डॊ. सौरभ मालवीय
हमारे देश में वायु प्रदूषण निरंतर बढ़ रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण घातक स्तर तक पहुंच गया है। हाल में शहर का समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक 401 दर्ज किया गया। इसी प्रकार वायु में घुले हुए अतिसूक्ष्म प्रदूषक कण पीएम 2.5 को 215 दर्ज किया गया, जो कि स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2016 में प्रदूषण के कारण पांच वर्ष से कम आयु के एक लाख से अधिक बच्चों की मृत्यु हुई। इनमें भारत के 60,987, नाइजीरिया के 47,674, पाकिस्तान के 21,136 और कांगों के 12,890 बच्चे सम्मिलित हैं। रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण 2016 में पांच से 14 साल के 4,360 बच्चों की मत्यु हुई। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पांच साल से कम उम्र के 98 प्रतिशत बच्चों पर वायु प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ा, जबकि उच्च आय वाले देशों में 52 प्रतिशत बच्चे प्रभावित हुए। वायु प्रदूषण के कारण विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) के अनुसार भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण वर्षा को प्रभावित कर सकता है। इसके कारण लंबे समय तक मानसून कम हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वायु में मौजूद पीएम 2.5 कणों के कारण कुछ स्थानों बहुत अधिक वर्षा हो सकती है, तो कुछ स्थानों पर बहुत कम होने की संभावना है।
दि एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार शीतकाल में 36 प्रतिशत प्रदूषण दिल्ली में ही उत्पन्न होता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से 34 प्रतिशत प्रदूषण यहां आता है। शेष 30 प्रतिशत प्रदूषण एनसीआर और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से यहां आता है। रिपोर्ट में प्रदूषण के कारणों पर विस्तृत जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषण के लिए वाहनों का योगदान लगभग 28 प्रतिशत है। इसमें भी भारी वाहन सबसे अधिक 9 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इसके पश्चात दो पहिया वाहनों का नंबर आता है, जो 7 प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं। तीन पहिया वाहनों से 5 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। चार पहिया वाहन और बसें 3-3 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न करती हैं। अन्य वाहन एक प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं।
धूल से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण का योगदान 18 प्रतिशत है। इसमें सड़क पर धूल से प्रदूषण 3 प्रतिशत प्रदूषण होता है। निर्माण कार्यों से एक प्रतिशत व अन्य कारणों से 13 प्रतिशत प्रदूषण है। औद्योगों के कारण भी वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है। शहर के प्रदूषण में 30 प्रतिशत योगदान इनका भी है। इसमें पावर प्लांट 6 प्रतिशत तथा ईंट भट्ठे 8 प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं। इसी प्रकार स्टोन क्रशर के कारण 2 प्रतिशत तथा अन्य उद्योगों से 14 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न होता है। आवासीय क्षेत्रों के कारण 10 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है।
शीतकाल में पीएम 10 के स्तर पर पहुंचने के कई कारण हैं। इस मौसम में उद्योगों से 27 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न होता है, जबकि वाहनों से 24 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। इसी प्रकार धूल से 25 प्रतिशत तथा आवासीय क्षेत्रों से 9 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। उल्लेखनीय है कि पराली जलाने के कारण और बायोमास से केवल 4 प्रदूषण उत्पन्न होता है, जबकि दिल्ली के प्रदूषण के लिए समीपवर्ती राज्यों पंजाब और हरियाणा को दोषी ठहराया जाता है। कहा जाता है कि पंजाब और हरियाणा के किसान अपने खेतों में पराली जलाते हैं, जिसका धुआं दिल्ली में प्रदूषण का कारण बनता है।
