Friday, January 31, 2025

बाबा साहब एवं भारतीय संविधान संगोष्ठी




बाबा साहब एवं भारतीय संविधान संगोष्ठी, कमलज्योति विशेषांक लोकार्पण
31 जनवरी। भाजपा मुख्यालय मालवीय ग्रन्थालय में कमलज्योति पत्रिका संविधान विशेषांक का लोकार्पण मुख्य अतिथि अवध क्षेत्रीय अध्यक्ष मा. कमलेश मिश्र जी ,विशिष्ठ अतिथि प्रदेश उपाध्यक्ष मा. देवेश कोरी जी, अध्यक्षता मा. भारत दीक्षित जी, अतिथि प्रदेश मंत्री मा. शंकर लाल लोधी जी ,वरिष्ठ पत्रकार प्रो.सौरभ मालवीय जी, पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य मा. अशोक कुमार जी, सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती विनीता जौहरी जी ,सुश्री शिल्पी राय, सुश्री स्वाति सिंह ई. विद्याभूषण गोंड़ जी ने किया।
संगोष्ठी की प्रस्तावना करते हुए डॉ चेत नारायण सिंह ने कहा कि भारतीय संविधान सर्व हितकारी लोककल्याण कारी है।  कुछ राजनीतिक दल वितंडावाद के तहत भाजपा सरकार द्वारा इसे समाप्त करने की बात दोहरा रहे है।
क्षेत्रीय अध्यक्ष श्री कमलेश मिश्र ने कहा कि काँग्रेस ने बाबा साहब का अपमान किया।
कार्यक्रम  श्री युगलकिशोर पांडेय दाऊ जी, प्रदीप सिंह बब्बू ,श्री शैलेश कुमार सिंह शैलू, सूर्यकांत अवस्थी तरुण कांत त्रिपाठी, श्री विमल सिंह ,सारिका शुक्ला, शिल्पी राय, पूनम पाल ,सोमदत्त वाजपेयी, राम प्रताप सिंह ,राजेश कुमार गोंड़, देवेश कुमार श्रीवास्तव, धीरेंद्र प्रताप वर्मा,अमरेंद्र सिंह,विश्वास पाल  आदि प्रमुख रहे।
कार्यक्रम का संचालन आभार,साधक राज कुमार ने किया।

गांधी व्यक्ति नहीं विचार है: डॉ.सौरभ मालवीय




लखनऊ। चारबाग़ स्टेशन पर सर्वोदय साहित्य का 30 वां गांधी पुस्तक मेला प्रारम्भ हुआ -उद्घाटन के अवसर पर कादम्बनी क्लब की चर्चित साहित्यकार और समाजसेवी मधु चतुर्वेदी लोकप्रिय साहित्यकार संजीव जायसवाल संजय , वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ सौरभ मालवीय रेल अधिकारी राहुल, प्रतीक श्रीवास्तव, स्टेशन निदेशक आशीष सिंह , तथा अनेक साहित्यकार रेल कर्मी उपस्थित थे।

मधु चतुर्वेदी जी ने गांधी जी को श्रद्धांजलि देते हुए बताया कि गांधी जी का सेवा भाव अतुलनीय है। संजीव जायसवाल संजय जी ने कहा कि गांधी जी ने आधुनिक समय और काल के हिसाब से भारतवासियों को अहिंसा का हथियार दिया। डॉ सौरभ मालवीय ने कहा कि गांधी एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचार हैं और पूरे विश्व मे प्रासंगिक हैं। स्टेशन निदेशक आशीष सिंह ने कहा कि चारबाग़ स्टेशन में गांधी जी और नेहरू का प्रथम मिलन हुआ जिससे भारतीय स्वत्रंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ आया। उन्होंने गांधी पुस्तक मेला की तारीफ की। गांधी पुस्तक मेला के संयोजक नीरज अरोड़ा ने बताया महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि के अवसर पर सर्वोदय साहित्य द्वारा चारबाग़ स्टेशन परिसर में 30 वां गांधी पुस्तक मेला का आयोजन किया जा रहा है। उक्त पुस्तक मेला में गांधी साहित्य के साथ अनेक महापुरूषों जैसे भारत रत्न विनोबा भावे , लोकनायक जयप्रकाश नारायण, स्वामी विवेकानंद ए पी जे अब्दुल कलाम आदि का साहित्य साथ में श्रेष्ठ हिंदी साहित्य , नैतिक बाल साहित्य समेत अनेक जनउपयोगी साहित्य को उपलब्ध कराया जाएगा। यह पुस्तक मेला 12 फरवरी तक सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक खुलेगा। इस अवसर पर  सर्वोदय साहित्य के संस्थापक कस्तूरी लाल अरोड़ा भी उपस्थित थे।
नीरज अरोड़ा
आयोजक, संयोजक
गांधी पुस्तक मेला
30 जनवरी 2023



Monday, January 27, 2025

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू


डॉ. सौरभ मालवीय  
उत्तराखंड सरकार ने आज से राज्य में समान नागरिक संहित लागू कर दी है। उत्तराखंड विधानसभा द्वारा गत वर्ष समान नागरिक संहिता विधेयक-2024 पारित किया गया था। उत्तराखंड समान नागरिक संहित लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

समान नागरिक संहिता को लेकर देशभर में एक बार फिर से बहस जारी है। देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात बार-बार उठती रही है, परन्तु इस पर विवाद होने के पश्चात यह मामला दबकर रह जाता है। किन्तु जब से उत्तर प्रदेश में भाजपा की वापसी हुई है, तब से यह मामला फिर से तूल पकड़ने लगा है। जहां भाजपा इसे देशभर में लागू करना चाहती है, वहीं मुस्लिम संगठन इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। 

