Tuesday, February 28, 2017
Dr. Sourabh Malviya
Born in Patnejee village of Deorai district of Uttar Pradesh, Dr. Sourabh Malviya has been associated with movements in the field of the social change and the national constructions from child hood. He has great impact of the teachings and philosophy of Jatatguru Shankaracharya and Dr. Baliram Keshav Hedgewar. He has his own explicit ground of thoughts. Dr. Malviya has done his Ph D on the “Cultural Nationalism and Media” which is in itself an experimental approach. He continues his expressive writing on national and regional magazines and newspapers beside regular participation in the television and radio discussion. Keeping in view his aptness in the nationalism and other media concerns, he has been honoured with several awards and the prizes including prestigious MotiBA Naya Media Samman, Vishnu Prabhakar Patrikarita Samman and Pravakta Dot Com Samman. Dr. Sourabh Malviya is currently Assistant Professor in Makhanlal Chaturvedi National University of Journalism and Communication, Bhopal, Madhya Pradesh and posted at its Noida Campus.
He can be contact on:
Mobile : 8750820740
Email : malviya.sourabh@gmail.com
drsourabhmalviya@gmail.com
Website : sourabhmalviya.com
C-56/4, Sector 62, NOIDA- 201301
Uttar Pradesh
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Thursday, February 23, 2017
Wednesday, February 22, 2017
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भूमि पर खड़ा होता भारत
डॊ. सौरभ मालवीय
यह एक सुखद संयोग है की भारतीय दृष्टि से अब भारत को समझने की कोशिश की जारही है निश्चित ही इस विमर्श से भारत अपने गौरव पूर्ण अतीत को सजोकर नए पथ का सृजन करेगा।
भारत की आत्मा को समझना है तो उसे राजनीति अथवा अर्थ-नीति के चश्मे से न देखकर सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही देखना होगा भारतीयता की अभिव्यक्ति राजनीति के द्वारा न होकर उसकी संस्कृति के द्वारा ही होगी तभी हम पुनः भारत को विश्व में प्रतिष्ठापित कर पायेंगे। इसी भावना और विचार में भारत की एकता तथा अखण्डता बनी रह सकती है। तभी भारत परम वैभव को प्राप्त कर सकता है।
‘‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’’ पहेली है, यक्ष-प्रश्न है। सिर्फ भारत ही नहीं है, जो नहीं मिटा है। नहीं मिटने वाले ंअर्थात कायम रहने वाले और देश भी हैं चीन है, यूनान है, रोम है, बेबीलोन है, ईरान है। ये देश कायम तो हैं लेकिन क्या भारत की तरह कायम हैं? क्या ये हिंदोस्तां की तरह कायम हैं? शायद नहीं है। इसीलिए इकबाल ने कहा है कि अगर वे कायम हैं तो भी सिर्फ नाम के लिए कायम हैं। उनकी हस्ती तो मिट चुकी है। उनकी मूल पहचान नष्ट हो चुकी है। इन पुरानी सभ्यताओं को समय ने इतने थपेड़े मारे हैं कि उनका सातत्य भंग हो चुका है। जिसे कहते है, परंपरा, वह धागा टूट चुका है। परिवर्तन ने परंपरा को परास्त कर दिया है। कुछ देशों ने अपना धर्म बदल लिया कुछ ने अपनी भाषा बदल ली, कुछ ने अपना नाम बदल लिया और कुछ ने अपनी जीवन-पद्धति ही बदल ली। परिवर्तन की आंधी ने परंपरा के परखचे उड़ा दिए। यह ठीक हुआ या गलत, यह एक अलग प्रश्न है घ् लेकिन भारत में ऐसी क्या खूबी है कि परंपरा और परिवर्तन