Friday, May 29, 2015

राष्ट्रवादी पत्रकारिता का स्वर "पाञ्चजन्य" के संपादक श्री हितेश शंकर


राष्ट्रवादी पत्रकारिता  पाञ्चजन्य पत्रिका का एक संछिप्त परिचय श्री रविशंकर की पुस्तक राष्ट्रवादी पत्रकारिता से प्रस्तुत है।     
पांचजन्य 
राष्ट्रधर्म मासिक पत्रिका के प्रकाशन के नियमित होने के साथ ही एक साप्ताहिक पत्र की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी। वि.सं. 2004 यानी 14 जनवरी, 1948 को श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री राजीवलोचन अग्निहोत्री के संपादन में राष्ट्रधर्म प्रकाशन से पांचजन्य का प्रकाशन शुरू हुआ। पहला अंक 16 पृष्ठों का था। उसमें मुसलमान हिन्दू कान्फ्रेंस की रपट छापी गई थी। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वयं इसकी रिपोर्टिंग की थी। पांचजन्य के दो अंक ही नियमित छप पाये। तीसरा अंक छपने ही वाला था कि 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हो गई। अतः पांचजन्य का नियमित अंक रद्द करके केवल एक पृष्ठ का एक विशेष अंक छापा गया, जिसमें गांधीजी का एक चित्र था। उसके उसपर शीर्षक था ‘विश्ववंद्य गांधी जी की हत्या’। इसके दो-तीन दिन बाद ही प्रकाशन पर सरकारी ताला लग गया। संपादक, प्रकाशक और मुद्रक सभी जेल में डाल दिए गए। साढ़े चार महीने बाद न्यायालय के आदेश के बाद पांचजन्य का पुनः प्रकाशन संभव हो पाया। परन्तु छह महीने बाद दिसम्बर, 1948 में फिर सरकारी प्रतिबंध लग गया। सात माह बाद जुलाई, 1949 में पांचजन्य पर से प्रतिबंध हटा और प्रकाशन शुरू हुआ। पांचजन्य का निर्भीक स्वर सरकारों के लिए हमेशा सरदर्द बना रहा। पांचजन्य पर तीसरा प्रतिबंध आपातकाल में लगा। सच्चाई तो यह है कि अपने निर्भीक स्वर के कारण पांचजन्य मेशा सरकार की आंखों की किरकिरी बना रहा। इसलिए उस पर सरकार और लोगों द्वारा दायर मुकदमों की सूची बहुत लंबी है। पांचजन्य के संपादकों और प्रकाशकों का एक पैर हमेशा न्यायालय में ही रहा है। पांचजन्य की यात्रा साधनों के अभाव और सरकारी दमन के विरुद्ध राष्ट्रीय  चेतना के संघर्ष की लंबी कहानी है। पांचजन्य की हमेशा यह कोशिश रही कि स्वाधीन भारत की विकास-यात्रा स्वाधीनता आंदोलन की मूल प्रेरणा से जुड़ी रहे। इसके लिए पांचजन्य ने राष्ट्रजीवन के लगभग सभी क्षेत्र और पहलूओं पर समय-समय पर विभिन्न स्तंभ चलाए। अन्तरराष्ट्रीय घटना चक्र, राष्ट्रीय घटना क्रम, अर्थ जगत, शिक्षा जगत, नारी जगत, युवा जगत, राष्ट्र चिन्तन, सामयिकी, इतिहास के झरोके से, फिल्म समीक्षा, साहित्य समीक्षा, संस्कृति सत्य, अच्छे कार्य, स्त्री, ऐसी भाषा कैसी भाषा आदि स्तंभ इसके उदाहरण हैं। पांचजन्य के विकास में डाॅसम्पूर्णानंद, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, डाॅ. राम मनोहर लोहिया, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, अमृतलाल नागर, महादेवी वर्मा, किशोरी दास वाजपेयी, कृष्णचंद प्रकाश मेढ़े जैसे मूर्धन्य विचारकों, राजनेताओं और साहित्यकारों का योगदान रहा है। ‘पांचजन्य’ ने जहां अपने सामान्य अंक के सीमित कलेवर में अनेक स्तंभों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक दृष्टि के आलोक में पाठकों को देश-विदेश के घटनाचक्र से अवगत कराने की कोशिश की, तो विचार प्रधान लेखों के द्वारा मूलगामी राष्ट्रीय प्रश्नों पर भी उन्हें सोचने की सामग्री प्रदान की। असम और पूर्वोत्तर भारत आज जिस संकट से गुजर रहा है, कश्मीर समस्या आज क्यों हमारे जी का जंजाल बनी हुई है? इसके बारे में ‘पांचजन्य’ की चेतावनियों को सुना गया होता तो पृथकतावाद, सामाजिक विघटन एवं राजनैतिक दलों के जिस संकट से हम गुजर रहे हैं, वह हमारे सामने न आता। स्वाधीन भारत की यात्रा के प्रत्येक महत्वपूर्ण मोड़ पर ‘पांचजन्य’ राष्ट्रीयता के प्रहरी की  भूमिका निभाता रहा है। ‘पांचजन्य’ ने वर्ष में पांच अवसरों पर विशेषांक निकालने का निश्चय किया। स्वाधीनता दिवस ‘15 अगस्त’, गणतंत्र दिवस ‘26 जनवरी’, विजया दशमी, दीपावली, वर्ष प्रतिपदा। इनके अतिरिक्त भी