उल्लेखनीय है कि मुस्लिम समाज में विवाह कानूनों को लेकर ब्रिटिश शासनकाल से ही विवाद होता रहा है, क्योंकि मुसलमानों में बहु पत्नी प्रथा का चलन है। शरीयत के अनुसार पुरुषों को चार विवाह करने का अधिकार है। ऐसी स्थिति में मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति कितनी दयनीय होगी, यह सर्वविदित है। पति जब चाहे पत्नी को तीन तलाक कहकर घर से निकाल देता है। ऐसी स्थिति में महिला का जीवन नारकीय बन जाता है। शाह बानो प्रकरण ने लोगों का ध्यान इस ओर खींचा था। वर्ष 1978 में शाह बानो नाम की वृद्धा को उसके पति ने तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया था। उसके पांच बच्चे थे। पीड़ित महिला के पास जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं था। उसके पति ने उसे गुजारा भत्ता देने से स्पष्ट इनकार कर दिया था। इस पर महिला ने न्यायालय का द्वार खटखटाया। इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचने में सात वर्ष लग गए। वर्ष 1985 में सर्वोच्च न्यायालय ने उसके पति को निर्देश दिया कि वह अपनी तलाकशुदा पत्नी को जीविकोपार्जन के लिए मासिक भत्ता दे। न्यायालय ने यह निर्णय अपराध दंड संहिता की धारा-125 के अंतर्गत लिया था। विदित रहे कि अपराध दंड संहिता की यह धारा सब लोगों पर लागू होती है चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से संबंध रखते हों। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बेहतर हो जाती, परन्तु कट्टरपंथियों को यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का कड़ा विरोध किया। उन्होंने ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड नाम की एक संस्था का गठन किया तथा सरकार को देशभर में आन्दोलन करने की चेतावनी दे डाली। परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी कट्टरपंथियों के आगे झुक गए था तथा उनकी सरकार ने 1986 में संसद में कानून बनाकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया। इससे शाह बानो के सामने जीविकोपार्जन का संकट खड़ा हो गया। मानवता के नाते जिस समाज को वृद्धा की सहायता करनी चाहिए थी, वही उसका शत्रु बन गया। आज भी यही स्थिति है। मुस्लिम समाज में शाह बानो जैसी महिलाओं की कमी नहीं है। मुस्लिम समाज में ऐसे मामले सामने आते रहते हैं कि पति ने तीन तलाक कहकर पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया। ऐसी स्थिति में पीड़ित महिला का कोई साथ नहीं देता। मुस्लिम समाज की महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पहले भाजपा सरकार ने तीन तलाक को रोकने का कानून बनाया और अब समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए प्रयासरत है। भाजपा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि यदि भाजपा सत्ता में आती है, तो देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी। इससे पूर्व  आरएसएस तथा जनसंघ द्वारा भी देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग की गई थी। वर्ष 1998 में भी भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने का वादा किया था। 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि भाजपा शासित राज्यों में सामान नागरिक संहिता कानून लाया जाएगा।  उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में चुनाव से ठीक पहले हमने समान नागरिक संहिता कानून लाने की घोषणा की थी। अब इसे विधानसभा से पारित करके कानून बना लिया जाएगा। इसी प्रकार अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी इसे लागू कर दिया जाएगा। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए शीघ्र ही एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा और राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को किसी भी कीमत पर बाधित नहीं होने दिया जाएगा। वहीं उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि इसे देश-प्रदेश में लागू किया जाना चाहिए, ऐसा करना अत्यंत आवश्यक है। उनका यह भी कहना है कि प्रदेश सरकार समान नागरिक संहिता कानून लागू करने पर विचार कर रही है। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा है कि प्रदेश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारे में सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि यह विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के लिए एक सम्मान का विषय है। 

उल्लेखनीय है कि समान नागरिक संहिता के अंतर्गत देश में निवास करने वाले सभी लोगों के लिए एक समान कानून का प्रावधान किया गया है। धर्म के आधार पर किसी भी समुदाय को कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा। इसके लागू होने की स्थिति में देश में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर एक ही कानून लागू होगा, अर्थात कानून का किसी धर्म विशेष से कोई संबंध नहीं रह जाएगा। ऐसी स्थिति में अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ समाप्त हो जाएंगे। वर्तमान में देश में कई निजी कानून लागू हैं, उदाहरण के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ, इसाई पर्सनल लॉ एवं पारसी पर्सनल लॉ। इसी प्रकार हिंदू सिविल लॉ के अंतर्गत हिंदू, सिख एवं जैन समुदाय के लोग आते हैं।  समान नागरिक संहिता लागू होने से इनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा तथा विवाह, तलाक एवं संपत्ति के मामले में सबके लिए एक ही कानून होगा।
 
इसके दूसरी ओर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताते हुए सरकार से इसे लागू न करने की अपील है। बोर्ड का कहना कि भारत के संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को उसके धर्म के अनुसार जीवन जीने की अनुमति दी है। इसे मौलिक अधिकारों में सम्मिलित किया गया है। 
 
नि:संदेह देश में समान नागरिक संहिता लागू होने से मुस्लिम समाज की महिलाओं का जीवन स्तर बेहतर हो जाएगा। यह कानून मुस्लिम समाज से बहुपत्नी प्रथा का उन्मूलन करने में प्रभावी सिद्ध हो सकेगा, क्योंकि इस समाज के पुरुष अपनी पत्नी के जीवित रहते दूसरा, तीसरा एवं चौथा विवाह नहीं कर पाएंगे। इतना ही नहीं, संपत्ति में भी पुत्रियों को पुत्रों के समान ही भाग मिलेगा। इसमें दो मत नहीं है कि समान नागरिक संहिता मुस्लिम महिलाओं के लिए सम्मानजनक कानून है, जो उन्हें सम्मान से जीवन जीने का अधिकार देगा। 


Sunday, January 26, 2025

शिक्षा कार्यक्रम




महाकुम्भ प्रयागराज में विद्या भारती द्वारा आयोजित सेवा क्षेत्र में शिक्षा कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ.कृष्ण गोपाल जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

Sunday, January 19, 2025

प्रेरणादायक हैं महर्षि वाल्मीकि के विचार

 

डॉ. सौरभ मालवीय 
विगत एक दशक से देशभर में भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का स्वर्णिम युग चल रहा है। उत्तर प्रदेश सहित देशभर में सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक कार्य तीव्र गति से चल रहे हैं। भारतीय संस्कृति का विश्वुभर में प्रचार-प्रसार हो रहा है। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अथक प्रयासों से ही संभव हो रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य में धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को निरंतर प्रोत्साहित कर रही है। इसी कड़ी में महर्षि वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। वाल्मीकि जयंती प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे महर्षि वाल्मीकि प्रकट दिवस भी कहा जाता है। इस दिन वाल्मीकि मंदिरों को सजाया जाता है। मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु सभा का आयोजन करते हैं। मंदिरों में कीर्तन एवं रामायण का पाठ होता है। इस दिन शोभायात्रा भी निकाली जाती है।    
 