यहां कंधे से कंधे मिलाकर आगे बढ़े जा रहे हैं नित्य. नूतन सृजन की गर्भ-स्थली बन गई है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ को चरितार्थ करने वाली भारतीय संस्कृति है और विश्व के तमाम देश अनेक संस्कृतियां और जातियां उसके पुत्र-पुत्री, पोता-पोती की तरह है। घर सबका यही था, भाषा सबकी भिन्न जरूर थी, संस्कृति यहीं की थी जो कालांतर में बदलते-बदलते और बढ़ते-बढ़ते अनेक रूप और प्रकारों मंे उसी तरह हो गई जैसे आस्ट्रेलियाई मूंगों की तरह दूर-दूर फैली हुई चट्टानें।
विश्व के अनेक विद्याविदों, दार्शनिकांे, वैज्ञानिकों और प्रतिभावानों ने भारत के समर्थ को सिद्ध किया है। किसी ने इसे ज्ञान की भूमि कहा है तो किसी ने मोक्ष की, किसी ने इसे सभ्यताओं का मूल कहा है तो किसी ने इसे भाषाओं की जननी, किसी ने यहां आत्मिक पीपासा बुझाई है तो कोई यहां के वैभव से चमत्कृत हुआ है, कोई इसे मानवता का पालना मानता है तो किसी ने इसे संस्कृतियों का संगीत कहा है। तप, ज्ञान, योग, ध्यान, सत्संग, यज्ञ, भजन, कीर्तन, कुम्भ तीर्थ, देवालय और विश्व मंगल के शुभ मानवीय कर्म एवं भावों से निर्मित भारतीय समाज अपने में समेटे खड़ा है इसी से पूरा भू-मण्डल भारत की ओर आकर्षित होता रहा है और होता रहेगा। भारतीय संस्कृति की यही विकिरण ऊर्जा ही हमारी चिरंतन परम्परा की थाती है।
विश्व सभ्यता और विचार-चिन्तन का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन इस समूची पृथ्वी पर पहली बार भारत में ही मनुष्य की संवेदनाओं चिंतन प्रारंभ किया भारतीय चिंतन का आधार हमारी युगों पुरानी संस्कृति है। भारत एक देश है और सभी भारतीय जन एक है, परन्तु हमारा यह विश्वास है कि भारत के एकत्व का आधार उसकी युगों पुरानी अपनी संस्कृति में निहित है- इस बात को न्यायालयों ने उनके निर्णयों में स्वीकार किया है। सांस्कृतिक चिंतन एक आध्यात्मिक अवधारणा है और यही है भारतीय का वैशिष्ट्य। राष्ट्र का आधार हमारी संस्कृति और विरासत है। हमारे लिए ऐसे राष्ट्रवाद का कोई अर्थ नहीं जो हमे वेदांे, पुराणों, रामायण, महाभारत, गौतमबुद्ध, भगवान महावीर स्वामी, शंकराचार्य, गुरूनानक, महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज, स्वामी दयानन्द, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय और असंख्य अन्य राष्ट्रीय अधिनायकों से अलग करता हो। यह राष्ट्रवाद ही हमारा धर्म है।
Saturday, February 18, 2017
सार्थक शनिवार, नोएडा
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्विद्यालय नोएडा में टीवी पत्रकारिता में चर्चित नाम श्री रवि पाराशर, वरिष्ठ पत्रकार सर्जना जी (मीडिया सलाहकार खेल एवं युवा कार्यक्रम मंत्रालय-भारत सरकार) एवं सुश्री भारती नागपाल ने “टेलीविजन पत्रकारिता लेखन कौशल” विषय पर अपना विचार रखा, सभी का आभार मिलते है किसी अन्य विषय पर अगले सार्थक शनिवार में |
Saturday, February 11, 2017
रिश्तों का जादूगर
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डॉ. सौरभ मालवीय ‘नारी’ इस शब्द में इतनी ऊर्जा है कि इसका उच्चारण ही मन-मस्तक को झंकृत कर देता है, इसके पर्यायी शब्द स्त्री, भामिनी, कान...
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डॉ. सौरभ मालवीय मनुष्य जिस तीव्र गति से उन्नति कर रहा है, उसी गति से उसके संबंध पीछे छूटते जा रहे हैं. भौतिक सुख-सुविधाओं की बढ़ती इच्छाओं क...
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