मैं कभी मेधावी छात्र नहीं रहा जबकि बारहवी तक विज्ञान संकाय का विद्यार्थी था फिर स्नातक हिन्दी साहित्य में, स्नातकोत्तर प्रसारण पत्रकारिता में और PhD भी मीडिया में ही पूर्ण की. उन दिनों उदंडता, कुतर्क और विवाद यह मेरे स्वभाव का अंग था. प्रायः किसी न किसी से बहसबाजी हो ही जाती और उसका अंत विवाद के साथ होता. इस कारण मेरी छवि ठीक नहीं बन रही थी. इसी बीच मुझे संघ कार्यालय पर रहने का अवसर मिला. यहां यह बताना चाहूँगा कि संघ कार्यालय अर्थात संघ के पूर्णकालिक प्रचारक का निवास (प्रचारक वह होता है, जो अपना पूरा जीवन संघ कार्य के लिए देता है) कार्यालय की दिनचर्या सुनिश्चित है. प्रातः जागरण मंत्र से प्रारम्भ होकर जलपान, भोजन, संध्या और रात्रि भोजन, विश्राम तक सब कुछ समयबद्ध रहता. अनुशासन और आध्यात्मिक वातावरण के कारण लगता की कार्यालय एक मन्दिर है.
कार्यालय पर रहते हुए मेरे श्रद्धा के केन्द्र में अनेक ऋषितुल्य प्रचारक हैं, जिनका जिक्र अभी और करूँगा. इसी क्रम में उस समय देवरिया के जिला प्रचारक श्री बालमुकुन्द जी से परिचय हुआ. बालमुकुंद जी इतिहास में स्नातकोत्तर, बीएड और PhD हैं. स्वभावतया मिलनसार, मृदुभाषी, सरल-सहज हैं, जो प्रचारक वृत्ति होती ही है. मैं अपने गाँव देवरिया जाता रहता था. इस कारण इनसे आत्मीयता बढ़ती गई. पहली यात्रा वैष्णव देवी 1999 में बालमुकुंद जी के साथ हुई. समय की गति बढ़ती रही और अपने जीवन की यात्रा होती रही. इनके साथ कुशीनगर, मऊ, आजमगढ़ आदि जिलों मे मोटरसाइकिल से खूब घूमा.
एक घटना का जिक्र करना चाहूँगा. बालमुकुंद जी बस्ती में विभाग प्रचारक थे. नगर के एक कार्यकर्ता के पुत्र का विवाह सम्पन्न हुआ. पुत्र भी स्वयंसेवक है. दोनों लोग कार्यालय आए और इस खुशी के अवसर पर भाई साहब को एक घड़ी दी. अगले दिन जब मैं वापस आने लगा, तो बालमुकुंद जी ने वह घड़ी मुझे दी. मैं हतप्रभ था. भाई साहब बोले "आप विश्विद्यालय में पढ़ते हैं, समय को समझें." इसी मंत्र ने मुझे स्वयं को और समय को समझने की शक्ति विकसित की. और आज भी मैं समझने का सार्थक प्रयास कर रहा हूँ.
ऐसे सदगुरु का आज आशीर्वाद भोपाल में प्राप्त है. माननीय डॉ.बालमुकुन्द जी वर्तमान में इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन मंत्री हैं, केंद्र दिल्ली है.
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