योगी सरकार के आदेशानुसार राज्य के सभी जनपदों में वाल्मीकि जयंती हर्षोल्लास से मनाई जा रही है। महर्षि वाल्मीकि से संबंधित सभी स्थलों एवं मंदिरों में दीप प्रज्ज्वलन, दीपदान एवं रामायण के पाठ भी हो रहे हैं। यह कार्यक्रम जनपद, तहसील एवं विकास खंड स्तर पर आयोजित किए जा रहे हैं। इनके सफल आयोजन के लिए शासन ने विशेष प्रबंध किए हैं। आयोजन स्थलों पर स्वच्छता, पेयजल एवं विद्युत आदि का विशेष प्रबंध किया गया है। योगी सरकार ने इसके लिए अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए हैं। समन्वय संस्कृति विभाग, सूचना-जनसंपर्क विभाग एवं पर्यटन एवं संस्कृति परिषद मिलकर कार्य कर रहे हैं। योगी सरकार धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दे रही है।    
 
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व देश के अनेक स्थानों पर वाल्मीकि जयंती केवल वाल्मीकि समाज के लोगों तक ही सीमित थी। केवल वाल्मीकि मंदिरों में ही वाल्मीकि जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन होता था। पूर्वाग्रहों अथवा अपरिहार्य कारणों से वाल्मीकि जयंती मनाने का समाज में अधिक चलन नहीं था। किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के प्रयासों ने वाल्मीकि जयंती व्यापक स्तर पर धूमधाम से मनाई जाने लगी है। अब यह एक बड़ा पर्व बन चुकी है।  
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाल्मीकि जयंती पर लोगों को शुभकामनाएं देते हुए कहा था कि सामाजिक समानता और सद्भावना से जुड़े उनके अनमोल विचार आज भी भारतीय समाज को सिंचित कर रहे हैं। मानवता के अपने संदेशों के माध्यम से वे युगों-युगों तक हमारी सभ्यता और संस्कृति की अमूल्य धरोहर बने रहेंगे। महर्षि वाल्मीकि के विचार आज भी भारतीय समाज को प्रेरित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि के आदर्श लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि गरीब और दलितों के लिए आशा की किरण हैं। उनकी सरकार के कदम महर्षि वाल्मीकि के विचारों से प्रेरित हैं। भगवान राम के आदर्श आज भारत के कोने-कोने में एक-दूसरे को जोड़ रहे हैं, इसका बहुत बड़ा श्रेय महर्षि वाल्मीकि को ही जाता है।
 
भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि का योगदान 
महर्षि वाल्मीकि का भारतीय संस्कृति में जो स्थान है, वह किसी अन्य को प्राप्त नहीं है। उन्हें आदिकवि भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने रामायण नामक महाकाव्य की रचना की थी। यह संस्कृत का प्रथम महाकाव्य है। 
धार्मिक पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना करके वे घर-घर में विराजमान हो गए। उन्होंने रामायण की संस्कृत में रचना की थी। इसे वाल्मीकि रामायण भी कहा जाता है। यह मौलिक ग्रंथ है। इसके पश्चात अनेक भाषाओं में रामायण लिखी गई, परंतु सबका आधार यही संस्कृत की वाल्मीकि रामायण ही थी। वाल्मीकि रामायण का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। 
 
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के माध्यम से भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम का जीवन दर्शन जनसाधारण तक पहुंचाने का कार्य किया। मान्यता है कि रामायण लिखने की प्रेरणा उन्हें एक पक्षी से प्राप्त हुई थी। एक समय की बात है कि वाल्मीकि ने एक वृक्ष की शाखा पर बैठे क्रौंच पक्षी के एक युगल को देखा। वह युगल प्रेमालाप में लीन था। वाल्मीकि उस युगल को एकटक निहार रहे थे, तभी नर पक्षी को बहेलिये का एक तीर आकर लगा और वह वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गया। अपने साथी की मृत्यु पर मादा पक्षी वेदना से तड़प उठी और विलाप करने लगी। उसके वेदनापूर्ण विलाप को सुनकर वाल्मीकि को अत्यंत दुख हुआ। वे उसकी पीड़ा से द्रवित हो उठे। इसी अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही एक श्लोक निकला-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
अर्थात हे दुष्ट, तुमने प्रेम में लीन क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी तथा तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।
 
मान्यता यह भी है कि वाल्मीकि आदिकवि होने के साथ-साथ खगोल एवं ज्योतिष विद्या के भी ज्ञाता थे। इसका आधार यह है कि उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र व अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है, जिसे इन विद्याओं का ज्ञान हो।
 
महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के पुरोधा भी हैं। उन्होंने रामायण के माध्यम से श्रीराम के महान चरित्र से लोगों को अवगत करवाया है। उनके कारण ही अनंतकाल तक जनसाधारण श्रीराम से जुड़ा रहेगा। रामायण से ही हमें श्रीराम को जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। वे एक आदर्श पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन का पालन करने के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया। उन्होंने राजा दशरथ द्वारा अपनी पत्नी कैकेयी को दिए वचन को पूर्ण करने के लिए अपना राज सिंहासन त्याग कर चौदह वर्ष का वनवास प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया। उन्होंने माता कैकेयी की प्रसन्नता के लिए वनवास स्वीकार किया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि उनके लिए पिता के वचन एवं माता की प्रसन्नता से अधिक कुछ भी महत्व नहीं रखता। उन्होंने वैभवशाली एवं ऐश्वर्य का जीवन त्याग दिया तथा वन में रहना उचित समझा। उन्होंने अपने पिता की मनोव्यथा एवं उनकी विवशता को हृदय से अनुभव किया। वे बिना किसी अनर्द्वन्द्व के वनवास के लिए चले गए। यह कोई सरल कार्य नहीं था, परंतु उन्होंने ऐसा कठोर निर्णय लिया। कुछ समय पूर्व ही उनका विवाह हुआ था। उन्हें अपनी पत्नी के साथ सुखमय दाम्पत्य जीवन का प्रारंभ करना था। श्रीराम के साथ-साथ उनकी पत्नी ने भी त्याग किया। जो सीता राजभवन में पली थीं। उन्होंने भी राजभवन का सुख त्याग कर पति के साथ वन में जाना चुना। इसी प्रकार श्रीराम के छोटे भ्राता लक्ष्मण ने भी अपने भाई और भाभी की सेवा के लिए वन में जाने का निर्णय लिया। वनवास तो केवल श्रीराम के लिए था, परंतु सीता और लक्ष्मण ने भी वनवास का स्वेच्छा से चयन करके यह सिद्ध कर दिया की उनके लिए श्रीराम से बढ़कर कुछ भी नहीं है। भरत ने भी हाथ में आया राजपाट त्याग दिया तथा अपनी माता कैकेयी से स्पष्ट रूप से कह दिया कीस राज सिंहासन पर केवल श्रीराम का ही अधिकार है। इसलिए वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। वास्तव में रामायण एक ऐसी कथा है, जो परिवार एवं समाज में आदर्श स्थापित करती है। 
 