आवश्यकतानुसार, विषयानुसार, विशेषांकों का आयोजन किया जाता रहा। ये विशेषांक कभी पूर्णाकार, कभी पत्रिकाकार तो कभी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त भी पांचजन्य ने समय-समय पर आकार औरसज्जा परिवर्तन की दृष्टि से कई परिवर्तन किए। पांचजन्य के प्रत्येक विशेषांक में इतिहास, संस्कृति और राजनीति पर विचारप्रधान लेखों का संकलन होता है। विषय केन्द्रित विशेषांकों की परम्परा स्वयं में बहुत समृद्ध और अनूठी है। प्रारंभ से ही ‘पांचजन्य’ ने व्यवस्था त्रयी के अन्तर्गत ‘राजनीति’, ‘अर्थ’ और ‘समाज’ विषयों पर तीन विशेषांकों का पुस्तकाकार रूप में आयोजन किया। तिलक सिंह परमार के सम्पादन काल में ‘समाज अंक’, ‘राष्ट्रीय एकता अंक’, ‘केरल अंक’, ‘तिब्बत अंक’ और ‘जनसंघ अंक’ निकले। यादवराव देशमुख ने ‘हिमालय बचाओ अंक’, ‘युद्ध अंक’, ‘कश्मीर अंक’, ‘भारत-नेपाल मैत्री अंक’ का आयोजन किया। वचनेश त्रिपाठी ने स्वाधीनता के लिए हुए क्रांति संघर्ष पर दो ‘क्रांति संस्मरण अंक’ आयोजित किए। केवल रतन मलकानी के प्रधान सम्पादकत्व में देवेन्द्र स्वरुप ने ‘भारतीयकरण विशेषांक’, ‘गांधी जन्म शताब्दी विशेषांक’, ‘बंगाल विशेषांक’, ‘बंगलादेश मुक्ति विशेषांक’, ‘दरिद्रनारायण विशेषांक’ आदि का आयोजन किया। भानुप्रताप शुक्ल ने ‘क्रांति कथा अंक’, ‘वीर वनवासी अंक’, ‘उद्योग अंक’ आदि निकाले। प्रबाल मैत्र के सम्पादन काल में ‘अपना वतन अंक’, ‘समाधान अंक’, ‘वैशाखी अंक’ आदि का प्रकाशन हुआ। ‘पांचजन्य’ का देश के साप्ताहिकों में एक विशिष्ट स्थान है। इसकी अनेक रपटें समय-समय पर देश के बुद्धिजीवियों और शासन को आंदोलित करती रही है।
संसद में और अन्य समाचार पत्रों में ‘पांचजन्य’ को अक्सर उद्धृत किया जाता है। समाज ने पांचजन्य पर जो भरोसा व्यक्त किया, पांचजन्य ने भी उसका पूरी तत्परता से निर्वहन किया। केवल भाषा और साज-सज्जा के कारण ही पांचजन्य में अनेक विज्ञापन प्रकाशित नहीं किए जाते। पांचजन्य के लिए हमेशा उसके पाठक और उसका ध्येय सर्वाेपरि रहा है। इसीलिए तो तमाम प्रकार के आर्थिक संकटों के बाद भी पांचजन्य ने कभी भी अश्लील चित्रों वाले विज्ञापन नहीं छापे। बहुराष्ट्रीय विदेशी कंपनियों के विज्ञापनों को भी पांचजन्य मंे कोई जगह नहीं मिलती। इन सबके बावजूद पांचजन्य न केवल अपनी यात्रा अनवरत जारी रखे हुए है, बल्कि उसके अनेक मील के पत्थर भी स्थापित किए। भारत-पाकिस्तान की बीच सहयोग को बढ़ाने के लिए उसने वहां के प्रमुख पत्र जंग के साथ मिलकर एक प्रतियोगिता चलायी। जंग के पत्रकार यहां आए और उसका काफी अच्छा प्रभाव पड़ा। पांचजन्य का यशस्वी संपादन अनेक महान विभूतियों ने किया। उनके नाम इस प्रकार हैं-
1. श्री राजीव लोचन अग्निहोत्री प्रथमांक पौष शु. 3, वि. संवत् 2004 से आश्विन कृष्ण 6, वि. संवत् 2006 तक 
2. श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रथमांक से 26 अक्टूबर, 1950 तक
3. श्री ज्ञानेन्द्र सक्सेना 2 नवम्बर, 1950 से 29 जून, 1952 तक
4. श्री गिरीश चन्द्र मिश्र 27 जुलाई, 1953 से 16 जुलाई, 1950 तक
5. श्री तिलक सिंह परमार 23 जुलाई, 1956 से 20 नवम्बर, 1959 तक
6. श्री यादवराव देशमुख 09 नवम्बर, 1950 से 09 अक्टूबर, 1967
7. श्री वचनेश त्रिपाठी साहित्येन्दू 16 अक्टूबर, 1967 से 25 दिसम्बर, 1967 02 जनवरी, 1977 से 10 जुलाई, 1977 तक
8. श्री केवल रतन मलकानी 16 जुलाई, 1968 से 18 जुलाई, 1971 तक
9. श्री देवेन्द्र स्वरूप 25 जुलाई, 1971 से 15 अक्टूबर, 1972 तक
10. श्री दीनानाथ मिश्र 15 अक्टूबर, 1972 से 27 अक्टूबर, 1974 तक
11. श्री भानुप्रताप शुक्ल 27 अक्टूबर, 1974 से 22 जून, 1975 तक
17 जुलाई, 1977 से 15 अप्रैल, 1984 तक
12. श्री प्रबाल मैत्र 22 अप्रैल, 1984 से 29 दिसम्बर, 1985 तक
13. श्री रामशंकर अग्निहोत्री 05 जनवरी, 1986 से 27 अगस्त, 1989 तक
14. श्री तरुण विजय 03 सितम्बर, 1989 से जून, 2008 तक
15. श्री बलदेव भाई शर्मा अगस्त, 2008 से 
16.श्री हितेश शंकर वर्तमान@ 

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