Wednesday, November 23, 2022

अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार हो


डॉ. सौरभ मालवीय    
भारत एक विशाल देश है। यहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी भिन्न-भिन्न संस्कृतियां हैं, परन्तु सबकी नागरिकता एक ही है। सब भारतीय हैं। कोई भी देश तभी उन्नति के शिखर पर पहुंचता है जब उसके निवासी उन्नति करते हैं। यदि कोई समुदाय मुख्यधारा के अन्य समुदायों से पिछड़ जाए, तो वह देश संपूर्ण रूप से उन्नति नहीं कर सकता। इसलिए आवश्यक है कि देश के सभी समुदाय उन्नति करें। आज देश में एक बार फिर से अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का विषय चर्चा में है।          

उल्लेखनीय है कि ‘अल्पसंख्यक’ का तात्पर्य केवल मुस्लिम समुदाय से नहीं है। देश के संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की परिकल्पना धार्मिक, भाषाई एवं सांस्कृतिक रूप से भिन्न वर्गों के लिए की गई है। यह दुखद है कि कांग्रेस द्वारा इसका उपयोग अपने स्वार्थ के लिए किया गया, ताकि उसका वोट बैंक बना रहे। कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम -1992 बनाया गया। इसमें देश की मुख्यधारा से पृथक वंचित धार्मिक समुदायों की स्थिति के कारणों के मूल्यांकन की आवश्यकता पर बल दिया गया। इस अधिनियम के आधार पर मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया। किन्तु राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 में ‘धार्मिक अल्पसंख्यक’ की परिभाषा नहीं दी गई है। कौन सा समुदाय अल्पसंख्यक है, इसका निर्णय करने का सारा दायित्व केंद्र सरकार को सौंप दिया गया। इसके पश्चात कांग्रेस सरकार ने अक्टूबर 1993 में पांच धार्मिक समुदायों को अल्पसंख्यकों के रूप में अधिसूचित किया, जिसमें मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं पारसी सम्मिलित हैं। इसके पश्चात जैन समुदाय द्वारा उसे भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने की मांग की जाने लगी। तब सरकार ने राष्ट्रीय धार्मिक अधिनियम- 2014 में एक संशोधन करके जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यकों की सूची में सम्मिलित कर दिया। 

भारतीय जनता पार्टी का सदैव से यह कहना रहा है कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों के नाम पर ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की राजनीति करती आई है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्रों में भी यह प्रश्न उठाते हुए संकल्प लिया था कि वह ‘अल्पसंख्यक आयोग को समाप्त करके इसका दायित्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंपेगी। अब चूंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है, तो यह विषय चर्चा में आ गया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 में भाजपा सत्ता में आई, उस समय  इस संबंध में कुछ नहीं हुआ। कांग्रेस द्वारा गठित द्वितीय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भी समाप्त करने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया। वास्तव में वर्ष 2004 के पश्चात से भाजपा ने इस विषय पर ध्यान नहीं दिया, अपितु भाजपा ने 2014 के अपने घोषणा पत्र में कहा कि ‘स्वतंत्रता के इतने दशकों के पश्चात भी अल्पसंख्यकों का एक बड़ा वर्ग, विशेषकर मुस्लिम समुदाय निर्धनता में जकड़ा हुआ है। भाजपा की इस बात के कई अर्थ निकाले जा सकते हैं। प्रथम यह कि भाजपा स्वीकार करती है कि देश की स्वतंत्रता के इतने वर्षों पश्चात भी मुसलमानों की स्थिति दयनीय है, जैसा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है। द्वितीय यह है कि स्वतंत्रता के पश्चात देश में कांग्रेस का ही शासन रहा है तथा उसने मुसलमानों की दशा सुधारने के लिए कुछ नहीं किया तथा मुसलमान इस दयनीय स्थिति में पहुंच गए। इसका एक अर्थ यह भी है कि मुसलमानों की इस दयनीय स्थिति के लिए कांग्रेस उत्तरदायी है।