किंवदंती है कि श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का त्याग कर दिया था। इस प्रकार माता सीता को पुन: वन में आना पड़ा। उस समय महर्षि वाल्मीकि ने माता सीता को अपने आश्रम में शरण दी थी। माता सीता अपना परिचय सबको नहीं देना चाहती थीं, इसलिए महर्षि ने उन्हें वन देवी का नाम दिया था। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। यहीं लव और कुश ने अश्वमेघ को पकड़ा था और यहीं उनकी अपने पिता श्रीराम से भेंट हुई थी। महर्षि वाल्मीकि ने भारतीय जनमानस में राम के मर्यादित जीवन और सामाजिक जीवन को स्थापित किया।
(लेखक - सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अध्येता हैं)

 

टूटते संबंध, बढ़ता अवसाद


डॉ. सौरभ मालवीय 
मनुष्य जिस तीव्र गति से उन्नति कर रहा है, उसी गति से उसके संबंध पीछे छूटते जा रहे हैं. भौतिक सुख-सुविधाओं की बढ़ती इच्छाओं के कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं. माता-पिता बड़ी लगन से अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं. उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. परिवार में लड़कियां हैं, तो वे विवाह के पश्चात ससुराल चली जाती हैं और लड़के नौकरी की खोज में बड़े शहरों में चले जाते हैं. इस प्रकार वृद्धावस्था में माता-पिता अकेले रह जाते हैं. इसी प्रकार शहरों में उनके बेटे भी अकेले हो जाते हैं.

संयुक्त परिवार टूटने के कारण एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं. एकल परिवारों के कारण संबंध टूट रहे हैं. संयुक्त परिवारों में बहुत से रिश्ते होते थे. दादा-दादी, ताया-ताई, चाचा-चाची, बुआ-फूफा, नाना-नानी, मामा-मामी, मौसी-मौसा तथा उनके बच्चे अर्थात बहुत से भाई-बहन. बच्चे बचपन से ही इन सभी संबंधों को जानते थे, परन्तु अब एकल परिवारों में माता-पिता और उनके दो या एक बच्चे ही हैं. संयुक्त परिवार टूटने के अनेक कारण हैं. रोजगार के अतिरिक्त परिवार के सदस्यों में बढ़ते मतभेद, कटुता एवं स्वार्थ आदि के कारण भी एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं. ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति नितांत अकेला पड़ता जा रहा है. संयुक्त परिवार में समस्याएं सांझी होती थीं. व्यक्ति किसी कठिनाई या समस्या होने पर परिवार के सदस्यों के साथ विचार-विमर्श कर लेता था. इस प्रकार उसे समस्या का समाधान घर में ही मिल जाता था.

संयुक्त परिवार के बहुत से लाभ हैं. परिवार के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा का दायित्व सबका होता है. किसी भी सदस्य की समस्या पूरे परिवार की होती है. यदि किसी को पैसे आदि की आवश्यकता है, तो पैसे बाहर किसी से मांगने नहीं पड़ते. परिवार के सदस्य ही मिलजुल कर सहयोग कर देते हैं. परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण घर और बाहर के कार्यों का विभाजन हो जाता है. प्रत्येक सदस्य अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार कार्य कर लेता है तथा अन्य कार्यों से मुक्त रहता है. ऐसे में उसे अपने लिए पर्याप्त समय मिल जाता है. इसके अतिरिक्त संयुक्त परिवार में रसोई एक होने के कारण खर्च भी कम हो जाता है. उदाहरण के लिए दो या तीन एकल परिवार यदि संयुक्त परिवार के रूप में रहते हैं, तो उन्हें अधिक सामान की आवश्यकता होगी. थोक में अधिक सामान लेने पर वह सस्ता पड़ता है. इसी प्रकार तीन के बजाय एक ही फ्रिज से काम चल जाता है. ऐसी ही और भी चीजें हैं. परिवार के किसी सदस्य के बीमार होने पर उसकी ठीक से देखभाल हो जाती है. परिवार के सदस्य साथ रहते हैं, तो उनमें भावनात्मक लगाव भी बना रहता है. इसके अतिरिक्त बच्चों का पालन-पोषण भी भली-भांति आसानी से हो जाता है. उनमें अच्छे संस्कार पैदा होते हैं. वे यह भी सीख जाते हैं कि किस व्यक्ति के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए. इसमें बड़ों का सम्मान करना, अपनी आयु के लोगों के साथ मित्रवत व्यवहार करना तथा छोटों से स्नेह रखना आदि सम्मिलित हैं.   
   
आज परिस्थितियां पृथक हैं. मनुष्य किसी भी कठिनाई या किसी संकट के समय स्वयं को अकेला ही पाता है. यदि परिवार में महिला का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो तब भी उसे घर का सारा कार्य स्वयं करना पड़ता है, जबकि संयुक्त परिवार में अन्य महिलाएं होने के कारण उसे आराम करने का समय मिल जाता था. साथ ही उसकी भी उचित प्रकार से देखभाल भी हो जाती थी.    

एकल परिवार में अकेले पड़ जाने के कारण व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है. अवसाद एक मानसिक रोग है. इस अवस्था में व्यक्ति स्वयं को निराश अनुभव करता है. वह स्वयं को अत्यधिक लाचार समझने लगता है. ऐसी स्थिति में प्रसन्नता एवं आशा उसे व्यर्थ लगती है. वे अपने आप में गूम रहने लगता है. वह किसी से बात करना पसंद नहीं करता. हर समय चिड़चिड़ा रहता है. यदि कोई उससे बात करने का प्रयास करता है, तो वे क्रोधित हो जाता है. कभी वह उसके साथ असभ्य अथवा उग्र व्यवहार भी करता है. मनोचिकित्सकों के अनुसार अवसाद के भौतिक कारण भी होते हैं, जिनमें आनुवांशिकता, कुपोषण, गंभीर रोग, नशा, कार्य का बोझ, अप्रिय स्थितियां आदि प्रमुख हैं. अवसाद की अधिकता होने पर व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है. अवसाद के कारण आत्महत्या करने के अप्रिय समाचार सुनने को मिलते रहते हैं. ऐसे विचलित करने वाले समाचार भी मिलते हैं कि अमुक व्यक्ति ने सपरिवार आत्महत्या कर ली या परिवार के सदस्यों की हत्या करने के पश्चात स्वयं भी आत्महत्या कर ली.   

