक चिकित्सा के व्यापक ढांचे के अंतर्गत परिकल्पित वैश्विक सहयोग और ज़िम्मेदार नवाचार को बढ़ावा देने के लिए देश की प्रतिबद्धता की भी पुष्टि करता है।

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