डॉ. सौरभ मालवीय
महाकुंभ एक वैश्विक आयोजन है, जिसमें विश्व भर से आए श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, अपितु यह विभिन्न संस्कृतियों का एक महासंगम है। इसमें विभिन्न संस्कृतियों, परम्पराओं एवं भाषाओं के लोग भाग लेते हैं। यह विभिन्नताओं में एकता का प्रतीक है। इसकी एक बड़ी विशेषता यह भी है कि इस अवसर पर श्रद्धालुओं को साधु-संतों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है। इसमें ऐसे साधु-संत भी सम्मिलित होते हैं, जो अपना अधिकांश समय तपस्या एवं साधना में व्यतीत करते हैं तथा उन्हें जनसाधारण से भेंट करने का समय नहीं मिलता। कुंभ मेले की महत्ता के दृष्टिगत वर्ष 2017 में यूनेस्को द्वारा इसे अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की गई, क्योंकि यह मेला ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व रखता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में यूनेस्को के अधीन अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा करने वाली अंतर-सरकारी समिति ने 4 से 9 दिसंबर तक दक्षिण कोरिया के जेजु में आयोजित अपने बारहवें सत्र में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में कुंभ मेला’ को उत्कीर्ण किया था। ‘कुंभ मेला’ के अभिलेख को विशेषज्ञ निकाय द्वारा अनुशंसित किया गया था। यह निकाय सदस्य राज्यों द्वारा प्रस्तुत नामांकन की विस्तार से जांच-पड़ताल करता है। समिति ने कहा था कि ‘कुंभ मेला’ पृथ्वी पर तीर्थ यात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है। इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में आयोजित यह उत्सव भारत में पूजा से संबंधित अनुष्ठानों के एक समन्वित समूह का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक सामाजिक अनुष्ठान एवं उल्लासमय समारोह है, जो समुदाय की अपने इतिहास एवं स्मृति की धारणा से संबंधित है। यह तत्व वर्तमान अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों से संबंधित है, क्योंकि इसमें समाज के सभी वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के समान उत्साह से भाग लेते हैं। एक धार्मिक उत्सव के रूप में कुंभ मेला यह दर्शाता है कि समकालीन विश्व के लिए सहिष्णुता एवं सम्मिलन विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
समिति ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि ‘कुंभ मेला’ से जुड़े ज्ञान एवं कौशल गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से संतों एवं साधुओं द्वारा अपने शिष्यों को पारंपरिक अनुष्ठानों एवं मंत्रों से संबंधित ज्ञान प्रेषित करते हैं। इससे इस उत्सव की निरंतरता और व्यवहार्यता सुनिश्चित रहेगी। वर्ष 2003 में यूनेस्को की महासभा ने एक अंतरराष्ट्रीय संधि के रूप में अमूर्त धरोहर की सुरक्षा की संधि को अपनाया एवं स्वीकार किया कि सांस्कृतिक धरोहर में मात्र मूर्त स्थान, स्मारक और वस्तुएं ही नहीं, अपितु परंपराएं एवं जीवंत अभिव्यक्तियां भी सम्मिलित हैं। अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर का अर्थ प्रथाओं, प्रतिनिधित्वों, अभिव्यक्तियों, ज्ञान एवं कौशल के साथ-साथ उनसे जुड़े उपकरणों, वस्तुओं, कलाकृतियों और सांस्कृतिक स्थानों से है, जिन्हें विभिन्न समुदाय, समूह एवं व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक धरोहर का एक भाग मानते हैं। यह अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर समुदायों एवं समूहों द्वारा अपने पर्यावरण, अपनी प्रकृति और अपने इतिहास से संपर्क की प्रतिक्रिया में लगातार निर्मित की जाती है, यह उन्हें पहचान और निरंतरता की भावना प्रदान करती है। इस प्रकार यह सांस्कृतिक विविधता एवं मानव रचनात्मकता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती है। इसका महत्व इसके अद्वितीय होने के कारण नहीं, अपितु इसलिए है कि समुदाय द्वारा इसका अनुसरण किया जाना प्रासंगिक है। इसके अतिरिक्त इसका महत्व सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में ही नहीं, अपितु ज्ञान, क्रिया विधि और कौशल की समृद्धि में है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपी जाती है।
वास्तव में महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का जीवंत प्रतीक है। यह अध्यात्म, खगोल विज्ञान, ज्योतिष, धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं का सामूहिक आयोजन है। यह देश की सांस्कृतिक धरोहर है। यह मेला देश की गौरवशाली संस्कृति का संवाहक है। यह देश की आध्यात्मिक शक्ति एवं आस्था को दर्शाता है कि किस प्रकार भारतीय अपनी आस्था का सामूहिक रूप से प्रदर्शन करते हैं। यह मेला भारतीय कला, संस्कृति, संगीत, गायन, नृत्य, हस्तशिल्प आदि कलाओं को प्रोत्साहित करता है। इस मेले में संपूर्ण भारतीय संस्कृति का समावेश है। इस आयोजन में प्राचीन भारत की गौरवमयी संस्कृति के साथ ही आधुनिक भारत भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इस पवित्र धार्मिक आयोजन में भाग होने से आत्मा के अजर एवं अमर होने की भारतीय मान्यता पर विश्वास अत्यधिक दृढ़ हो जाता है। नि:संदेह कुंभ मेला भारतीय दर्शन का प्रतीक है।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ कुंभ मेले का शुभारंभ हुआ तथा 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ यह समाप्त हो गया। इस आयोजन के अंतर्गत शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर, 3 फरवरी को बसंत पंचमी पर, 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा पर तथा 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर हुआ। इस मेले में लगभग 50 करोड़ लोगों से भाग लिया।
सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व
प्रयागराज हिंदुओं का अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां गंगा, यमुना एवं सरस्वती का अद्भुत संगम होता है जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले के अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के मध्य छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ का शाब्दिक अर्थ घड़ा एवं मेले का अर्थ एक स्थान पर एकत्रित होना है। कुंभ मेला अमृत उत्सव के नाम से भी प्रसिद्ध है।
खगोल गणनाओं के अनुसार कुंभ मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारंभ होता है। उस समय सूर्य एवं चंद्रमा, वृश्चिक राशि में तथा वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिवस को अति शुभ एवं मंगलकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार खुल जाते हैं। इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु अमृत से भरा हुआ कुंभ लेकर जा रहे थे तभी असुरों ने उन पर आक्रमण कर दिया। अमृत प्राप्ति के लिए देव एवं दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध होता रहा। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के समान होते हैं। इसलिए कुंभ भी बारह होते हैं। इनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं तथा शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं। देव एवं दानवों के इस संघर्ष के दौरान भूमि पर अमृत की चार बूंदें गिर गईं। ये बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में गिरीं। जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं वहां पर तीर्थ स्थल का निर्माण किया गया। तीर्थ उस स्थान को कहा जाता है जहां मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार जहां अमृत की बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर तीन-तीन वर्ष के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इन तीर्थों में प्रयाग को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना एवं सरस्वती का संगम होता है। इन नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
भारत में महाकुंभ धार्मिक स्तर पर अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण आयोजन है। इसमें लाखों-करोड़ों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। इस बार के महाकुंभ में लगभग 40 करोड़ तीर्थयात्रियों के सम्मिलित होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। लगभग डेढ़ मास तक संचालित होने वाले इस आयोजन में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए व्यवस्था की जाती है। उनके लिए टेंट लगाए जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि एक छोटी सी नगरी अलग से बसा दी गई है। यहां तीर्थयात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है। यह आयोजन प्रशासन, स्थानीय प्राधिकरणों एवं पुलिस की सहायता से आयोजित किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर से साधु-संत आते हैं। कुंभ योग की गणना कर स्नान का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। स्नान से पूर्व मुहूर्त में नागा साधु स्नान करते हैं। इन साधुओं के शरीर पर भभूत लिपटी रहती है। उनके बाल लंबे होते हैं तथा वे वस्त्रों के स्थान पर शरीर पर मृगचर्म धारण करते हैं। स्नान के लिए विभिन्न नागा साधुओं के अखाड़े भव्य रूप से शोभा यात्रा की भांति संगम तट पर पहुंचते हैं। ये साधु मेले का आकर्षण का केंद्र होते हैं।
उत्तर प्रदेश धर्म, संस्कृति एवं पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। महाकुंभ मेले के कारण यहां विश्वभर से तीर्थयात्रियों के साथ-साथ पर्यटक भी आएंगे। इसलिए प्रयागराज के ऐतिहासिक मंदिरों का जीर्णोद्धार एवं नवीनीकरण किया जा रहा है। पर्यटन विभाग, स्मार्ट सिटी एवं प्रयागराज विकास प्राधिकरण मिलकर यह कार्य कर रहे हैं। मेला प्रशासन श्रद्धालुओं और पर्यटकों की आस्था एवं सुविधा को प्राथमिकता दे रहा है, जिससे उन्हें स्मरणीय अनुभव प्राप्त हो सके तथा वे यहां से प्रसन्नतापूर्वक वापस जाएं। पर्यटन विभाग जिन कॉरिडोर एवं नवीनीकरण परियोजनाओं की देखरेख कर रहा है, उनमें से मुख्य रूप से भारद्वाज कॉरिडोर, मनकामेश्वर मंदिर कॉरिडोर, द्वादश माधव मंदिर, पड़िला महादेव मंदिर, अलोप शंकरी मंदिर आदि सम्मिलित हैं। स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत अक्षयवट कॉरिडोर, सरस्वती कूप कॉरिडोर एवं पातालपुरी कॉरिडोर सम्मिलित हैं। प्रयागराज विकास प्राधिकरण नागवासुकी मंदिर का नवीनीकरण कार्य एवं हनुमान मंदिर कॉरिडोर का कार्य करवा रहा है।
जनसेवा का माध्यम
कुंभ मेला जनसेवा का एक बड़ा माध्यम है। मेले में सम्मिलित होने वाले श्रद्धालु दान-पुण्य करते हैं। इससे निर्धन एवं वंचितों का कल्याण होता है। वेद, पुराणों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में दान के महत्व का उल्लेख मिलता है। अग्नि पुराण के अनुसार महाकुंभ में वस्त्र दान करने से एक सौ वर्ष तक भगवान की कृपा बनी रहती है तथा परिजनों पर आने वाली आपदाएं टल जाती हैं। मान्यता है कि कुंभ में वस्त्र दान करने से भगवान से विष्णु से धन, वैभव, समृद्धि एवं उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। विष्णु धर्म शास्त्र के अनुसार वस्त्र दान करने से आगामी जन्मों में निर्धनता एवं कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है।
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