कोरोना काल में जहां संयुक्त परिवारों के लोग एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहे, वहीं एकल परिवारों के लोग अवसाद का शिकार होने लगे. ‘द लैंसेट पब्लिक हेल्थ’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों में अवसाद एवं घबराहट की शिकायतें देखने को मिल रही है. सात दिन या उससे अधिक समय तक कोरोना वायरस संक्रमण से पीड़ित रहे लोगों में अवसाद एवं घबराहट की दर उन लोगों की तुलना में अधिक थी, जो संक्रमित रोगी कभी अस्पताल में भर्ती नहीं हुए अर्थात वे अपने परिजनों के मध्य ही रहे. रिपोर्ट के अनुसार सार्स-कोव-2 संक्रमण वाले ऐसे रोगी जो अस्पताल में भर्ती हुए उनमें 16 महीने तक अवसाद के लक्षण देखे गए, परन्तु जिन रोगियों को अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ा, उनमें अवसाद और घबराहट के लक्षण दो महीने के भीतर ही कम हो गए. सात दिनों या उससे अधिक समय तक बिस्तर पर रहने वाले लोगों में 16 महीने तक अवसाद और घबराहट की समस्या 50 से 60 प्रतिशत अधिक थी.

मनोचिकित्सकों के अनुसार अवसाद से निकलने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने परिजनों एवं मित्रों के साथ समय व्यतीत करे. किसी भी समस्या या संकट के समय परिजनों से बात करे. स्वयं को अकेला न समझे. सकारात्मक विचारों वाले व्यक्तियों से बात करे. परिजनों को भी चाहिए कि वे अवसादग्रस्त लोगों में सकारात्मक विचार पैदा करने का प्रयास करें, उन्हें अकेला न छोड़ें, क्योंकि ऐसे लोग आसानी से अपराध की ओर अग्रसर हो सकते हैं. उन्हें उनकी किसी भी नाकामी के लिए तानें न दें, अपितु उनको प्रोत्साहित करें तथा उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएं.

वास्तव में आज तकनीकी ने समस्त संसार के लोगों को जितना समीप कर दिया है, उतना ही एक-दूसरे से दूर भी कर दिया है. मोबाइल के माध्यम से व्यक्ति क्षण भर में विदेश में बैठे व्यक्ति से भी बात कर लेता है. परन्तु मोबाइल के कारण ही लोगों को परिवार के सदस्यों से बात करने का समय नहीं मिल पाता. प्रत्येक स्थान पर लोग अपने मोबाइल के साथ व्यस्त दिखाई देते हैं. परिणामस्वरूप व्यक्ति का अकेलापन बढ़ता जा रहा है. व्यक्ति व्यक्ति से दूर होता चला जा रहा है. आवश्यकता है सामूहिक संवाद की, प्रत्यक्ष संवाद मन से भाव से विचार से हमे जोड़ता है, दुख-सुख में सहायक होकर साथ होने की अनुभूति प्रदान करता है।

Wednesday, January 15, 2025

माटी की महक

 

रोपन छपरा निवासी प्रो.ध्रुव सेन सिंह जी के आमंत्रण पर उनके परिवार द्वारा संचालित जूनियर हाई स्कूल रोपन छपरा, लार में स्वर्गीय भद्रसेन सिंह जी की 13वीं पुण्यतिथि पर आयोजित स्वास्थ्य शिविर और विज्ञान प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर पूनम टंडन जी के साथ रहना हुआ।

Monday, January 13, 2025

बस्ती में आयोजित पूर्व छात्र समागम

 बस्ती के सरस्वती विद्या मन्दिर में आयोजित पूर्व छात्र समागम 







मासिक गोष्ठी : भविष्य का भारत मार्गदर्शन




मासिक गोष्ठी
विषय : भविष्य का भारत
मार्गदर्शन -
मा. स्वांत रंजन जी
अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,
संस्कृति पुनरूत्थान समिति व राष्ट्रधर्म प्रकाशन लि. के तत्वावधान में उक्त विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया।

Sunday, January 12, 2025

Friday, January 10, 2025

वैश्विक परिदृश्य में महाकुंभ का महत्व

 

डॉ. सौरभ मालवीय 
महाकुंभ एक वैश्विक आयोजन है, जिसमें विश्व भर से आए श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, अपितु यह विभिन्न संस्कृतियों का एक महासंगम है। इसमें विभिन्न संस्कृतियों, परम्पराओं एवं भाषाओं के लोग भाग लेते हैं। यह विभिन्नताओं में एकता का प्रतीक है। इसकी एक बड़ी विशेषता यह भी है कि इस अवसर पर श्रद्धालुओं को साधु-संतों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है। इसमें ऐसे साधु-संत भी सम्मिलित होते हैं, जो अपना अधिकांश समय तपस्या एवं साधना में व्यतीत करते हैं तथा उन्हें जनसाधारण से भेंट करने का समय नहीं मिलता। कुंभ मेले की महत्ता के दृष्टिगत वर्ष 2017 में यूनेस्को द्वारा इसे अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की गई, क्योंकि यह मेला ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व रखता है। 
एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में यूनेस्को के अधीन अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा करने वाली अंतर-सरकारी समिति ने 4 से 9 दिसंबर तक दक्षिण कोरिया के जेजु में आयोजित अपने बारहवें सत्र में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में कुंभ मेला’ को उत्कीर्ण किया था। ‘कुंभ मेला’ के अभिलेख को विशेषज्ञ निकाय द्वारा अनुशंसित किया गया था। यह निकाय सदस्य राज्यों द्वारा प्रस्तुत नामांकन की विस्तार से जांच-पड़ताल करता है। समिति ने कहा था कि ‘कुंभ मेला’ पृथ्वी पर तीर्थ यात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है। इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में आयोजित यह उत्सव भारत में पूजा से संबंधित अनुष्ठानों के एक समन्वित समूह का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक सामाजिक अनुष्ठान एवं उल्लासमय समारोह है, जो समुदाय की अपने इतिहास एवं स्मृति की धारणा से संबंधित है। यह तत्व वर्तमान अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों से संबंधित है, क्योंकि इसमें समाज के सभी वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के समान उत्साह से भाग लेते हैं। एक धार्मिक उत्सव के रूप में कुंभ मेला यह दर्शाता है कि समकालीन विश्व के लिए सहिष्णुता एवं सम्मिलन विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।