देश और राज्यों में अल्पसंख्यकों को लेकर बड़ी विडंबना की स्थिति है। कोई समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक है, तो किसी राज्य में अल्पसंख्यक है। इसी प्रकार कोई समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक है, तो किसी राज्य में  बहुसंख्यक है। इसी प्रकार कोई समुदाय एक राज्य में अल्पसंख्यक है तो किसी दूसरे राज्य में बहुसंख्यक है। उल्लेखनीय बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट में राज्य स्तर पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग वाली याचिकाएं भी दायर की गई हैं। इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने अपनी राय देने के लिए समय मांगा है। इस संबंध में 14 राज्यों ने अपनी राय दे दी है, जबकि 19 राज्यों और केंद्र सरकार ने अभी तक अपनी राय नहीं दी है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का क्या निर्णय आता है, यह तो समय के गर्भ में छिपा है, किन्तु इतना निश्चित है कि यह एक ज्वलंत विषय है। इससे देश का सामाजिक वातावरण प्रभावित होगा। इससे निपटने का एक सरल उपाय यह है कि देश को अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक की राजनीति से मुक्ति दिलाई जाए। संविधान की दृष्टि में देश के सब नागरिक एक समान हैं। संविधान ने सबको समान रूप से अधिकार दिए हैं। संविधान ने किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया है। इसलिए देश में समान नागरिक संहिता लगाई जाए। इससे बहुत से झगड़े स्वयं समाप्त हो जाएंगे। यदि देश के सभी वर्गों की एक समान उन्नति करनी है, तो उनके धर्म, पंथ या जाति के आधार पर नहीं, अपितु उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर नीतियां बनाने की आवश्यकता है। आर्थिक आधार पर बने नीतियों से उनका समग्र विकास हो पाएगा। ऐसा न होने पर देश अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की राजनीति में उलझ कर रह जाएगा। ऐसी परिस्थियों में मूल समस्याओं से ध्यान भटक जाएगा, जिससे विकास कार्य प्रभावित होंगे।  

प्रश्न है कि जब संविधान ने सबको समान अधिकार दिए हैं, तो धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक निर्धारित करने का क्या औचित्य है? वास्तव में निर्धनता का संबंध किसी धर्म, पंथ अथवा जाति से नहीं होता। इसका संबंध व्यक्ति की आर्थिक स्थिति से होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश निरंतर उन्नति के पथ पर अग्रसर है। मोदी सरकार द्वारा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास‘ अभियान चलाया जा रहा है। सरकार ने कमजोर आय वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए अनेक योजनाएं बनाई हैं, जिनका लाभ देश के निर्धन परिवारों को मिल रहा है। इन योजनाओं का यही उद्देश्य है कि देश के सभी निर्धन परिवारों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो। इस संबंध में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है। 

यह कहना अनुचित नहीं है कि अल्पसंख्यकवाद से देश में सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है। अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देने से बहुसंख्यकों को लगता है कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। इसी भांति अल्पसंख्यक भी स्वयं को विशेष मानकर मुख्यधारा से पृथक हो जाते हैं। वे स्वयं को पृथक रखना चाहते हैं तथा वही पृथकता उनकी पहचान बन जाती है। इस मनोवृत्ति से उन्हें हानि होती है। वे देश की मुख्यधारा से पृथक होकर पिछड़ जाते हैं तथा उनका समान रूप से विकास नहीं हो पाता। अल्पसंख्यकवाद से भाईचारा भी प्रभावित होता है। सांप्रदायिकता देश के समग्र विकास के लिए बहुत बड़ी बाधा है। इसलिए देश को अल्पसंख्यकवाद बनाम  बहुसंख्यकवाद की राजनीति से निकलना होगा। एक देश में एक ही विधान होना चाहिए। जब संविधान की दृष्टि में सब नागरिक समान हैं, तो उनके लिए सुविधाएं भी एक समान होनी चाहिए।

(लेखक-मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक है)

Friday, October 21, 2022

समापन सत्र













  समापन सत्र!
अनुभूति पाठ्यचर्या विकास कार्यशाला -लखनऊ

Wednesday, October 19, 2022

समाचार-पत्र में

 