प्रदूषण को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाते हुए, केवल ग्रीन पटाखों की बिक्री को ही स्वाकृति दी है। इतना ही नहीं, पटाखे फोड़ने के लिए भी कोर्ट ने समयसारिणी जारी कर चुका है। इसके अनुसार दीपावली पर लोग रात 8 बजे से 10 बजे तक ही पटाखे जला पाएंगे। इसके अतिरिक्त ऑनलाइन पटाखों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्य में सुबह साढ़े चार बजे से सुबह साढ़े छह बजे तक भी पटाखे फोड़ने की अनुमति मांगी थी। याचिका में कहा गया था कि दीपावली के उत्सव को लेकर हर राज्य की अपनी अलग-अलग परंपराएं और संस्कृति हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का प्रतिबंध लोगों के धार्मिक अधिकारों को खारिज करता है, परंतु कोर्ट ने प्रतिबंध को हटाने से इनकार करते हुए कहा कि ग्रीन पटाखे बनाने का उनका आदेश पूरे देश के लिए है। अर्थात अब देश मे कहीं भी सामान्य पटाखे नहीं बनेंगे। केवल कम प्रदूषण वाले ग्रीन पटाखे ही बनेंगे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि प्रदूषण करने वाले जो पटाखे पहले बन चुके है, उन्हें भी दिल्ली-एनसीआर मे बेचे जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। अपितु दिल्ली एनसीआर के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर सामान्य पटाखे चलाए जा सकते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) भी प्रदूषण को लेकर कठोर कदम उठा रहा है। बोर्ड ने पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के राज्य प्रदूषण नियंत्रण निकायों को वायु प्रदूषण की जांच के लिए निर्देशों का पालन नहीं करने वाले लोगों या एजेंसियों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने एक नवंबर से निर्माण कार्य जैसी कई गतिविधियों को प्रतिबंध दिया है। इसके अतिरिक्त लोगों से अगले 10 दिनों के लिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए आग्रह किया गया है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में कुल 35 लाख निजी वाहन हैं। वर्ष 2016 में भी ऑड-ईवन योजना को दो बार 1 से 15 जनवरी और 15 से 30 अप्रैल के बीच लागू किया गया था। जीआरपी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक कारगर योजना है। इसे 15 अक्टूबर से लागू किया गया था। दिल्ली मेट्रो ने भी बुधवार से अपने नेटवर्क पर 21 अतिरिक्त ट्रेनें आरंभ की हैं।
चिकित्सकों के अनुसार वायु में मिले अति सूक्ष्म कण सांस के माध्यम से शरीर के भीतर चले जाते हैं, जिसके कारण अनेक शारीरिक और मानसिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ये कण गर्भ में पल रहे शिशु को भी अपनी चपेट में ले लेते हैं, जिससे जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ वातावरण नितांत आवश्यक है। इसके लिए प्रदूषण पर अंकुश लगाना होगा। इस अभियान में लोगों को भी आगे आना चाहिए।
हमारे देश में वायु प्रदूषण निरंतर बढ़ रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण घातक स्तर तक पहुंच गया है। हाल में शहर का समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक 401 दर्ज किया गया। इसी प्रकार वायु में घुले हुए अतिसूक्ष्म प्रदूषक कण पीएम 2.5 को 215 दर्ज किया गया, जो कि स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2016 में प्रदूषण के कारण पांच वर्ष से कम आयु के एक लाख से अधिक बच्चों की मृत्यु हुई। इनमें भारत के 60,987, नाइजीरिया के 47,674, पाकिस्तान के 21,136 और कांगों के 12,890 बच्चे सम्मिलित हैं। रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण 2016 में पांच से 14 साल के 4,360 बच्चों की मत्यु हुई। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पांच साल से कम उम्र के 98 प्रतिशत बच्चों पर वायु प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ा, जबकि उच्च आय वाले देशों में 52 प्रतिशत बच्चे प्रभावित हुए। वायु प्रदूषण के कारण विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) के अनुसार भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण वर्षा को प्रभावित कर सकता है। इसके कारण लंबे समय तक मानसून कम हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वायु में मौजूद पीएम 2.5 कणों के कारण कुछ स्थानों बहुत अधिक वर्षा हो सकती है, तो कुछ स्थानों पर बहुत कम होने की संभावना है।
दि एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार शीतकाल में 36 प्रतिशत प्रदूषण दिल्ली में ही उत्पन्न होता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से 34 प्रतिशत प्रदूषण यहां आता है। शेष 30 प्रतिशत प्रदूषण एनसीआर और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से यहां आता है। रिपोर्ट में प्रदूषण के कारणों पर विस्तृत जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषण के लिए वाहनों का योगदान लगभग 28 प्रतिशत है। इसमें भी भारी वाहन सबसे अधिक 9 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इसके पश्चात दो पहिया वाहनों का नंबर आता है, जो 7 प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं। तीन पहिया वाहनों से 5 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। चार पहिया वाहन और बसें 3-3 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न करती हैं। अन्य वाहन एक प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं।