समिति ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि ‘कुंभ मेला’ से जुड़े ज्ञान एवं कौशल गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से संतों एवं साधुओं द्वारा अपने शिष्यों को पारंपरिक अनुष्ठानों एवं मंत्रों से संबंधित ज्ञान प्रेषित करते हैं। इससे इस उत्सव की निरंतरता और व्यवहार्यता सुनिश्चित रहेगी। वर्ष 2003 में यूनेस्को की महासभा ने एक अंतरराष्ट्रीय संधि के रूप में अमूर्त धरोहर की सुरक्षा की संधि को अपनाया एवं स्वीकार किया कि सांस्कृतिक धरोहर में मात्र मूर्त स्थान, स्मारक और वस्तुएं ही नहीं, अपितु परंपराएं एवं जीवंत अभिव्यक्तियां भी सम्मिलित हैं। अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर का अर्थ प्रथाओं, प्रतिनिधित्वों, अभिव्यक्तियों, ज्ञान एवं कौशल के साथ-साथ उनसे जुड़े उपकरणों, वस्तुओं, कलाकृतियों और सांस्कृतिक स्थानों से है, जिन्हें विभिन्न समुदाय, समूह एवं व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक धरोहर का एक भाग मानते हैं। यह अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर समुदायों एवं समूहों द्वारा अपने पर्यावरण, अपनी प्रकृति और अपने इतिहास से संपर्क की प्रतिक्रिया में लगातार निर्मित की जाती है, यह उन्हें पहचान और निरंतरता की भावना प्रदान करती है। इस प्रकार यह सांस्कृतिक विविधता एवं मानव रचनात्मकता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती है। इसका महत्व इसके अद्वितीय होने के कारण नहीं, अपितु इसलिए है कि समुदाय द्वारा इसका अनुसरण किया जाना प्रासंगिक है। इसके अतिरिक्त इसका महत्व सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में ही नहीं, अपितु ज्ञान, क्रिया विधि और कौशल की समृद्धि में है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपी जाती है।
वास्तव में महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का जीवंत प्रतीक है। यह अध्यात्म, खगोल विज्ञान, ज्योतिष, धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं का सामूहिक आयोजन है। यह देश की सांस्कृतिक धरोहर है। यह मेला देश की गौरवशाली संस्कृति का संवाहक है। यह देश की आध्यात्मिक शक्ति एवं आस्था को दर्शाता है कि किस प्रकार भारतीय अपनी आस्था का सामूहिक रूप से प्रदर्शन करते हैं। यह मेला भारतीय कला, संस्कृति, संगीत, गायन, नृत्य, हस्तशिल्प आदि कलाओं को प्रोत्साहित करता है। इस मेले में संपूर्ण भारतीय संस्कृति का समावेश है। इस आयोजन में प्राचीन भारत की गौरवमयी संस्कृति के साथ ही आधुनिक भारत भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इस पवित्र धार्मिक आयोजन में भाग होने से आत्मा के अजर एवं अमर होने की भारतीय मान्यता पर विश्वास अत्यधिक दृढ़ हो जाता है। नि:संदेह कुंभ मेला भारतीय दर्शन का प्रतीक है।        
   
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ कुंभ मेले का शुभारंभ हुआ तथा 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ यह समाप्त हो गया। इस आयोजन के अंतर्गत शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर, 3 फरवरी को बसंत पंचमी पर, 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा पर तथा 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर हुआ। इस मेले में लगभग 50 करोड़ लोगों से भाग लिया।   

सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व
प्रयागराज हिंदुओं का अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां गंगा, यमुना एवं सरस्वती का अद्भुत संगम होता है जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले के अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के मध्य छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ का शाब्दिक अर्थ घड़ा एवं मेले का अर्थ एक स्थान पर एकत्रित होना है। कुंभ मेला अमृत उत्सव के नाम से भी प्रसिद्ध है।
खगोल गणनाओं के अनुसार कुंभ मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारंभ होता है। उस समय सूर्य एवं चंद्रमा, वृश्चिक राशि में तथा वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिवस को अति शुभ एवं मंगलकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार खुल जाते हैं। इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु अमृत से भरा हुआ कुंभ लेकर जा रहे थे तभी असुरों ने उन पर आक्रमण कर दिया। अमृत प्राप्ति के लिए देव एवं दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध होता रहा। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के समान होते हैं। इसलिए कुंभ भी बारह होते हैं। इनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं तथा शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं। देव एवं दानवों के इस संघर्ष के दौरान भूमि पर अमृत की चार बूंदें गिर गईं। ये बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में गिरीं। जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं वहां पर तीर्थ स्थल का निर्माण किया गया। तीर्थ उस स्थान को कहा जाता है जहां मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार जहां अमृत की बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर तीन-तीन वर्ष के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इन तीर्थों में प्रयाग को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना एवं सरस्वती का संगम होता है। इन नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। 

भारत में महाकुंभ धार्मिक स्तर पर अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण आयोजन है। इसमें लाखों-करोड़ों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। इस बार के महाकुंभ में लगभग 40 करोड़ तीर्थयात्रियों के सम्मिलित होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। लगभग डेढ़ मास तक संचालित होने वाले इस आयोजन में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए व्यवस्था की जाती है। उनके लिए टेंट लगाए जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि एक छोटी सी नगरी अलग से बसा दी गई है। यहां तीर्थयात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है। यह आयोजन प्रशासन, स्थानीय प्राधिकरणों एवं पुलिस की सहायता से आयोजित किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर से साधु-संत आते हैं। कुंभ योग की गणना कर स्नान का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। स्नान से पूर्व मुहूर्त में नागा साधु स्नान करते हैं। इन साधुओं के शरीर पर भभूत लिपटी रहती है। उनके बाल लंबे होते हैं तथा वे वस्त्रों के स्थान पर शरीर पर मृगचर्म धारण करते हैं। स्नान के लिए विभिन्न नागा साधुओं के अखाड़े भव्य रूप से शोभा यात्रा की भांति संगम तट पर पहुंचते हैं। ये साधु मेले का आकर्षण का केंद्र होते हैं। 

उत्तर प्रदेश धर्म, संस्कृति एवं पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। महाकुंभ मेले के कारण यहां विश्वभर से तीर्थयात्रियों के साथ-साथ पर्यटक भी आएंगे। इसलिए प्रयागराज के ऐतिहासिक मंदिरों का जीर्णोद्धार एवं नवीनीकरण किया जा रहा है। पर्यटन विभाग, स्मार्ट सिटी एवं प्रयागराज विकास प्राधिकरण मिलकर यह कार्य कर रहे हैं। मेला प्रशासन श्रद्धालुओं और पर्यटकों की आस्था एवं सुविधा को प्राथमिकता दे रहा है, जिससे उन्हें स्मरणीय अनुभव प्राप्त हो सके तथा वे यहां से प्रसन्नतापूर्वक वापस जाएं। पर्यटन विभाग जिन कॉरिडोर एवं नवीनीकरण परियोजनाओं की देखरेख कर रहा है, उनमें से मुख्य रूप से भारद्वाज कॉरिडोर, मनकामेश्वर मंदिर कॉरिडोर, द्वादश माधव मंदिर, पड़िला महादेव मंदिर, अलोप शंकरी मंदिर आदि सम्मिलित हैं। स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत अक्षयवट कॉरिडोर, सरस्वती कूप कॉरिडोर एवं पातालपुरी कॉरिडोर सम्मिलित हैं। प्रयागराज विकास प्राधिकरण नागवासुकी मंदिर का नवीनीकरण कार्य एवं हनुमान मंदिर कॉरिडोर का कार्य करवा रहा है।