हिंदी में ऐतिहासिक पहल


डॉ. सौरभ मालवीय  
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने हिंदी भाषा में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारम्भ करके शिक्षा के क्षेत्र में इतिहास रच दिया है। इस पहल के लिए मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की सरहाना की जानी चाहिए। भारत एक विशाल देश है। यहां के विभिन्न राज्यों की अपनी क्षेत्रीय भाषाएं हैं। स्वतंत्रता के पश्चात से ही मातृभाषा को प्रोत्साहित करने की बातें चर्चा में रही हैं, परंतु इनके विकास के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए। इसके कारण प्रत्येक क्षेत्र में विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व स्थापित हो गया। अब भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने देश के विभिन्न राज्यों की मातृभाषाओं के विकास का बीड़ा उठाया है। इसका प्रारम्भ मध्य प्रदेश से हुआ है। मध्य प्रदेश के पश्चात अब उत्तर प्रदेश में भी चिकित्सा एवं तकनीकी पढ़ाई हिंदी में होगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्वीट के माध्यम से इसकी घोषणा करते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में मेडिकल और इंजीनियरिंग की कुछ पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद कर दिया गया है। आगामी वर्ष से प्रदेश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में इन विषयों के पाठ्यक्रम हिंदी में भी पढ़ने के लिए मिलेंगे।
उल्लेखनीय है कि गत 16 अक्टूबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भोपाल में चिकित्सा शिक्षा की हिंदी भाषा की तीन पुस्तकों का विमोचन किया। इनमें एमबीबीएस प्रथम वर्ष की एनाटॉमी, फिजियोलॉजी एवं बायो केमिस्ट्री की पुस्तकें सम्मिलित हैं, जिनका हिन्दी में अनुवाद किया गया है। उल्लेख करने योग्य बात यह भी है कि चिकित्सीय शब्दावली को ज्यों का त्यों रखा गया है, क्योंकी संपूर्ण पाठ का हिंदी में अनुवाद करना संभव नहीं है। यदि ऐसा किया जाता है, तो इससे छात्रों के लिए कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। राज्य के 13 राजकीय महाविद्यालयों में हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारम्भ हो गई है। 
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस पहल के लिए शिवराज सरकार को बधाई देते हुए कहा कि आज का दिन शिक्षा के क्षेत्र में नवनिर्माण का दिन है। शिवराज सरकार ने देश में सर्वप्रथम चिकित्सा की हिंदी में पढ़ाई प्रारम्भ करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की इच्छा की पूर्ति की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदी, तमिल, तेलुगू, मलयालम, गुजराती, बंगाली आदि सभी क्षेत्रीय भाषाओं में चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराने का आह्वान किया था।
उन्होंने कहा कि देश के विद्यार्थी जब अपनी भाषा में पढ़ाई करेंगे, तभी वह सच्ची सेवा कर पाएंगे। साथ ही लोगों की समस्याओं को ठीक प्रकार से समझ पाएंगे। चिकित्सा के पश्चात अब 10 राज्यों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई उनकी मातृभाषा में प्रारम्भ होने वाली है। देशभर में आठ भाषाओं में इंजीनियरिंग की पुस्तकों का अनुवाद का कार्य प्रारम्भ हो चुका है और कुछ ही समय में देश के सभी विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त करना प्रारम्भ करेंगे। मैं देश भर के युवाओं से कहता हूं कि अब भाषा कोई बाध्यता नहीं है। आप इससे बाहर आएं। आपको अपनी मातृभाषा पर गर्व करना चाहिए। अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करके आप अपनी प्रतिभा का और अच्छी तरह प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र हैं। मातृभाषा में व्यक्ति सोचने, समझने, अनुसंधान, तर्क एवं कार्य और अच्छे ढंग से कर सकता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारतीय छात्र जब मातृभाषा में चिकित्सा और तकनीकी शिक्षा का अध्ययन करेंगे तो भारत विश्व में शिक्षा का बड़ा केन्द्र बन जाएगा। जो लोग मातृभाषा के समर्थक हैं, उनके लिए आज का दिन गौरव का दिन है। उन्होंने नेल्सन मंडेला का स्मरण करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति के सोचने की प्रक्रिया अपनी मातृभाषा में ही होती है। नेल्सन मंडेला ने कहा था कि अगर व्यक्ति से उसकी मातृभाषा में बात करें तो वह बात उसके दिल में पहुंचती है। 
