Saturday, August 16, 2025

राष्ट्र को समर्पित रहा अटलजी का जीवन


डॉ. सौरभ मालवीय  
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रखर चिंतक, गंभीर पत्रकार, सहृदय कवि एवं लेखक थे। साहित्य उन्हें विरासत में प्राप्त हुआ था। उन्होंने पत्रकारिता से जीवन प्रारंभ किया तथा साहित्य एवं राजनीति में अपार ख्याति अर्जित की। उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित रहा। वह कहते थे- “मैं चाहता हूं भारत एक महान राष्ट्र बने, शक्तिशाली बने, संसार के राष्ट्रों में प्रथम पंक्ति में आए।”
 
प्रारंभिक जीवन 
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी अध्यापक थे और माता कृष्णा देवी गृहिणी थीं। वह बचपन से ही अंतर्मुखी एवं प्रतिभाशाली थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बड़नगर के गोरखी विद्यालय में हुई। यहां से उन्होंने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। जब वह पांचवीं कक्षा में थे तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था। बड़नगर में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण उन्हें ग्वालियर जाना पड़ा। वहां के विक्टोरिया कॉलेजियट स्कूल से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इस विद्यालय में रहते हुए उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया तथा प्रथम पुरस्कार भी जीता। उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की। कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था। आरंभ में वह छात्र संगठन से जुड़े। इसके पश्चात वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। ग्वालियर से स्नातक उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् वह कानपुर चले गए। यहां उन्होंने डीएवी महाविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। तदुपरांत वह पीएचडी करने के लिए लखनऊ गए, परंतु वह सफल नहीं हो सके, क्योंकि पत्रकारिता से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था। 

पत्रकार के रूप में अटलजी 
अटलजी लखनऊ आकर समाचार-पत्र राष्ट्रधर्म के सह सम्पादक के रूप में कार्य करने लगे। वह मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म के प्रथम संपादक भी रहे हैं। अटलजी कहते थे- “छात्र जीवन से ही मेरी इच्छा संपादक बनने की थी। लिखने-पढ़ने का शौक और छपा हुआ नाम देखने का मोह भी। इसलिए जब एमए की पढ़ाई पूरी की और कानून की पढ़ाई अधूरी छोड़ने के पश्चात् सरकारी नौकरी न करने का पक्का इरादा बना लिया और साथ ही अपना पूरा समय समाज की सेवा में लगाने का मन भी। उस समय पूज्य भाऊ राव देवरस जी के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया कि संघ द्वारा प्रकाशित होने वाले राष्ट्रधर्म के संपादन में कार्य करूंगा, श्री राजीवलोचन जी भी साथ होंगे। अगस्त 1947 में पहला अंक निकला और इसने उस समय के प्रमुख साहित्यकार सर सीताराम, डॉ. भगवान दास, अमृतलाल नागर, श्री नारायण चतुर्वेदी, आचार्य वृहस्पति व प्रोफेसर धर्मवीर को जोड़कर धूम मचा दी।“
कुछ समय के पश्चात 14 जनवरी 1948 को भारत प्रेस से मुद्रित होने वाला दूसरा समाचार पत्र पांचजन्य भी प्रकाशित होने लगा। अटलजी इसके प्रथम संपादक बनाए गए। 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हो गया था। कुछ समय के पश्चात 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई। इसके पश्चात् भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया। इसके साथ ही भारत प्रेस को बंद कर दिया गया, क्योंकि भारत प्रेस भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव क्षेत्र में थी। भारत प्रेस के बंद होने के पश्चात अटलजी इलाहाबाद चले गए। यहां उन्होंने क्राइसिस टाइम्स नामक अंग्रेजी साप्ताहिक के लिए कार्य करना आरंभ कर दिया। परंतु जैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटा, वह पुन: लखनऊ आ गए और उनके संपादन में स्वदेश नामक दैनिक समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगा, परंतु हानि के कारण स्वदेश को बंद कर दिया गया। वर्ष 1949 में काशी से सप्ताहिक ’चेतना’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसके संपादक का कार्यभार अटलजी को सौंपा गया। उन्होंने इसे सफलता के शिखर तक पहुंचा दिया। 