जनसेवा का माध्यम 
कुंभ मेला जनसेवा का एक बड़ा माध्यम है। मेले में सम्मिलित होने वाले श्रद्धालु दान-पुण्य करते हैं। इससे निर्धन एवं वंचितों का कल्याण होता है। वेद, पुराणों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में दान के महत्व का उल्लेख मिलता है। अग्नि पुराण के अनुसार महाकुंभ में वस्त्र दान करने से एक सौ वर्ष तक भगवान की कृपा बनी रहती है तथा परिजनों पर आने वाली आपदाएं टल जाती हैं। मान्यता है कि कुंभ में वस्त्र दान करने से भगवान से विष्णु से धन, वैभव, समृद्धि एवं उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। विष्णु धर्म शास्त्र के अनुसार वस्त्र दान करने से आगामी जन्मों में निर्धनता एवं कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है।    

Tuesday, January 7, 2025

यूपी एग्रीज योजना से समृद्ध होंगे किसान

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित पत्रिका में मेरा लेख
यूपी एग्रीज योजना से समृद्ध होंगे किसान





सान्निध्य

 नववर्ष 2025 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रो. मुकुल श्रीवास्तव जी का सान्निध्य !!






Sunday, January 5, 2025

अयोध्या धाम दर्शन

अयोध्या धाम दर्शन 










भारतीय संस्कृति का प्रतीक है महाकुंभ मेला


डॉ. सौरभ मालवीय 
महाकुंभ मेला भारत की गौरवशाली संस्कृति का प्रतीक है। यह देश की सांस्कृतिक धरोहर है। यह मेला हमारी गौरवमयी संस्कृति का संवाहक है। यह भारत की आध्यात्मिक शक्ति एवं आस्था को दर्शाता है। यह कला-संस्कृति, गायन, नृत्य, हस्तकला को प्रोत्साहित करता है। इस मेले में संपूर्ण भारत की झलक मिलती है। इसमें प्राचीन भारत के साथ-साथ आधुनिक भारत का भी बोध होता है। मेले में सम्मिलित होने से आत्मा के अजर अमर होने की भारतीय मान्यता पर विश्वास अत्यधिक दृढ़ हो जाता है। यह मेला भारतीय दर्शन का प्रतीक है।           
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ कुंभ मेले का शुभारंभ होगा तथा 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ इसका समापन होगा। शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर, 3 फरवरी को बसंत पंचमी पर, 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा पर तथा 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर होगा। 
 
सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व
प्रयागराज हिंदुओं का अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां गंगा, यमुना एवं सरस्वती का अद्भुत संगम होता है जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले के अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के मध्य छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ का शाब्दिक अर्थ घड़ा एवं मेले का अर्थ एक स्थान पर एकत्रित होना है। कुंभ मेला अमृत उत्सव के नाम से भी प्रसिद्ध है।
खगोल गणनाओं के अनुसार कुंभ मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारंभ होता है। उस समय सूर्य एवं चंद्रमा, वृश्चिक राशि में तथा वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिवस को अति शुभ एवं मंगलकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार खुल जाते हैं। इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु अमृत से भरा हुआ कुंभ लेकर जा रहे थे तभी असुरों ने उन पर आक्रमण कर दिया। अमृत प्राप्ति के लिए देव एवं दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध होता रहा। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के समान होते हैं। इसलिए कुंभ भी बारह होते हैं। इनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं तथा शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं। देव एवं दानवों के इस संघर्ष के दौरान भूमि पर अमृत की चार बूंदें गिर गईं। ये बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में गिरीं। जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं वहां पर तीर्थ स्थल का निर्माण किया गया। तीर्थ उस स्थान को कहा जाता है जहां मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार जहां अमृत की बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर तीन-तीन वर्ष के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इन तीर्थों में प्रयाग को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना एवं सरस्वती का संगम होता है। इन नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। 
 
भारत में महाकुंभ धार्मिक स्तर पर अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण आयोजन है। इसमें लाखों-करोड़ों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। इस बार के महाकुंभ में लगभग 40 करोड़ तीर्थयात्रियों के सम्मिलित होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। लगभग डेढ़ मास तक संचालित होने वाले इस आयोजन में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए व्यवस्था की जाती है। उनके लिए टेंट लगाए जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि एक छोटी सी नगरी अलग से बसा दी गई है। यहां तीर्थयात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है। यह आयोजन प्रशासन, स्थानीय प्राधिकरणों एवं पुलिस की सहायता से आयोजित किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर से साधु-संत आते हैं। कुंभ योग की गणना कर स्नान का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। स्नान से पूर्व मुहूर्त में नागा साधु स्नान करते हैं। इन साधुओं के शरीर पर भभूत लिपटी रहती है। उनके बाल लंबे होते हैं तथा वे वस्त्रों के स्थान पर शरीर पर मृगचर्म धारण करते हैं। स्नान के लिए विभिन्न नागा साधुओं के अखाड़े भव्य रूप से शोभा यात्रा की भांति संगम तट पर पहुंचते हैं। ये साधु मेले का आकर्षण का केंद्र होते हैं। 
 
उत्तर प्रदेश धर्म, संस्कृति एवं पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। महाकुंभ मेले के कारण यहां विश्वभर से तीर्थयात्रियों के साथ-साथ पर्यटक भी आएंगे। इसलिए प्रयागराज के ऐतिहासिक मंदिरों का जीर्णोद्धार एवं नवीनीकरण किया जा रहा है। पर्यटन विभाग, स्मार्ट सिटी एवं प्रयागराज विकास प्राधिकरण मिलकर यह कार्य कर रहे हैं। मेला प्रशासन श्रद्धालुओं और पर्यटकों की आस्था एवं सुविधा को प्राथमिकता दे रहा है, जिससे उन्हें स्मरणीय अनुभव प्राप्त हो सके तथा वे यहां से प्रसन्नतापूर्वक वापस जाएं। पर्यटन विभाग जिन कॉरिडोर एवं नवीनीकरण परियोजनाओं की देखरेख कर रहा है, उनमें से मुख्य रूप से भारद्वाज कॉरिडोर, मनकामेश्वर मंदिर कॉरिडोर, द्वादश माधव मंदिर, पड़िला महादेव मंदिर, अलोप शंकरी मंदिर आदि सम्मिलित हैं। स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत अक्षयवट कॉरिडोर, सरस्वती कूप कॉरिडोर एवं पातालपुरी कॉरिडोर सम्मिलित हैं। प्रयागराज विकास प्राधिकरण नागवासुकी मंदिर का नवीनीकरण कार्य एवं हनुमान मंदिर कॉरिडोर का कार्य करवा रहा है।