यह सर्वविदित है कि मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना अत्यंत सहज एवं सुगम होता है। अपनी मातृभाषा में विद्यार्थी किसी भी विषय को सरलता से समझ लेता है, जबकि अन्य भाषा में उसे कठिनाई का सामना करना पड़ता है। विश्व भर के शिक्षाविदों ने मातृभाषा में शिक्षा प्रदान किए जाने को महत्व दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार अपनी मातृभाषा में चिकित्सा की पढ़ाई करवाने वाले देशों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था अन्य देशों से अच्छी स्थिति में है। चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस एवं जापान सहित अनेक देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। सर्वविदित है कि ये देश लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी हैं। इन देशों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करके ही उन्नति प्राप्त की है। यदि स्वतंत्रता के पश्चात भारत में भी मातृभाषा में चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान की जाती तो हम भी आज उन्नति के शिखर पर होते।      
उल्लेखनीय है कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारंभ होने से देश में बड़ा सकारात्मक परिवर्तन आएगा। लाखों छात्र अपनी भाषा में अध्ययन कर सकेंगे तथा उनके लिए कई नये अवसरों के द्वार भी खुलेंगे।   
निसंदेह ग्रामीण परिवेश एवं मध्यम वर्ग के हिंदी माध्यम में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए चिकित्सा एवं तकनीकी पढ़ाई सुगम हो जाएगी, क्योंकि उन्हें चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों में अंग्रेजी भाषा के कठिन शब्द समझने में कठिनाई होती है। चिकित्सा एवं इंजीनियरिग की शिक्षा के पश्चात विज्ञान, वाणिज्य एवं न्याय की शिक्षा भी मातृभाषा में होनी चाहिए। न्यायिक क्षेत्र में सारे कार्य भी मातृभाषा में होने चाहिए। न्यायिक मामलों की कार्यवाही भी मातृभाषा में होनी चाहिए। प्राय : न्यायालयों का सारा कार्य अंग्रेजी में होता है। लोगों को पता नहीं होता कि अधिवक्ता न्यायाधीश से क्या कह रहा है और क्या नहीं। उन्हें कार्यवाही की कोई जानकारी नहीं होती। अपनी मातृभाषा में न्यायिक कार्य होने से लोगों को आसानी हो जाएगी। 
कुछ लोग हिंदी में चिकित्सा एवं तकनीकी की पढ़ाई का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि छात्रों को हिंदी में पुस्तकें उपलब्ध नहीं होंगी। वास्तव में यही वे लोग हैं, जो अंग्रेजी का वर्चस्व स्थापित रखने के पक्ष में हैं। ये लोग नहीं चाहते कि भारतीय भाषाएं उन्नति करें। ऐसे लोगों के कारण ही स्वतंत्रता के पश्चात भी अंग्रेजी फलती-फूलती रही तथा भारतीय भाषाओं का विकास अवरुद्ध होता चला गया। वर्तमान में इन विषयों की बहुत सी पाठ्य पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु अभी चिकित्सा एवं तकनीकी पुस्तकों का अनुवाद का कार्य चल रहा है। पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त चिकित्सा से संबंधित अन्य पुस्तकों का अनुवाद का कार्य भी होगा। भविष्य में इन विषयों की पुस्तकों का कोई अभाव नहीं रहेगा। इसलिए पुस्तकों की उपलब्धता के कारण इस नई पहल का विरोध करना उचित नहीं है।       
पूर्व में अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान न होने के कारण योग्य एवं प्रतिभाशाली विद्यार्थी चिकित्सा एवं तकनीकी आदि विषयों की पढ़ाई नहीं कर पाते थे, किन्तु अब भाषा की बाधा दूर हो रही है। अब अंग्रेजी भाषा विद्यार्थियों के सुनहरे भविष्य के आड़े नहीं आएगी। यह देश का दुर्भाग्य है कि हिंदी को देश की राजभाषा घोषित करने पश्चात भी एक राजनीतिक षड्यंत्र के कारण विदेशी भाषा अंग्रेजी में कार्य करने को विशेष महत्व दिया जाता रहा है। अंग्रेजी के कारण हिंदी सहित लगभग सभी भारतीय भाषाएं पिछड़ती चली गईं। ये सब भाषाएं आज भी अपने मान-सम्मान के लिए संघर्ष कर रही हैं। किन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अथक प्रयासों से चिकित्सा एवं तकनीकी पढ़ाई हिंदी में प्रारम्भ होने से यह आशा जगी है कि भारतीय भाषाओं को उनका खोया हुआ मान-सम्मान पुन: प्राप्त हो सकेगा। 