कवि एवं लेखक   
अटलजी ने बचपन से ही कविताएं लिखनी प्रारंभ कर दी थीं। स्वदेश-प्रेम, जीवन-दर्शन, प्रकृति तथा मधुर भाव की कविताएं उन्हें बाल्यावस्था से ही आकर्षित करती रहीं। उनकी कविताओं में प्रेम, करुणा एवं वेदना है। एक पत्रकार के रूप में वह बहुत गंभीर दिखाई देते थे। उनके लेखों में ज्वलंत प्रश्न हैं, समस्याओं का उल्लेख है तो उनका समाधान भी है। वह सामाजिक विषयों को उठाते एवं अतीत की भूलों से शिक्षा लेते हुए सुधार की बात करते थे। एक राजनेता के रूप में जब वह भाषण देते हैं, तो उसमें क्रांति के स्वर सुनाई देते थे। वह कहते थे- “मेरे भाषणों में मेरा लेखक ही बोलता है, पर ऐसा नहीं कि राजनेता मौन रहता है। मेरे लेखक और राजनेता का परस्पर समन्वय ही मेरे भाषणों में उतरता है। यह जरूर है कि राजनेता ने लेखक से बहुत कुछ पाया है। साहित्यकार को अपने प्रति सच्चा होना चाहिए। उसे समाज के लिए अपने दायित्व का सही अर्थों में निर्वाह करना चाहिए। उसके तर्क प्रामाणिक हो। उसकी दृष्टि रचनात्मक होनी चाहिए। वह समसामयिकता को साथ लेकर चले, पर आने वाले कल की चिंता जरूर करे। वे भारत को विश्वशक्ति के रूप में देखना चाहते हैं।“ 

अटलजी ने कई पुस्तकें लिखी थीं, जिनमें अमर बलिदान, अमर आग है, बिंदु-बिंदु विचार, सेक्युलरवाद, 
कैदी कविराय की कुंडलियां, मृत्यु या हत्या, जनसंघ और मुसलमान, मेरी इक्यावन कविताएं, न दैन्यं न पलायनम, मेरी संसदीय यात्रा (चार खंड), संकल्प-काल एवं गठबंधन की राजनीति सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त उनकी कई और पुस्तकें भी हैं। फोर डिकेड्स इन पार्लियामेंट, जो 1957 से 1995 तक के उनके भाषणों का संग्रह है। इसी तरह न्यू डाइमेंशन ऒफ इंडियाज फ़ॊरेन पॊलिसी, जिसमें विदेश मंत्री रहते हुए उनके 1977 से 1979 तक के भाषण संकलित हैं। संसद में तीन दशक (तीन खंड), जो 1957 से 1992 तक संसद में दिए गए भाषणों का संग्रह है। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (तीन खंड), जिसमें 1996 से 2004 उनके भाषण सम्मिलित हैं। राजनीति की रपटीली राहें, जो उनके साक्षात्कार और भाषणों का संग्रह है। शक्ति से शांति तक, जिसमें उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के भाषण संकलित हैं। कुछ लिख कुछ भाषण, जो पत्रकारिता के समय के लेख और भाषण सम्मिलित हैं। राजनीति के उस पार, जिसमें उनके भाषण संकलित हैं। इसके अलावा उनके लेख, उनकी कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं, जिनमें राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, धर्मयुग, नई कमल ज्योति, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादिम्बनी और नवनीत आदि सम्मिलित हैं। 