पौधारोपण  
महाकुंभ मेले के दृष्टिगत उत्तर प्रदेश को हरभरा बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। राज्य में हरित क्षेत्र के विस्तार के लिए संपूर्ण राज्य में 2.71 लाख पौधे लगाए जा रहे हैं। इसके लिए वन विभाग, नगर निगम एवं प्रयागराज विकास प्राधिकरण मिलकर कार्य कर रहे हैं तथा संयुक्त रूप से राज्यभर में अभियान चला रहे हैं। वन विभाग द्वारा 29 करोड़ रुपये की लागत से 1.49 लाख पौधे लगाए जाएंगे। वन विभाग संपूर्ण जिले में सड़कों के किनारे पौधे लगाएगा। नगर में आने वाली मुख्य सड़कों पर सघन पौधारोपण किया जा रहा है। सड़कों के किनारे नीम, पीपल, कदंब एवं अमलतास आदि के पौधे लगाए जा रहे हैं। इस अभियान के अंतर्गत सरस्वती हाईटेक सिटी में 20 हेक्टेयर में 87 हजार पौधे लगाए जाएंगे। इसके अतिरिक्त वन विभाग नगर के कुछ क्षेत्रों में पौधे लगाएगा। नगर में हरित पट्टी बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 

प्राकृतिक उत्पादों को प्रोत्साहन  
भारतीय जीवन शैली सदैव से प्रकृति के लिए सुखद रही है। देश के अनेक राज्यों विशेषकर दक्षिण भारत में आज भी केले के पत्तों पर भोजन परोसा जाता है। धार्मिक आयोजनों में होने वाले सामूहिक भोज में भी पत्तलों पर भोजन परोसा जाता है। महाकुंभ मेले में प्राकृतिक उत्पाद जैसे दोना, पत्तल, कुल्हड़ एवं जूट व कपड़े के थैलों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें पॉलीथिन एवं सिंगल यूज्ड प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध रहेगा। पॉलीथिन एवं प्लास्टिक पर्यावरण के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। 

स्वच्छता पर बल  
हमारे देश में आत्मा की शुद्धि के साथ-साथ शारारिक स्वच्छता पर भी विशेष बल दिया जाता है। महाकुंभ मेले में श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों की बड़ी संख्या में आने के दृष्टिगत क्षेत्र में लगभग डेढ़ लाख शौचालय एवं मूत्रालय स्थापित किए जा रहे हैं। इनको स्वच्छ बनाए रखने के लिए भी व्यापक तैयारी की गई है। इसमें तकनीकी का भी प्रयोग किया जा रहा है। इन सभी की निगरानी का दायित्व गंगा सेवा दूतों को सौंपा गया है। वे प्रातः एवं सायं इनकी जांच करेंगे। क्यूआर कोड से स्वच्छता की मॉनीटरिंग की जा रही है। यह ऐप बेस्ड फीडबैक देगा, जिसके माध्यम से शीघ्र से शीघ्र सफाई सुनिश्चित की जाएगी। इस बार मैनुअल शौचालय स्वच्छ करने की आवश्यकता नहीं होगी, अपितु जेट स्प्रे क्लीनिंग सिस्टम से कुछ क्षणों में पूरी तरह उन्हें स्वच्छ कर दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त सेसपूल ऑपरेशन प्लान भी तैयार किया गया है, जिसके माध्यम से मेला क्षेत्र में स्थापित शौचालयों के सेप्टिक टैंक को रिक्त किया जाएगा। सेप्टिक टैंक रिक्त करके यहां से वेस्ट को एसटीपी प्लांट या अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जाएगा।
 
यातायात सुविधा 
प्रदेश में आने वाले श्रद्धालुओं की प्रत्येक सुविधा का ध्यान रखा जा रहा है। इसलिए यातावात की भी समुचित व्यवस्था की जा रही है। प्रयागराज आने वाली बसों, रेलगाड़ियों एवं वायुयान की संख्या में वृद्धि की जा रही है। महाकुंभ के लिए रेलवे द्वारा लगभग 1200 रेलगाड़ियां तथा परिवहन विभाग द्वारा सात हजार बसों का संचालन किया जाएगा।
 
तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए योगी सरकार ने केंद्र की मोदी सरकार ने महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में प्रवेश करने पर सात टोल प्लाजा को टैक्स फ्री करने का अनुरोध किया था, जिसे स्वीकृत कर लिया गया है। महाकुंभ के दौरान 45 दिनों तक चित्रकूट मार्ग पर उमापुर टोल प्लाजा, रीवा राजमार्ग पर गन्ने टोल प्लाजा, मिर्जापुर मार्ग पर मुंगारी टोल प्लाजा, वाराणसी मार्ग पर हंडिया टोल प्लाजा, लखनऊ राजमार्ग पर अंधियारी टोल प्लाजा, अयोध्या राजमार्ग पर मऊआइमा टोल प्लाजा नि:शुल्क रहेगा। यहां से प्रवेश करने वाले यात्रियों से कोई भी टोल नहीं लिया जाएगा। यह सुविधा 13 जनवरी से 26 फरवरी तक रहेगी। यद्यपि यह सुविधा माल वाहक व्यवसायिक वाहनों को नहीं मिलेगी। इस समयावधि में सरिया, सीमेंट, बालू एवं इलेकट्रॉनिक्स सामान से भरे वाहनों से टोल लिया जाएगा। किंतु व्यवसायिक पंजीकृत जीप एवं कार आदि से भी टोल नहीं लिया जाएगा।
माना जा रहा है कि इस बार का कुंभ मेला स्वयं में विशेष होगा। 

Friday, January 3, 2025

अटलजी का 'सुशासन' स्वराज और सुराज का पाथेय

 बीजेपी मुखपत्र कमल ज्योति 'अटल विशेषांक' में प्रकाशित मेरा लेख






सुदृढ़ हो रही है उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था

डॉ. सौरभ मालवीय   मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था निरंतर सुदृढ़ हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ...