Saturday, March 17, 2018

भारतीय नववर्ष : सृष्टि की रचना का दिन


डॊ. सौरभ मालवीय
नव रात्र हवन के झोके, सुरभित करते जनमन को।
है शक्तिपूत भारत, अब कुचलो आतंकी फन को॥
नव सम्वत् पर संस्कृति का, सादर वन्दन करते हैं।
हो अमित ख्याति भारत की, हम अभिनन्दन करते हैं॥
18 मार्च विक्रम संवत 2075 का प्रारंभ हो रहा है. भारतीय पंचांग में हर नवीन संवत्सर को एक विशेष नाम से जाना जाता है. इस वर्ष इस नवीन संवत्सर का नाम विरोधकर्त है. भारतीय संस्कृति में विक्रम संवत का बहुत महत्व है. चैत्र का महीना भारतीय कैलंडर के हिसाब से वर्ष का प्रथम महीना है. नवीन संवत्सर के संबंध में अन्य पौराणिक कथाएं हैं. वैदिक पुराण एवं शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को आदिशक्ति प्रकट हुईं थी. आदिशक्ति के आदेश पर ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रारंभ की थी. इसीलिए इस दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है. मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था. इसी दिन सतयुग का प्रारंभ  हुआ था. इसी तिथि को राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी. विजय को चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम संवत का शुभारंभ किया था, तभी से विक्रम संवत चली आ रही है. इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और साल की गणना कर पंचांग की रचना की थी.

सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ट काल गणना का श्रीगणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था. तदनुसार हमारे सौरमंडल की आयु चार अरब 32 करोड़ वर्ष हैं. आधुनिक विज्ञान भी, कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे चार अरब वर्ष पुराना मान रहा है. यही नहीं हमारी इस पृथ्वी की आयु भी 2018 मार्च को, एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार एक सौ 23 वर्ष पूरी हो गई. इतना ही नहीं, श्रीमद्भागवद पुराण, श्री मारकंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और एक कल्प में एक हजार चतुरयुग होते है. इस खगोल शास्त्रीय गणना के अनुसार हमारी पृथ्वी 14 मनवंतरों में से सातवें वैवस्वत मनवंतर के 28वें चतुरयुगी के  अंतिम चरण कलयुग भी. आज 51 सौ 18 वर्ष में प्रवेश कर लिया.जिस दिन सृष्टि का प्रारंभ हुआ, वह आज ही का पवित्र दिन है. इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मंदिर में चैत्र पर्व की परंपरा बन गई.

भारतीय महीनों के नाम जिस महीने की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में पड़ती है, उसी के नाम पर पड़ा. जैसे इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं, इसलिए इसे चैत्र महीने का नाम हुआ. श्रीमद्भागवत के द्वादश  स्कंध के द्वितीय अध्याय के अनुसार जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र पर यह उसी समय से कलयुग का प्रारंभ हुआ, महाभारत और भागवत के इस खगोलीय गणना को आधार मान कर विश्वविख्यात डॉ. वेली ने यह निष्कर्ष दिया है कि कलयुग का प्रारंभ 3102 बी.सी. की रात दो बजकर 20 मिनट 30 सेकेंड पर हुआ था. डॉ. बेली महोदय आश्चर्य चकित है कि अत्यंत प्रागैतिहासिक काल में भी भारतीय ऋणियों ने इतनी सूक्ष्तम और सटीक गणना कैसे कर ली. क्रांति वृंत पर 12 हो महीने की सीमाएं तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किए गए और नाम भी तारा मंडलों की आकृतियों के आधार पर रखे गए. जो मेष, वृष, मिथुन इत्यादित 12 राशियां बनीं.

चूंकि सूर्य क्रांति मंडल के ठीक केंद्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और जब अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगता है. प्रति तीन वर्ष में एक मास अधिक मास कहलाता है. संयोग से यह अधिक मास अगले महीने ही प्रारंभ हो रहा है.
भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अंतर नहीं पड़ता, जबकि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते हैं. इस प्रकार प्रत्येक चार वर्ष में फरवरी महीने को लीप ईयर घोषित कर देते हैं फिर भी. नौ मिनट 11 सेकेंड का समय बच जाता है, तो प्रत्येक चार सौ वर्षों में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है, तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है. अभी 10 साल पहले ही पेरिस के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकेंड स्लो कर दिया गया. फिर भी 22 सेकेंड का समय अधिक चल रहा है. यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है, जहां के सीजीएस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किए जाते हैं. रोमन कैलेंडर में तो पहले 10 ही महीने होते थे. किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था, जिसे जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया. उसके एक सौ साल बाद किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट भी बढ़ाया गया. चूंकि ये दोनों राजा थे, इसलिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गए. आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिन समान हैं, जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है. यदि नहीं जिसे हम अंग्रेजी कैलेंडर का नौवां महीना सितंबर कहते हैं, दसवां महीना अक्टूबर कहते हैं, ग्यारहवां महीना नवंबर और बारहवां महीना दिसंबर हैं. इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते हैं. भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमुच सितंबर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवां भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवंबर तो नवमअम्बर और दिसंबर दशाम्बर है.

सन् 1608 में एक संवैधानिक परिवर्तन द्वारा एक जनवरी को नव वर्ष घोषित किया गया. जेनदअवेस्ता के अनुसार धरती की आयु 12 हजार वर्ष है, जबकि बाइबिल केवल दो हजार वर्ष पुराना मानता है. चीनी कैलेंडर एक करोड़ वर्ष पुराना मानता है, जबकि खताईमत के अनुसार इस धरती की आयु 8 करोड़ 88 लाख 40 हजार तीन सौ 18 वर्षों की है. चालडियन कैलेंडर धरती को दो करोड़ 15 लाख वर्ष पुराना मानता है. फीनीसयन इसे मात्र 30 हजार वर्ष की बताते हैं. सीसरो के अनुसार यह 4 लाख 80 हजार वर्ष पुरानी है. सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमाणि आदि ग्रंथों में चैत्रशुक्ल प्रतिपदा रविवार का दिन ही सृष्टि का प्रथम दिन माना गया है.

संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द बना है. इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष प्रतिपदा ही नव वर्ष का प्रथम दिन है. एक जनवरी को नव वर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते हैं, क्योंकि भारत में जब 31 दिसंबर की रात को 12 बजता है, तो ब्रिटेन में सायंकाल होता है, जो कि नव वर्ष की पहली सुबह हो ही नहीं सकता. और जब उनका एक जनवरी का सूर्योदय होता है, तो यहां के Happy New Year वालों का नशा उतर चुका रहता है. सनसनाती हुई ठंडी हवायें कितना भी सुरा डालने पर शरीर को गरम नहीं कर पाती हैं. ऐसे में सवेरे सवेरे नहा धोकर भगवान सूर्य की पूजा करना तो अत्यंत दुष्कर रहता है. वही पर भारतीय नव वर्ष में वातावरण अत्यंत मनोहारी रहता है. केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गंधर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी, देव, मानव से समष्टि तक सब प्रसन्न होकर उस परम शक्ति के स्वागत में सन्नध रहते हैं.
दिवस सुनहले रात रूपहली उषा सांझ की लाली छन-छन कर पत्तों में बनती हुई चांदनी जाली. शीतल मंद सुगंध पवन वातावरण में हवन की सुरभि कर देते हैं. ऐसे ही शुभ वातावरण में जब मध्य दिवस अतिशित न धामा की स्थिति बनती है, तो अखिल लोकनायक श्रीराम का अवतार होता है. आइए इस शुभ अवसर पर हम भारत को पुन: जगतगुरू के पद पर आसीन करने में कृत संकल्प हों.

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस वर्ष के राजा सूर्य हैं और शनि मंत्री होंगे. यह वर्ष सभी के लिए काफी सुखद रहेगा. उल्लेखनीय है कि ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है. मान्यता है कि नव संवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर उसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है. इस दिन आंवले का सेवन भी बहुत लाभदायद बताया गया है. माना जाता है कि आंवला नवमीं को जगत पिता ने सृष्टि पर पहला सृजन पौधे के रूप में किया था. यह पौधा आंवले का था. इस तिथि को पवित्र माना जाता है. इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है.
निसंदेह, जब भारतीय नववर्ष का प्रारंभ होता है, तो चहुंओर प्रकृति चहक उठती है. भारत की बात ही निराली है.
कवि श्री जयशंकर प्रसाद के शब्दों में-
अरुण यह मधुमय देश हमारा
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा
अरुण यह मधुमय देश हमारा


Tuesday, March 6, 2018

महिला सशक्तीकरण की प्रतिबद्धता

डॊ. सौरभ मालवीय
आज हर क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज न कराई हो। महिलाएं समाज की प्रथम इकाई परिवार का आभार स्तंभ हैं। एक महिला सशक्त होती है, तो वह दो परिवारों को सशक्त बनाती है। प्राचीन काल में भी महिलाएं सशक्तीकरण का उदाहरण थीं। वे ज्ञान का भंडार थीं। किन्तु एक समय ऐसा आया कि महिलाओं को घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया। किन्तु ये समय भी अधिक समय तक नहीं टिका। एक बार फिर से महिलाएं घर की चौखट से बाहर आने लगी हैं। आज महिलाएं सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही हैं। शिक्षा हो या खेलकूद,  अंतरिक्ष हो या प्रशासनिक सेवा, व्यवसाय हो या राजनीति वे हर क्षेत्र में अपनी कुशलता सिद्ध कर रही हैं। महिला सशक्तीकरण के बिना देश व समाज का विकास अधूरा है।

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार महिला सशक्तीकरण को लेकर प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि नारी सशक्तीकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा है। आज मुद्दा महिलाओं के विकास का नहीं, बल्कि महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास का है। यह जरूरी है कि हम स्वयं को और अपनी शक्तियों को समझें। जब कई कार्य एक समय पर करने की बात आती है तो महिलाओं को कोई नहीं पछाड़ सकता। यह उनकी शक्ति है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। हम लड़कियों के जन्म होने पर खुशियां मनाएं। हमें अपनी बेटियों पर समान रूप से गर्व होना चाहिए। हमें समाज में ही नहीं, बल्कि परिवार के भीतर भी महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव को रोकना होगा। महिलाओं को खुद से जुड़े फैसले लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। सही मायने में हम तभी नारी सशक्तीकरण को सार्थक कर सकते हैं। नारी सशक्तीकरण में आर्थिक स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चाहे वो शोध से जुड़ी गतिविधियां हों या फिर शिक्षा क्षेत्र, महिलाएं काफी अच्छा काम कर रही हैं। कृषि के क्षेत्र में भी महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है।

सरकार महिलाओं के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक उत्थान के लिए अनेक योजनाएं चला रही है। किन्तु अधिकतर महिलाओं को इनके बारे में जानकारी नहीं है। ऐसे में महिलाएं इन योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रही हैं। सरकार का प्रयास है कि महिलाएं इन योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाएं। इसीलिए महिलाओं को इस बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने एक नारी नामक एक पोर्टल भी बनवाया है। केन्दीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने 2 जनवरी, 2017 को नई दिल्ली में इसका शुभारंभ किया था। इस पोर्टल को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने विकसित किया है। इस पोर्टल में केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की पूरी जानकारी दी गई है।  इस पोर्टल में महिलाओं के कल्याण के लिए 350 सरकारी योजनाओं से संबंधित व अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराई गई हैं, जिससे महिलाओं को लाभ होगा। सरकार महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर है।  विकट परिस्थितियों में महिलाओं की सहायता के लिए 168 जिलों में वन स्टॉप सेंटर उपलब्ध हैं। संकट के समय महिलाएं इन केन्दों में जाकर अपने लिए सहायता की माघ कर सकती हैं।  प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पंजीयन में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है।

सरकार कन्या भ्रूण हत्या रोकने और महिला शिक्षा के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना चला रही है। यह अभियान महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन मंत्रालय के समन्वित प्रयासों से चलाया जा रहा है। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए नया मातृत्व लाभ संशोधित अधिनियम एक अप्रैल, 2017 से लागू कर दिया है। इसके अंतर्गत कामकाजी महिलाओं के लिए वैतनिक मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई है। इसके साथ ही 50 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले संस्थान में एक निश्चित दूरी पर क्रेच सुविधा उपलब्ध कराना भी अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि महिलाएं अपने छोटे बच्चों को वहां छोड़ सकें। महिलाओं को मातृत्व अवकाश के समय घर से भी काम करने की छूट दी गई है। मातृत्व लाभ कार्यक्रम के 1 जनवरी, 2017 से लागू है। इसके अंतर्गत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले दो जीवित शिशुओं के जन्म के लिए तीन किस्तों में 6000 रुपये की नकद प्रोत्साहन राशि भी प्रदान की जाती है।
सरकार गरीब परिवारों की महिलाओं को चूल्हे के धुएं से मुक्ति दिलाने और स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना चला रही है। इसके अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की महिलाओं को एलपीजी गैस कनेक्शन और चूल्हा निशुल्क प्रदान किया जाता है। सरकार सुकन्या समृद्धि योजना के माध्यम से बालिकाओं के भविष्य को सुरक्षित करने का कार्य भी कर रही है। इस योजना के अंतर्गत 0-10 साल की कन्याओं के खाते डाकघर में खोले जाते हैं। इन खातों में जमा राशि पर 8।1 प्रतिशत की दर से वार्षिक ब्याज देने का प्रावधान है। बेटियों की शिक्षा और समृद्धि की यह योजना अभिभावकों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। इतना ही नहीं, सरकार ने स्टैंड-अप इंडिया के अंतर्गत अपना व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए एक महिला को 10 लाख से लेकर 1 करोड़ तक का ऋण उपलब्ध कराने का नियम बनाया गया है। हर बैंक शाखा को महिलाओं को ऋण देना होगा। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत महिलाओं को रोजगार योग्य बनाने के लिए 11 लाख से अधिक महिलाओं को अलग-अलग तरह के कौशल्य में प्रशिक्षित किया गया है। सरकार महिलाओं को यौन उत्पीड़न से महिलाओं को बचाने के लिए भी कार्य कर रही है। कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाएं रोकने के लिए ई-प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया गया है। इस ई-प्लेटफॉर्म की सुविधा के माध्यम से केंद्र सरकार की महिला कर्मचारी ऐसे मामलों में ऑनलाइन ही शिकायत दर्ज करा सकेंगी।
सरकार द्वारा चलाई जा रही ये योजनाएं महिला सशक्तीकरण के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं।

अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार हो

  - डॉ. सौरभ मालवीय      भारत एक विशाल देश है। यहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी भिन्न-भिन्न संस्कृतियां हैं , परन्तु सबकी...