अनुभूति पाठ्यचर्या विकास कार्यशाला

 अनुभूति पाठ्यचर्या विकास कार्यशाला -लखनऊ










Sunday, October 16, 2022

कुटुम्ब प्रबोधन

कुटुम्ब प्रबोधन
आत्मीय आयोजन
संत रविदास नगर, पूरब भाग - लखनऊ








Sunday, September 25, 2022

दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्मजयंती





गोरखपुर। एकात्म मानव दर्शन के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्मजयंती पर आयोजित गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में वक्ता के रूप में मुझे विषय प्रस्तुत करने का सुखद अवसर प्राप्त हुआ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो.पी. के. शर्मा -कुलपति, सुहेलदेव विश्विद्यालय, आजमगढ़, प्रो.अनुभूति दुबे ,अध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, गोरखपुर विवि. सहित अन्य गणमान्य रहें।

Monday, September 5, 2022

पुस्तक भेंट


सुखद मुलाक़ात!
आ.मनोज कांत जी
सह प्रचार प्रमुख
पूर्वी क्षेत्र- लखनऊ

पुस्तक भेंट अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश और भारत बोध

Monday, August 22, 2022

लालजी टण्डन जी को शुभकामनाएं



भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं लखनऊ के पूर्व सांसद श्री लालजी टण्डन जी को बिहार का राज्यपाल बनायें जाने की बधाई, शुभकामनाएं।
टण्डन जी बीजेपी के उन नेताओं में है जो अटल जी का अपार स्नेह पाए है। अटलजी पर केंद्रित पुस्तक लेखन से पूर्व चर्चा करते हुए।

