भारतीय संस्कृति

डॉ. सौरभ मालवीय संस्कृति का उद्देश्य मानव जीवन को सुन्दर बनाना है। मानव की जीवन पद्धति और धर्माधिष्ठित उस जीवन पद्धति का विकास भी उस संस्कृति शब्द से प्रकट होने वाला अर्थ है। इस अर्थ में राष्ट्र उसकी संतति रूप समाज, उस समाज का धर्म इतिहास एवं परम्परा आदि सभी बातों का आधार संस्कृति है। सम्पर्क सूत्र दृष्टि से देखा जाए तो इस संस्कृति का मूल वेदों में है। भाषा की उच्चता से समृद्ध, विचारों से परिपक्व, मानवीय मूल्यों का संरक्षक, समाज रचना एवं जीवन पद्धति का समुचित मार्गदर्शन कराने वाला यह वैदिक वाङ्मय गुरु शिष्य परम्परा की असाधारण प्रणाली से उसके मूल स्वरूप में आज तक यथावत् चला आ रहा है। ऐतिहासिक रूप में संसार के सभी विद्वान इस बात पर एकमत हैं कि वेद ही इस धरती की प्राचीनतम पुस्तक है और वे वेद जिस संस्कृति के मूल हैं वह संस्कृति भी इस पृथ्वी पर सर्वप्रथम ही उदित हुई। उसका निश्चित काल बताना सम्भव ही नहीं हो रहा है। लाख प्रयत्नों के बावजूद विद्वान इसे ईसा पूर्व 6000 वर्ष के इधर नहीं खींच पा रहे हैं। भारतीय ऋषियों ने लोकमंगल की कामना से द्रवित होकर मानवीय गुणों को दैवीय उच्चता से विभूषित