धूल से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण का योगदान 18 प्रतिशत है। इसमें सड़क पर धूल से प्रदूषण 3 प्रतिशत प्रदूषण होता है। निर्माण कार्यों से एक प्रतिशत व अन्य कारणों से 13 प्रतिशत प्रदूषण है। औद्योगों के कारण भी वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है। शहर के प्रदूषण में 30 प्रतिशत योगदान इनका भी है। इसमें पावर प्लांट 6 प्रतिशत तथा ईंट भट्ठे 8 प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं। इसी प्रकार स्टोन क्रशर के कारण 2 प्रतिशत तथा अन्य उद्योगों से 14 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न होता है। आवासीय क्षेत्रों के कारण 10 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है।
शीतकाल में पीएम 10 के स्तर पर पहुंचने के कई कारण हैं। इस मौसम में उद्योगों से 27 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न होता है, जबकि वाहनों से 24 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। इसी प्रकार धूल से 25 प्रतिशत तथा आवासीय क्षेत्रों से 9 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। उल्लेखनीय है कि पराली जलाने के कारण और बायोमास से केवल 4 प्रदूषण उत्पन्न होता है, जबकि दिल्ली के प्रदूषण के लिए समीपवर्ती राज्यों पंजाब और हरियाणा को दोषी ठहराया जाता है। कहा जाता है कि पंजाब और हरियाणा के किसान अपने खेतों में पराली जलाते हैं, जिसका धुआं दिल्ली में प्रदूषण का कारण बनता है।
प्रदूषण को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाते हुए, केवल ग्रीन पटाखों की बिक्री को ही स्वाकृति दी है। इतना ही नहीं, पटाखे फोड़ने के लिए भी कोर्ट ने समयसारिणी जारी कर चुका है। इसके अनुसार दीपावली पर लोग रात 8 बजे से 10 बजे तक ही पटाखे जला पाएंगे। इसके अतिरिक्त ऑनलाइन पटाखों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्य में सुबह साढ़े चार बजे से सुबह साढ़े छह बजे तक भी पटाखे फोड़ने की अनुमति मांगी थी। याचिका में कहा गया था कि दीपावली के उत्सव को लेकर हर राज्य की अपनी अलग-अलग परंपराएं और संस्कृति हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का प्रतिबंध लोगों के धार्मिक अधिकारों को खारिज करता है, परंतु कोर्ट ने प्रतिबंध को हटाने से इनकार करते हुए कहा कि ग्रीन पटाखे बनाने का उनका आदेश पूरे देश के लिए है। अर्थात अब देश मे कहीं भी सामान्य पटाखे नहीं बनेंगे। केवल कम प्रदूषण वाले ग्रीन पटाखे ही बनेंगे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि प्रदूषण करने वाले जो पटाखे पहले बन चुके है, उन्हें भी दिल्ली-एनसीआर मे बेचे जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। अपितु दिल्ली एनसीआर के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर सामान्य पटाखे चलाए जा सकते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) भी प्रदूषण को लेकर कठोर कदम उठा रहा है। बोर्ड ने पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के राज्य प्रदूषण नियंत्रण निकायों को वायु प्रदूषण की जांच के लिए निर्देशों का पालन नहीं करने वाले लोगों या एजेंसियों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने एक नवंबर से निर्माण कार्य जैसी कई गतिविधियों को प्रतिबंध दिया है। इसके अतिरिक्त लोगों से अगले 10 दिनों के लिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए आग्रह किया गया है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में कुल 35 लाख निजी वाहन हैं। वर्ष 2016 में भी ऑड-ईवन योजना को दो बार 1 से 15 जनवरी और 15 से 30 अप्रैल के बीच लागू किया गया था। जीआरपी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक कारगर योजना है। इसे 15 अक्टूबर से लागू किया गया था। दिल्ली मेट्रो ने भी बुधवार से अपने नेटवर्क पर 21 अतिरिक्त ट्रेनें आरंभ की हैं।
चिकित्सकों के अनुसार वायु में मिले अति सूक्ष्म कण सांस के माध्यम से शरीर के भीतर चले जाते हैं, जिसके कारण अनेक शारीरिक और मानसिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ये कण गर्भ में पल रहे शिशु को भी अपनी चपेट में ले लेते हैं, जिससे जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ वातावरण नितांत आवश्यक है। इसके लिए प्रदूषण पर अंकुश लगाना होगा। इस अभियान में लोगों को भी आगे आना चाहिए।
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