Friday, June 13, 2025

भारत की ज्ञान परंपरा









भेंटुआ (अमेठी)। विद्या भारती जन शिक्षा समिति काशी प्रदेश द्वारा आयोजित 10 दिवसीय प्रधानाचार्य प्रशिक्षण वर्ग के दसवे दिन समापन समारोह के अवसर पर वंदना सत्र में डॉ सौरभ मालवीय क्षेत्रीय मंत्री पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष ,डॉ राम मनोहर सह संगठन मंत्री विद्या भारती काशी प्रदेश द्वारा मां सरस्वती का पूजन एवं पुष्पार्चन संपन्न हुआ। परिचय प्रदेश निरीक्षक राजबहादुर दीक्षित ने कराया।

डॉक्टर सौरभ मालवीय का स्वागत अंग वस्त्र एवं श्रीफल द्वारा संभाग निरीक्षक कमलेश द्वारा संपन्न हुआ। 
मालवीय जी ने कहा कि तीन शब्दों को समेटे हुए भारतीय ज्ञान परंपरा है। जब हम भारत शब्द बोलते हैं, सुनते हैं, तो हमारा मन पवित्र हो जाता है। यह आध्यात्मिक क्षेत्र को जागृत करता है। इसे भू सांस्कृतिक चेतना कहते हैं। भारत को हम ज्ञान की धरती कहते हैं । जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है, वह भारत है। व्यष्टि से समष्टि की यात्रा भारत है। अन्य देशों में ठंडी पड़ रही है तो ठंडी ही पड़ेगी, गर्मी है तो बहुत गर्मी रहेगी, किंतु भारत में ऐसा नहीं है यहां ऋतुएं हैं । भारत का धर्म सृष्टि से है , प्रकृति आधारित है, नदी जीवन दायिनी है, वृक्ष धूप सहकार छाया, फल एवं ऑक्सीजन देते हैं । गाय में देवता का वास है। प्रकृति लोक मंगल का प्रतीक है, जनमानस में वसुधैव कुटुंबकम का भाव है। जहां सुंदरता है, श्रेष्ठता है,वहीं सत्यता और शिव हैं, अर्थात भारत सत्यम् शिवम् सुंदरम् है। 

ज्ञान मनुष्य को पूर्ण बनाता है। वर्तमान पीढ़ी जब अपने अतीत पर गर्व करेगा, तब भारत कभी लूला लंगड़ा नहीं होगा। महाभारत के युद्ध में अर्जुन द्वंद में उलझ जाते हैं, तब श्री कृष्णा मुस्कुराते हुए अपने विराट स्वरूप  का दर्शन कराते हैं, तब अर्जुन को ज्ञान प्राप्त होता है। लंका विजय के बाद लक्ष्मण ने प्रभु श्री राम से कहा, कि अब यह लंका अपनी हो गई, तो प्रभु ने कहा "अपि स्वर्णमयी लंका न लक्ष्मण रोचते"
"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"
राजा शिवि एक पक्षी को बचाने हेतु उसके शरीर के भार के बराबर अपने शरीर का मांस देने की बात कही । यही जीवन दर्शन है। त्याग रुपी जीवन दर्शन राजा हरिश्चंद्र से सीखते हैं। भारत की ज्ञान परंपरा हमारे वेदों, उपनिषदों से प्राप्त हुई। 

भारत के ज्ञान को आने वाली पीढियां के साथ लेकर चलने की एक परंपरा है। तिलक लगाना, दीप प्रज्वलित करना, पुष्पार्चन करना, लोक मंगल कार्य करना, हाथ में रक्षा सूत्र बांधना, रुद्राक्ष धारण करना, तुलसी एवं सूर्य को जल देना आदि हमारी परंपराएं हैं जो सनातन से चली आ रही हैं। *जो सनातन है, वही पुरातन है*। उसे लेकर परंपरागत चलना है। 

आपने 3 जून से 13 जून तक विभिन्न अधिकारियों द्वारा दिये गये प्रशिक्षण की जानकारी करते हुए विद्या भारती के बारे में बताया कि विद्या भारती का मालिक समाज है। कार्यक्रम के समापन के अवसर पर प्रदेश प्रचार प्रमुख संतोष मिश्र ने इस 10 दिवसीय प्रशिक्षण में आए हुए 31 प्रधानाचार्य वन्धुओं के प्रति आभार व्यक्त किया। 
वंदे मातरम के उपरांत कार्यक्रम का समापन हुआ।

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स्मृति

चित्र 2006 का है।  उस समय बीजेपी मुख्यालय 11 अशोक रोड हुआ करता था। देखते देखते सब कुछ बदल गया।