Saturday, May 31, 2025

शिक्षक बनें भारतीय जीवन-मूल्यों के प्रेरक प्रतीक : सौरभ मालवीय






सिद्धार्थनगर (तेतरी बाजार)। रघुवर प्रसाद जायसवाल सरस्वती शिशु मंदिर इंटर कॉलेज में आयोजित नव चयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग के सातवें दिवस की वंदना सभा में लखनऊ विश्वविद्याल प्रोफेसर, प्रख्यात राजनीतिक विश्लेषक एवं विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय मंत्री श्री सौरभ मालवीय ने अपने प्रेरणाप्रद वक्तव्य में कहा कि शिक्षक केवल विषय ज्ञान का स्रोत नहीं, अपितु वह राष्ट्र की आत्मा का शिल्पकार होता है। उसका आचरण और जीवन भारतीय संस्कृति व चिंतन का जीवंत उदाहरण होना चाहिए।
वे “भारतीय चिंतन के आधार पर शिक्षक की जीवन शैली” विषयक सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत केवल भू-राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक चेतना है। भारत में शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका नहीं, अपितु समग्र मानव निर्माण रहा है।
भारतीय संस्कृति और सेवा परंपरा का स्मरण
भारतीय संस्कृति की सेवा परंपरा को रेखांकित करते हुए उन्होंने एक श्लोक उद्धृत किया:
 “परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थमिदं शरीरम्॥”
यह श्लोक उस जीवन-दृष्टि का प्रतीक है जहाँ जीवन सेवा, त्याग और परमार्थ के लिए समर्पित होता है।

शिक्षक का आचरण और राष्ट्र निर्माण
श्री मालवीय ने कहा कि शिक्षक का व्यक्तिगत आचरण ही समाज की दिशा निर्धारित करता है। जब उसमें स्व-अनुशासन, सत्यनिष्ठा और सांस्कृतिक मूल्यों का समावेश होता है, तभी वह विद्यार्थियों में चरित्र, मूल्य और राष्ट्रप्रेम के बीज बो सकता है।
उन्होंने महर्षि अरविंद के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा:
“शिक्षा राष्ट्र की आत्मा है।”

भारत – एक सांस्कृतिक चेतना
उन्होंने कहा कि विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ मातृभूमि को ‘भारत माता’ कहकर पुकारा जाता है।
दुनिया की कई सभ्यताएँ समय के साथ विलुप्त हो गईं क्योंकि वे अपने मूल्यों व परंपराओं की रक्षा नहीं कर सकीं। किंतु भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने अनगिनत आक्रमणों के बावजूद अपनी सांस्कृतिक चेतना को जीवित रखा।
भारत के मनीषियों के ज्ञान, तप और विचारों के आगे विदेशी आक्रांताओं को भी नतमस्तक होना पड़ा।

विद्या भारती – एक सांस्कृतिक आंदोलन
विद्या भारती के कार्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह संस्था केवल शैक्षणिक गतिविधियों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का नेतृत्व कर रही है। यहाँ का प्रत्येक शिक्षक एक आंदोलन का वाहक होता है, न कि केवल एक संस्था का कर्मचारी।

समापन संदेश
सत्र के अंत में उन्होंने आह्वान किया कि शिक्षक केवल पाठ न पढ़ाएं, बल्कि अपने आचरण से जीवन मूल्यों का मार्गदर्शन करें। यदि शिक्षक जागरूक और प्रेरणादायक होगा, तो राष्ट्र स्वतः जागृत हो उठेगा।
इस अवसर पर शिशु शिक्षा समिति गोरक्ष प्रांत के प्रदेश निरीक्षक श्री राम सिंह जी ने अतिथियों का परिचय कराया।
विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव ने मुख्य अतिथि का स्वागत अंगवस्त्र और श्रीफल भेंट कर किया।
कार्यक्रम में संभाग निरीक्षक श्री कन्हैया चौबे, संस्कृति बोध परियोजना के प्रांत संयोजक श्री दिवाकर मिश्र तथा समस्त प्रशिक्षार्थी बंधुओं की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
सभी आचार्यों ने भारतीय शिक्षा की मूल आत्मा से साक्षात्कार कर राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने का संकल्प लिया।
-योगेश कुमार श्रीवास्तव

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