प्रधानमंत्री के रूप में विशेष कार्य  
अटलजी 16 मई 1996 को देश के प्रधानमंत्री बने तथा 28 मई को उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। इस कारण वह मात्र 13 दिनों तक ही प्रधानमंत्री रहे। इसके पश्चात 9 मार्च 1998 को वह द्वितीय बार प्रधानमंत्री बने। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ। वह 13 अक्टूबर 1999 को तृतीय बार प्रधानमंत्री बने तथा 22 मई 2004 तक अपना कार्यकाल पूर्ण किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में अनेक उत्कृष्ट कार्य किए। उन्होंने वर्ष 1998 में पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण के पश्चात् संसद को संबोधत किया। उन्होंने कहा- “यह कोई आत्मश्लाघा के लिए नहीं था। ये हमारी नीति है और मैं समझता हूं कि देश की नीति है यह कि न्यूनतम अवरोध होना चाहिए। वह विश्वसनीय भी होना चाहिए। इसीलिए परीक्षण का निर्णय लिया गया।“

उन्होंने वर्ष 1999 में भारतीय संचार निगम लिमिटेड अर्थात बीएसएनएल का एकाधिकार समाप्त करने के लिए नई टेलिकॉम नीति लागू की। इसके कारण लोगों को सस्ती दरों पर दूरभाष सेवा उपलब्ध हो सकी। उन्होंने भारत एवं पाकिस्तान के आपसी संबंधों को सुधारने के प्रयास को गति प्रदान की। उन्होंने फरवरी 1999 में दिल्ली-लाहौर बस सेवा प्रारंभ की। प्रथम बस सेवा से वह स्वयं लाहौर गए। उन्होंने सर्व शिक्षा अभियान को बढ़ावा दिया। उन्होंने 6 से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने का अभियान प्रारंभ किया। उन्होंने अपनी लिखी पंक्तियों ‘स्कूल चले हम’ से इसे प्रचारित किया। इससे निर्धनता के कारण पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों को अत्यंत लाभ हुआ। वह कहते थे- “शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है, व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्र प्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं।“

उन्होंने संविधान में संशोधन की आवश्यकता पर विचार करने के लिए एक फरवरी 2000 को संविधान समीक्षा का राष्ट्रीय आयोग गठित किया। उन्होंने वर्ष 2001 में होने वाली जातिगत जनगणना पर रोक लगाई। 
उन्होंने 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले को गंभीरता से लिया तथा आतंकवाद निरोधी पोटा कानून बनाया। यह पूर्व के टाडा कानून की तुलना में अत्यधिक कठोर था। उन्होंने 32 संगठनों पर पोटा के अंतर्गत प्रतिबंध लगाया। उन्होंने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई एवं कोलकाता को जोड़ने के लिए चतुर्भुज सड़क परियोजना लागू की। इसके साथ ही उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना लागू की। इससे आर्थिक विकास को गति मिली। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर नदियों को जोड़ने की योजना का ढांचा भी बनवाया, परंतु इस पर कार्य नहीं हो पाया।

सम्मान 
अटलजी ने एक पत्रकार, साहित्यकार, कवि एवं देश के प्रधानमंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष एवं विपक्ष के नेता के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। राष्ट्र के प्रति उनकी समर्पित सेवाओं के लिए 25 जनवरी 1992 में राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 28 सितंबर 1992 को उन्हें ’हिंदी गौरव’ से सम्मानित किया। अगले वर्ष 20 अप्रैल 1993 को कानपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि प्रदान की। उनके सेवाभावी और स्वार्थ त्यागी जीवन के लिए उन्हें 1 अगस्त 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके पश्चात 17 अगस्त 1994 को संसद ने उन्हें श्रेष्ठ सासंद चुना गया तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके पश्चात् 27 मार्च 2015 भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इतने महत्वपूर्ण सम्मान पाने वाली अटलजी कहते थे- “मैं अपनी सीमाओं से परिचित हूं। मुझे अपनी कमियों का अहसास है। निर्णायकों ने अवश्य ही मेरी न्यूनताओं को नजर अंदाज करके मुझे निर्वाचित किया है। सद्भाव में अभाव दिखाई नहीं देता है। यह देश बड़ा है अद्भुत है, बड़ा अनूठा है। किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा सकता है।“ 

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