अटलजी, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर विशेष डॉ. सौरभ मालवीय टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं गीत नया गाता हूं टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं गीत नया गाता हूं... यह कविता है देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की, जिन्हें सम्मान एवं स्नेह से लोग अटलजी कहकर संबोधित करते हैं. कवि हृदय राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी ओजस्वी रचनाकार हैं. अटलजी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर के शिंके का बाड़ा मुहल्ले में हुआ था. उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी अध्यापन का कार्य करते थे और माता कृष्णा देवी घरेलू महिला थीं. अटलजी अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे. उनसे बड़े तीन भाई और तीन बहनें थीं. अटलजी के बड़े भाइयों को अवध बिहारी वाजपेयी, सदा बिहारी वाजपेयी तथा प्रेम बिहारी वाजपेयी के नाम से जाना जाता है. अटलजी बचपन से ही अंतर्मुखी और प्रतिभा संपन्न