Thursday, August 4, 2022

बैदापोसी से दिल्ली तक के संघर्ष गाथा की नायिका हैं द्रौपदी मुर्मू


-डॉ. सौरभ मालवीय  
आदिवासी समाज से संबंध रखने वाली द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से समाज में नई शक्ति का संचार होगा। समाज के सभी वर्ग में भी एक नया उत्साह उत्पन्न होगा। उनमें यह संदेश जाएगा कि इस देश का कोई भी व्यक्ति अपने परिश्रम एवं लगन के बल पर देश के सर्वोच्च पद तक पहुंच सकता है। द्रौपदी मुर्मू स्वयं कहती हैं, “मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है। जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है- ‘मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ’ अर्थात अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है। यह मेरे लिए संतोष की बात है जो सदियों से वंचित रहे, विकास के लाभ से दूर रहे, वे गरीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझमें अपना प्रतिबिम्ब देख सकते हैं। मेरे इस निर्वाचन में देश के गरीबों का आशीर्वाद सम्मिलित है। देश की करोड़ों गरीब महिलाओं और बेटियों के सपनों एवं सामर्थ्य की झलक है। मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे केवल अपना ही भाग्य नहीं बनाते, अपितु देश का भी भाग्य बनाते हैं। आज हम इसे सच होते देख रहे हैं। मैं चाहती हूं कि हमारी सभी बहनें एवं बेटियां अधिक से अधिक सशक्त हों तथा वे देश के हर क्षेत्र में अपना योगदान बढ़ाती रहें।
देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का जीवन अत्यंत संघर्षमय रहा है। ओडिशा के रायरंगपुर से राजधानी दिल्ली के राष्ट्रपति भवन तक की उनकी यात्रा अत्यंत कठिन रही है। इस यात्रा में उन्हें अनेक संकटों का सामना करना पड़ा, किन्तु उन्होंने पराजय स्वीकार नहीं की तथा अपनी यात्रा को जारी रखा. परिणाम स्वरूप वह देश की राष्ट्रपति चुनी गईं। इससे पूर्व वह झारखंड की प्रथम आदिवासी एवं महिला राज्यपाल रह चुकी हैं। उन्होंने भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। साथ ही वह भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं हैं।
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी ग्राम में एक संथाल परिवार में हुआ था। उनके पिता बिरंचि नारायण टुडु किसान थे। उन्होंने अपने गृह जनपद से आरंभिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने भुवनेश्वर के रामादेवी महिला महाविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अपने गांव की प्रथम लड़की थीं, जिसने स्नातक की शिक्षा पाप्त की थी। शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात उन्होंने अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरंभ किया। इसके पश्चात उन्होंने सिंचाई तथा बिजली विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में भी कार्य किया। इसके पश्चात उन्होंने मानद सहायक शिक्षक के रूप में भी कार्य किया। 
उन्होंने अपने बचपन में निर्धनता और अभावों का सामना किया था। उन्होंने अपने समाज के लोगों की दयनीय स्थिति देखी थी। वे अपने समाज एवं देश के लिए कुछ करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने राजनीति में आने का निर्णय लिया। उनका विचार था कि राजनीति के माध्यम से सत्ता प्राप्त करने के पश्चात वह अपने समाज के लोगों के लिए कुछ कर पाएंगी। उन्होंने वर्ष 1997 में रायरांगपुर में पार्षद का चुनाव लड़ा और विजय प्राप्त की। इसके पचात वह जिला परिषद की उपाध्यक्ष भी चुनी गईं। उन्होंने वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव लड़ा तथा इसमें भी उन्हें विजय प्राप्त हुई। रायरांगपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने जाने के पश्चात उन्हें बीजद एवं भाजपा गठबंधन वाली नवीन पटनायक की सरकार में स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया। तत्पश्तात वर्ष 2002 में उन्हें ओडिशा सरकार में मत्स्य एवं पशुपालन विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। वर्ष 2006 में उन्हें भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत किया गया। वर्ष 2009 में उन्होंने रायरांगपुर विधानसभा क्षेत्र से दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा तथा इस बार भी उन्हें विजय प्राप्त हुई। ओडिशा विधानसभा ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। उन्होंने वर्ष 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ा, परन्तु दुर्भाग्वश उनकी पराजय हुई। फिर 18 मई, 2015 को उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। 
द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ। महाविद्यालय की पढ़ाई के दौरान उनकी भेंट श्याम चरण मुर्मू से हुई थी। उनकी यह भेंट मित्रता में परिवर्तित हो गई. फिर वह प्रेम में बदल गई। श्याम चरण मुर्मू ने विवाह का प्रस्ताव रखा, परन्तु द्रौपदी के परिवार के लोगों ने विवाह से मना कर दिया। किन्तु उन्होंने पराजय नहीं मानी। अंतत: कुछ समय पश्चात दोनों के परिवार के लोगों ने विवाह के लिए स्वीकृति दे दी। इस प्रकार वे विवाह के पवित्र बंधन में बंध गए। द्रौपदी मुर्मू का जीवन ठीकठाक चल रहा था, किन्तु ऐसा समय भी आया जब उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। वर्ष 2009 में उनके बड़े पुत्र की एक सड़क  दुर्घटना में मृत्यु हो गई। वह अपने युवा पुत्र की मृत्यु के दुख उबर भी नहीं पाई थीं कि इसके पश्चात वर्ष 2013 में उनके दूसरे पुत्र की भी मृत्यु हो गई। इसके अगले ही वर्ष 2014 में उनके पति की भी मृत्यु हो गई। दो युवा पुत्रों और पति की मृत्यु से वह टूट गईं। इस दुख से उबरने के लिए उन्होंने मेडिटेशन का सहारा लिया। लंबे समय के पश्चात उनकी मनोस्थिति कुछ ठीक हुई।  
द्रौपदी मुर्मू ने अपने दुख भूलकर अपना कार्य फिर से आरंभ कर दिया। एनडीए ने उन्हें राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़ा किया। उन्होंने विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को पराजित कर विजय प्राप्त की। इस प्रकार वह राष्ट्रपति चुनी गईं। वह देश की द्वितीय महिला राष्ट्रपति हैं तथा स्वतंत्र भारत में जन्म लेने वाली प्रथम राष्ट्रपति हैं।  
अपने शपथ ग्रहण के पश्चात समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने स्वयं को संथाली एवं आदिवासी बताते हुए जलाशयों एवं वनों के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं।“
आशा है कि आदिवासी समाज से राष्ट्रपति बनने के पश्चात देश में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर अब और अधिक बल दिया जाएगा तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार की दिशा में किए जाने वाले कार्यों की गति भी तीव्र होगी।     
(लेखक- मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक है)

समाचार पत्र में

 


Monday, August 1, 2022

जीवन मूल्य






जीवन मूल्य
सामाजिक एवं भावनात्मक अधिगम 
सम्बन्धों को जीना सीखें.
आनन्द ही जीवन है. दूसरों की प्रसन्नता में सहयोगी बनें.

कुटुंब का पैगाम -2025

लखनऊ।  यंगस्टर्स फाउंडेशन - द्वारा आयोजित 'कुटुंब का पैगाम -2025' में रहने का अवसर। संस्था के निदेशक श्री देश दीपक सिंह की दृष्टि बह...